कोरोना की चौथी लहर की आहट, हालातों को बिगड़ने से पहले संभालना जरूरी


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स्टोरी हाइलाइट्स

दिल्ली में सबसे ज्यादा मरीज निकल रहे हैं, बच्चे भी चपेट में हैं। हालांकि अब तक कोरोना को नियंत्रित करने में एक सुदीर्घ व सफल टीकाकरण अभियान से भारत ने कामयाबी हासिल की है..!

दिल्ली में सबसे ज्यादा मरीज..!

कहा जा सकता है कि इसी टीकाकरण की बदौलत ही बच्चों से लेकर बड़ों और वृद्धों तक को महामारी के खतरे से बचाया जा पा रहा है। हालांकि बच्चों के टीकाकरण का काम पिछले महीने ही शुरू हुआ है, पर अब तक करोड़ों बच्चों को टीके लग चुके हैं बच्चों के सफल टीकाकरण की बड़ी वजह यह भी है कि पिछले कुछ महीनों में कई टीके बाजार में आ गए हैं। 

अब भारत के औषधि महानियंत्रक ने बच्चों के लिए कुछ और टीकों को हरी झंडी दे दी है। भारत बायोटेक का बनाया कोवैक्सीन छह से बारह साल के बच्चों को लगाया जाएगा। इसके अलावा पांच से वारह साल के बच्चों के लिए कोबॅवैक्स और बारह साल से अधिक के बच्चों को लिए जायकोव डी को मंजूरी दी गई है। हालांकि ये सभी टोके आपात इस्तेमाल के लिए ही होंगे। वैसे अभी कई टीका निर्माता कंपनियां अलग अलग आयुवर्ग के बच्चों के लिए टीकों के विकास में लगी हैं। ये टाँके जितने जल्द आएंगे, टौकाकरण की रफ्तार भी उतनी तेज होगी। देश में टीकाकरण की शुरुआत पिछले साल जनवरी के मध्य में हुई थी। तब टीकों की भारी कमी थी और लक्ष्य था पूरी आबादी के टीकाकरण का। तब टीके भी कुछ ही कंपनियां विकसित कर पाई थी। 

इसलिए तब प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण शुरू किया गया था। जब किशोरवय आबादी और बच्चों के टीके भी विकसित हो गए, तो इन्हें भी टीकाकरण अभियान में शामिल कर लिया गया। बच्चों को चिंता ज्यादा इसलिए भी बनी रही क्योंकि महामारी की दूसरी और तीसरी लहर को लेकर विशेषज्ञ पहले से ही आगाह करते रहे थे कि बच्चों को संक्रमण का खतरा ज्यादा हो सकता है। इसीलिए बारह से अठारह साल के बच्चों का टीकाकरण शुरू हुआ। फिर इसी कड़ी में पिछले महीने से बारह से चौदह साल के बच्चों को भी टीकाकरण की मुहिम में जोड़ लिया गया। अब छह से बारह साल के बच्चों के लिए भी रास्ता साफ हो गया है।

इसे मामूली कामयाबी नहीं माना जा सकता कि बारह से अठारह साल के बीच की साढ़े आठ करोड़ आबादी की पहली खुराक और साढ़े चार करोड़ बच्चों को दूसरी खुराक भी दी जा चुकी है। टीकाकरण अभियान में जब तब बाधाएं भी आती रही हैं। इसके पीछे टीकों की कमी, कुप्रबंधन, लोगों और सरकारों के स्तरों पर लापरवाही जैसे कई कारण रहे। लेकिन अब शायद पहले जैसी स्थिति तो नहीं है। अब तक एक सौ अठासी करोड़ टीके लग जाने का मतलब यही है कि आबादी के बड़े हिस्से को कम से कम एक खुराक दे दी गई है। 

नब्बे करोड़ से ज्यादा लोगों को टीके को दोनों खुराक लग चुकी है। लेकिन पिछले कुछ समय से फिर से कुछ राज्यों में मामले बढ़ने से चिंता बढ़ गई है। इसलिये फिर बारी है टीकाकरण से छूट गये लोगों के वैक्सीनेशन की और सतर्कता की बूस्टर डोज के लिये भी सरकार जोर देने लगी है और इसकी अवधि भी नौ महीने से घटाकर छह महीने किये जाने की संभावना है, जाहिर है कि बीमारी आने के पहले ही उसकी रोकथाम के तमाम जतन हो जाएं तो हालातों पर आसानी से नियंत्रण हो जाता है।

आशीष दुबे,