तीसरे रेल लाइन के लिए भोपाल से इटारसी के बीच हजारों पेड़ों को काटा गया। इनके बदले लाखों पौधे लगाकर उन्हें पेड़ बनाया जाना था लेकिन ये पौधे कहां लगाए, अब तक किसी को पता नहीं है। रेलवे के अधिकारी वन विभाग को रुपये देने की बात कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं तो वन विभाग को खुद ही नहीं पता कि रुपये कब और कितने मिले और उन रुपयों से किस जमीन पर कितने पेड़ लगाए ।
मामला भोपाल से इटारसी के बीच बिछाई गई तीसरी रेल लाइन का है, जिसके सभी रेलखंडों में काम पूरा हो चुकी है और ट्रेनें भी दौड़ने लगी है। भोपाल से इटारसी के बीच बरखेड़ा, बुदनी, औबेदुल्लागंज रेलखंड पड़ता है, जो कि सघन वनों के बीच से गुजरता है। यही नहीं, इस रेलखंड में रातापानी वन्यजीव अभयारण्य की सीमा भी लगती है। जिन पर वर्षों पुराने पेड़ लगे थे, जिन्हें रेल लाइन के नाम पर काटा गया था।
काटे गए पेड़ों के बदले करना था पौधा रोपण
काटे गए पेड़ों के बदले दो से तीन गुना पौधा रोपण करना था । यह पौधा रोपण सरकारी योजनाओं से अलग किया जाना था और लगाए गए पौधों की कायदा परवरिश की जानी थी, ताकि ये पेड़ बनकर पर्यावरण को लाभ पहुंचा सकें।
रेलवे ने वन विभाग को दी राशि
रेलवे के जबलपुर में बैठे अधिकारियों का कहना है कि रेल लाइन का काम रेल विकास निगम लिमिटेडकराता है। वहीं नोडल एजेंसी है। पेड़ काटने के बदले उसके जरिये रेलवे ने मप्र वन विभाग को मोटी रकम चुकाई थी। इसको वर्षों हो चुके हैं। राशि चुकाने के बाद की जिम्मेदारी रेलवे की नहीं है।
वन विभाग ने कैंपा में जमा कराई राशि
तब वन विभाग ने यह रकम कैंपा योजना में जमा कराई थी। इस योजना के तहत पहले से ही मप्र के कई स्थानों पर पौधे लगाए जाने की योजना थी। सूत्रों के अनुसार उसे ही रेलवे की तीसरी रेल लाइन के काटे गए पेड़ों के बदले पौधे लगाना बताया जा रहा है लेकिन तीसरी रेल लाइन के के लिए काटे गए पौधे रातापानी वन्यजीव अभयारण्य व आसपास के ईको सिस्टम को अतिरिक्त क्षति है जिसकी भरपाई के लिए अलग से योजना बनाकर आसपास के क्षेत्रों में पौधे लगाए जाने थे लेकिन नहीं लगाए गए।