भोपाल: आईएफएस संगठन के पदाधिकारियों की मुख्यमंत्री मोहन यादव और मुख्य सचिव वीरा राणा से मुलाकात नहीं हो सकी। ऐसे में एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री सचिवालय और सीएस कार्यालय को एपीएआर में किए गए बदलाव के विरोध पर प्रेजेंटेशन दिया।
इसमें संगठन ने आग्रह किया एपीएआर लिखने में वर्ष 2004 से प्रचलित व्यवस्था में बदलाव न हो। संगठन का कहना है कि इस संबंध में 2016 में भी इसी तरह की आदेश शासन द्वारा जारी किए गए थे।
संगठन ने अपने प्रेजेंटेशन में उल्लेख किया है कि अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों का एपीएआर अखिल भारतीय सेवा नियम 1970 के तहत जारी कार्यकारी निर्देशों द्वारा शासित होता है, जो अखिल भारतीय सेवा (प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट) नियम, 2007 के लिए प्रासंगिक हैं।
संगठन का कहना है कि एपीसीसीएफ तक प्रदर्शन, मूल्यांकन रिपोर्ट सीनियर आईएफएस अधिकारियों द्वारा लिखा जाना चाहिए। पीसीसीएफ स्तर तक के आईएफएस अफसरों के एपीएआर एसीएस और मुख्य सचिव ही लिखे।
संगठन ने यह भी कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह आदेश दिया गया था कि जिला कलेक्टर और मंडलायुक्त जिले में कार्यरत आईएफएस संवर्ग के डीएफओ और वन संरक्षक की एपीएआर नहीं लिख सकते आईएफएस संगठन डीओपीएंडटी के विचार से भी सहमत है कि यदि वन अधिकारी सचिवालय या अन्य विभागों में काम कर रहा है जहां उसका तत्काल पर्यवेक्षण अधिकारी गैर-वन अधिकारी है तो उसका सीआर. ऐसे अधिकारी द्वारा लिखा जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से स्मरण है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2004 में केंद्रीय कार्मिक विभाग ने यह व्यवस्था लागू की थी और सभी राज्यों के लिए अनिवार्य था। वैसे भी भारतीय वन सेवा, एक अखिल भारतीय सेवा, देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में से एक है, जिसका उद्देश्य वनों और वन्यजीवों का वैज्ञानिक प्रबंधन, सुरक्षा और संरक्षण करना है।
संगठन ने माननीय उच्चतम न्यायालय ने आईए 1995 की रिट याचिका (सिविल) संख्या 202 (टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत संघ और अन्य) का उल्लेख करते हुए अपने प्रेजेंटेशन में कहा है कि वन विभाग के अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्ट लिखने के लिए सक्षम प्राधिकारी के मुद्दे पर विचार किया था। पर्यावरण और वन मंत्रालय ने बाद में पत्र संख्या 22019/1/2001-IFS-1 दिनांक 8 नवंबर, 2001 के माध्यम से निर्देश जारी किए।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश दिनांक 22 सितंबर 2000 को एक विशेष संदर्भ में जारी किया गया था और इसे अन्य सेवाओं को कवर करने के लिए सामान्यीकृत नहीं किया जाना चाहिए। सीईसी का विचार है कि माननीय न्यायालय के दिनांक 22 सितम्बर 2000 के आदेश में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है।