लोककथा ...धरती नियम प टिकीज़ ..........धरती नियम पर टिकी है
जंगल मऽ एक मस्त हाथी रयतो थो वो मर्यो तो जमदूत वो कऽ जमराज का पास गयो। जमराज ने पूछ्यो- 'केंऊ रे हाथ्थी, तू धरती प काइ काम करतो थो?' हाथ्थी बोल्यों 'म्हाराज! हाऊँ धरती प आदमी न को बोझो ढोणऽ को काम करतो थो।'
जमराज की अचंभो हुयो, बोल्यो- 'तू इत्तो मोटो ताजो आरू बलवान छे, फिर आदमी को गुलाम कसो बणी गयो?' हाथी लंबी साँस खैची न बोल्यो- 'म्हाराज ! अभी तुमनऽ आदमी खऽ पइचाण्यो नी हुईँ, तवजू असी बात करी रयाज्।' जमराज- 'काई बळ्ळइ रयोज?' म्हारा य्हाँ रोज हजारों आदमी आवजी।' 'वो मुर्दा आदमी होयगा, कदी कइँ का जिवता आदमी सी पाळी पड्यो होतो तो असी बात नी करता।' हाथी न जुबाब दियो। हाथी की बात सणी न जमराज कऽ एक जिवता आदमी कऽ लाण को हुकुम दियो । जमदूत झट धरती प गयो न दफ्ता का एक बाबू खऽ पकड़ी लायो । रस्ता मऽ आदमी नऽ जमदूत सी पूछ्यो- 'का भाई! तू मखs पकड़ी नऽ का लइ जाइ रयोज्?' जमानत बोल्यो- 'सरग का देवता जमराज नऽ तुखऽ बुलायोज।
आदमी बोल्यो- 'पण भाई! हऊँ तो अभी जिवतो छे असो लगजऽ कि थारा सी कई गलती हुइ रइज। "नई, म्हारा सी गलती नी हुइ। मख जिवता आदमी लावणऽ को हुकुम दियो सो तुखऽ लइ जाइ रयोज। चुपचाप चल, बड़बड़ मत कर', जमदूत ने डाटी दियो। आदमी चुप हुइ गयो। सरग की मेर (मेड़, सीमा) प पोइच्या तव आदमी नऽ कड़क हुइ न पूछ्यो- 'केऊँ जमानत! मख पकड़ी न लावणऽ को हुकुम, लिखी न दियो थो जमराज न?' जमदूत बोल्यो 'नइ तो।' आदमी डाटी न बोल्यो- 'फिर जमराज का पास म खऽ लइ जाणऽ को थारो अधिकार नी हुई, जा, थारा अफसर खऽ कई दीजे।' फिरी आदमी सीधो विष्णु भगवान का पास गयो, साष्टांग दंडवत प्रणाम करी ने बोल्यो- भगवान! तमारा सरग मँ कई कायदा-कानून छे कि नी हैँ?' भगवान बोल्या- 'यहाँ कायदा-कानून क्यों नी हैँ? बिना कानून का य्हाँ पत्तो भी नी हालतो।' 'फिर कदी कोइ उना कानून-कायदा को पालण नी करऽ तो?' आदमी न पूछ्यो।
भगवान बोल्या- 'वो की सजा दी जाए।' आदमी न अरदास करी- 'भगवान! हाऊँ मृत्यु लोक को जीतो-जागतो आदमी छे, आज यमराज का दूत मखऽ बिना कारण पकड़ी न व्हाँ लई आया, यो न्याव छे कि अन्याव?' भगवान बोल्या- 'यो तो सरासर अन्याव छे, हाऊँ अभी जांच कराड्ज।' भगवान नमराज खऽ बुलायो आरू पूछ्यो- 'केऊँ जी! तुमारा दूत इना जीवता मनख खऽ पकड़ी लाया, काई तुमने असो हुकुम दियो थो?''हाँ, भगवान', जमराज बोल्यो- 'मन हाथ्थी का कयणा सी आदमी की जात की पइचाण करन का लेणऽ बुलायो थो।' भगवान बोल्या- कानून-कायदा, कानून कायदा छे। उनको पालण करनूँ चायजे, भलइ वो यमराज होय कि हाऊँ। कदी सूरज कायदा-कानून का पालण नी कर तो धरती का लोग सरग की सत्ता प विसवास करणू छोड़ी दे गऽ।' यमराज ने अपणी भूल मंजूर करी आरू उना जीवता आदमी खऽ तुरत पाछो धरती प भेजी दियो। सुणांज, असा नेम कायदा प ज धरती टिकेल छे।
