अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में बिरसा मुंडा की बड़ी अहम भूमिका रही है। उनके सारे आंदोलन अंग्रेजों, आदिवासियों के शोषण और उनके समर्थन कर रहे लोगों के खिलाफ ही थे। यही कारण है कि इस आदिवासी नेता को आज भी झारखंड, बिहार, ओडि़सा और पश्चिम बंगाल के एक बड़े हिस्से में भगवान बिरसा के रूप में पूजा जाता है। बिरसा अकेले ऐसे आदिवासी हैं, जिनका चित्र भारतीय संसद में प्रदर्शित किया गया है। वे मुण्डा जाति के साथ समस्त आदिवासी या अनुसूचित जनजाति के गौरव के देश के सबसे बड़े प्रतीक हैं।
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड राज्य के खूंटी जिले के उलिहातु में हुआ था।
9 जून 1900 में रांची के कारागार में उनकी मृत्यु हो गई. महज 24 वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपनी ऐसी धाक जमा ली थी कि अंग्रेजों के साथ ही समस्त सामंतवादी वर्ग उनका नाम सुनकर ही थर्रा उठते थे. उन्होंने 19 की आयु में आदिवासी सेना का गठन किया. उनके साथ 600 से ज्यादा पारंपरिक लड़ाके आ गए थे.
बिरसा आदिवासी व जनजातीय आबादी को उचित अधिकार दिलाना चाहते थे. आदिवासियों का अपना राज्य-अपना शासन स्थापित करना उनका लक्ष्य था। अंग्रेज, ईसाई मिशनरियों और बाहरी लोगों, साहूकारों को उन्होंने निशाना बनाया क्योंकि ये आदिवासियों का शोषण करते थे। उन्होंने पारंपरिक सेना बनाकर आदिवासियों को मजबूत बनाया। उन्हें अंग्रेजों व बाहरी लोगों से सीधे लड़ाई में उतारा.
बिरसा मुण्डा आदिवासी चिंतन-संस्कृति के साथ ही सनात हिन्दू धर्म के ज्ञान और ईसाई धर्म के संगठन व्यवहार से बहुत प्रभावित थे। वे शराब के घोर विरोधी थे. उन्होंने आदिवासियों से कहा— ‘शराब पीना छोड़ो। इसके कारण हमारी भूमि हमसे दूर हो जाती है। शराबीपन व नींद अच्छी बात नहीं है। इससे शरीर और आत्मा को नुकसान होता है। दुश्मन हम पर हंसते हैं।’
आदिवासी समाज के प्रति उनकी प्रतिबदधता इन शब्दों से झलकती है— ‘जनजाति को बाहरी लोगों से मुक्ति दिलाने और उनके उत्थान के लिए मैं अंतिम समय तक संघर्ष करता रहूंगा, क्योंकि मुझे ईश्वर ने इसी कार्य के लिए धरती पर भेजा है।’
1894 में नागपुर छोटा नागपुर में जब भयंकर अकाल और महामारी फैली तो बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की। इसी साल उन्होंने नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। बिरसा को 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों ने गिरफ़्तार कर लिया और जेल में उन्हें जहर दे दिया. 9 जून 1900 को उन्होंने राँची कारागार में अंतिम सांसें लीं। 2021 को भारत सरकार ने 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।