गुलाम मानसिकता की पहचान - खूबसूरत इमारत मिंटो हॉल - मनोज_जोशी
यह जानना रोचक और जरूरी होगा कि आखिर मिंटो हॉल क्या है ? और लॉर्ड मिंटो कौन थे ?
मिंटो हॉल की नींव 1909 में रखी गई थी। भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड मिंटो उस समय भोपाल आए हुए थे। उन्हें तब के गेस्ट हाउस लाल कोठी (वर्तमान राजभवन) में रुकवाया गया। वायसराय वहां की व्यवस्थाओं से काफी नाराज हुए इसके बाद तत्कालीन नवाब सुल्तान जहां बेगम ने आनन-फानन में मिंटो हॉल बनवाने का निर्णय लिया और लॉर्ड मिंटो से ही उसकी नींव रखवाई। वायसराय को खुश करने के लिए ही इसका नाम मिंटो हॉल रखा गया था।
1909 ही वह साल है जब मॉर्ले- मिंटो सुधार के नाम पर अंग्रेजों ने देश की शासन व्यवस्था में ऐसे बदलाव किए जो अंततः विभाजन का कारण बने।1904 में बंगाल विभाजन हुआ जिसने भारतीय जनता की मानों कमर ही तोड़ दी थी। 1905 कांग्रेस ने होम रूल की मांग की।अक्टूबर 1906 में आगा खां के नेतृत्व में मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल वायसराय लार्ड मिन्टो से मिला था और मांग की कि मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की जाए तथा मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाये। प्रतिनिधिमंडल ने तर्क दिया कि ‘उनकी साम्राज्य की सेवा’ के लिए उन्हें पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व दिया जाये। दिसंबर 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। इसमें भी लॉर्ड मिंटो और आगा खां की भूमिका महत्वपूर्ण थी। 1909 में लागू हुए कथित सुधारों में ही मुसलमानों को पृथक निर्वाचन का अधिकार मिला और यही भारत के विभाजन का ठोस आधार बना।
लॉर्ड मिंटो की भोपाल यात्रा का उद्देश्य भी मुस्लिम लीग और पृथक निर्वाचन लागू करने के संबंध में चर्चा ही था।
यहां यह बात स्पष्ट कर दूं कि भोपाल एक प्रिंसली स्टेट यानी अंग्रेजों के अधीन रियासत थी। यहां के प्रशासन और शासन में अंग्रेजों का दखल था। नवाब कौन होगा यह भी अंग्रेज ही तय करते थे। नवाब बेगम की हैसियत यह नहीं थी कि वह वायसराय की नाराजगी को झेल सके। हालांकि आज का विषय मिंटो हॉल है मैं वापस उसी पर आता हूं।
इस ऐतिहासिक इमारत के निर्माण की आधारशिला 12 नवंबर 1909 को रखी गई थी, पर इसे बनने में 24 साल लग गए। इमारत 1933 में बनकर तैयार हुई। इतनी भव्य इमारत के निर्माण का खर्च तब तीन लाख रुपए आया था। इसके मुख्य आर्किटेक्ट एसी रोवन थे, जिन्होंने इस इमारत को आलीशान बनाने की चुनौती ली थी। इसका आकार लॉर्ड पंचम के मुकुट के समान है। बिल्डिंग का आर्किटेक्चर और लॉर्ड पंचम के मुकुट का आकार अंग्रेजों को खुश करने के लिए ही बनाया गया था। बिल्डिंग निर्माण में इस बात का ध्यान रखा गया कि लालकोठी के पास एक ऐसा भव्य भवन हो, जहां सभी सुविधाएं हों और यहां आने वाले वीवीआईपी मेहमान (यानी अंग्रेज अफसर) आराम फरमा सकें। इस भवन के निर्माण की अधिकांश सामग्री इंग्लैंड से मंगवाई गई थी। इसमें सीमेंट से लेकर मिट्टी तक ब्रिटेन की लगी हुई है।
भोपाल के अंतिम नवाब हमीदुल्लाह ने इस इमारत का फर्श संगमरमर से बनवाया था। यदि आप नवाब हमीदुल्लाह की ताजपोशी के बारे में इतिहास से जानकारी उठाएंगे तो पता लगेगा कि बेगम को उनकी नियुक्ति की अनुमति के लिए लंदन तक जाना पड़ा था।
हमीदुल्लाह की बड़ी बेटी आबिदा बेगम को ये फर्श इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे स्केटिंग का मैदान बनवा दिया था। बाद में यहां पुलिस मुख्यालय रहा। फिर 1946 में इंटर कॉलेज (वर्तमान हमीदिया कॉलेज), सितंबर 1956 से 1996 तक यहां विधानसभा भी चली।
कई बरसों तक यह इमारत अनुपयोगी पड़ी रही। 2014 में संरक्षण एवं संवर्धन के लिए इसे पर्यटन निगम को सौंपा गया था। 65 करोड़ रुपए खर्च करके इस इमारत को कन्वेंशन सेंटर में बदला गया है। यहां लगभग 1100 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। अक्टूबर 2018 में यह रिनोवेशन पूरा हुआ।
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