धरती नियम पर टिकी है
एक समय एक जंगल में एक मस्त हाथी रहता था उसकी जब मृत्यु हुई तो यमदूत उसे यमराज के सामने ले गए। यमराज ने पूछा- 'क्यों जी! तुम धरती पर कौन-सा काम करते थे?' हाथी ने कहा- 'महाराज ! मैं मनुष्य का बोझा ढोने का काम करता था।' यमराज ने कहा 'तुम इतने बड़े जानवर हो और उस तुच्छ आदमी के कब्जे में कैसे आये?' हाथी ने कहा- 'महाराज अभी आपने आदमी को देखा नहीं है इसलिये ऐसी बात कर रहे हैं।' यमराज ने कहा- 'क्या बकते हो जी। मेरे यहाँ रोज हजारों आदमी आते हैं।' हाथी ने कहा- 'वे मरे हुए आदमी होंगे। अगर एक भी जिन्दा आदमी से आपका वास्ता पड़ा होता तो आप हरगिज ऐसी बात नहीं करते। यमराज का दूत धरती पर पहुँचा और वहाँ से एक जिन्दा आदमी को पकड़ लाया। वह एक दफ्तर का बाबू था। रास्ते में उस आदमी ने पूछा- 'तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो?' यम के दूत ने कह, 'स्वर्ग के देवता यमराज ने तुम्हें बुलाया है।' आदमी ने कहा- 'लेकिन मैं तो एक जिन्दा आदमी हूँ। शायद तुमसे गलती हुई है।' यमदूत ने कहा- 'नहीं मुझसे कोई गलती नहीं हुई, मुझे एक जिन्दा आदमी को ही लाने को कहा था। लाचार वह चुपचाप उसके साथ चलने लगा। जैसे ही स्वर्ग की सीमा आई आदमी ने कड़क कर कहा 'क्यों जी! क्या तुम्हें मुझे लाने के लिए कोई लिखित आदेश मिला है?
यमदूत ने चौंककर कहा- 'नहीं तो।' आदमी ने डाँटकर कहा- 'तो तुम्हें मुझे यमराज के सामने ले जाने का कोई हक नहीं है। जाओ अपने मालिक से कह देना।' और वह तुरन्त विष्णु भगवान के पास पहुँचा। उसने उन्हें प्रणाम किया और बोला- 'भगवान आपके स्वर्ग में कोई नियम भी है या नहीं। भगवान ने कहा- 'नियम क्यों नहीं है। नियम के बिना तो यहाँ पत्ता भी नहीं हिल सकता।' आदमी ने कहा- 'और अगर कोई उन नियमों का उल्लंघन करे तो।' भगवान ने कहा- 'उसे सजा मिलती है।' आदमी ने कहा 'भगवान, मैं मृत्युलोक का एक जिन्दा आदमी हूँ। आज यमराज का दूत मुझे बिना कारण जिन्दा अवस्था में पकड़ लाया है।
क्या यह न्यायोचित है?' भगवान ने कहा- नहीं, यह अन्याय है। मैं अभी जाँच करता हूँ और उन्होंने तुरन्त ही यमराज को बुलवाया।' जब यमराज आये तो भगवान ने पूछा- 'क्यों जी आपके दूत इस जिन्दा आदमी को पकड़ कर ले आये। क्या आपने ऐसी आज्ञा दी थी?' यमराज ने कहा, 'जी हाँ भगवान। मैंने हाथी के कहने से महज जिज्ञासा वश इसे बुलवाया था। भगवान बोले 'नियम-नियम है और सबको उनका पालन करना चाहिए। भले ही वह यमराज अथवा मैं ही क्यों न होऊँ।
अगर सूर्य अपने नियमों का पालन छोड़ दे तो मनुष्य का स्वर्ग की सत्ता पर से विश्वास उठ जायेगा।' यमराज ने अपनी गलती स्वीकार की और उस जिन्दा आदमी को धरती पर वापस लौटा दिया। हाथी ने कहा- 'देखी आदमी की बुद्धिमानी। नियम सबके लिये नियम है और सब को उनका पालन करना चाहिए। कहते हैं- इन्हीं नियमों पर धरती टिकी है।