अवाम का हाल जानने, बेगमें लगाती थीं दरबार…

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स्टोरी हाइलाइट्स

नवाबी काल में लेखा-जोखा की जानकारी या अन्य मौके पर होने वाली सभा को दरबार कहा जाता था|

आज भी जब हम भोपाल की पुरानी इमारतों का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि इन सब में एक हिस्से को दरबार के रूप में चयनित किया जाता है। चाहे सदर मंजिल हो, गौहर महल हो या फिर ताज महल। इन सारी पुरानी इमारतों में एक हिस्सा दरबार के रूप में जाना जाता है। 

दरअसल, नवाबी काल में सालभर के लेखा-जोखा की जानकारी या किसी अन्य मौके पर होने वाली सभा को दरबार कहा जाता था। अमूमन यह दरबार हर नवाब के दौर में अलग-अलग इमारतों में लगा करते थे। 

सैफिया कॉलेज के प्रोफेसर और इतिहासकार अशर किदवई के मुताबिक नवाब कुदसिया बेगम के दौर में यह दरबार गौहर महल में लगता था। नवाब सिकंदर बेगम के दौर में यह दरबार मोती महल में लगने लगा। नवाब शाहजहां बेगम के दौर में यह दरबार ताजमहल में लगता था। 

सुल्तान जहां बेगम के दौर में यह दरबार सदर मंजिल में लगा करते थे। वहीं नवाब हमीदुल्लाह खान राहत मंजिल और सदर मंजिल के अंदर दरबार लगाते थे। भोपाल रियासत के राजस्व को देखने के लिए दो दरबार लगाए जाते थे। रवि और खरीफ की फसलों के आने पर लगने की वजह से इनका नाम इन्हीं दोनों फसलों के नाम पर पड़ गया। 

रवि और खरीफ दरबार एक तरह से भोपाल राज्य का बजट सुनिश्चित करने वाले दरबार थे। इन दरबारों में फसलों से होने वाली आमदनी और नुकसान की जानकारी पेश की जाती थी। वहीं कुछ दरबार त्योहारों के अवसर पर भी लगा करते थे, जिनमें प्रमुख थे ईद उल अजहा का दरबार, ईद उल जुहा का दरबार, होली दरबार और दशहरे दरबार।

1830 से शुरू हुआ था भोपाल में दरबार कल्चर:

सुल्तानिया स्कूल की छात्राओं के अच्छे परीक्षा परिणाम को देखते हुए नवाब सुल्तान जहां बेगम ने एक महिला दरबार का आयोजन सदर मंजिल में किया। इसमें भोपाल रियासत से हर धर्म, जाति और वर्ग की महिलाओं को बुलाया गया। 

इस दरबार में परीक्षा में उत्तीर्ण हुई छात्राओं को सम्मानित किया गया और उस वक्त सदर मंजिल के अंदर किसी भी आदमी के जाने पर प्रतिबंध था। महिला दरबार लगाने का मकसद महिलाओं के अंदर शिक्षा प्राप्त करने के लिए जागरूकता पैदा करना था और वे अपने इस प्रयास में सफल भी हुई। देखते ही देखते पूरे रियासत में लड़कियों को स्कूल भेजने का रिवाज चालू हो गया।