सफलता की कहानी , एक कदम जागरूकता का, सौ कदम प्रगति की ओर


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स्टोरी हाइलाइट्स

सागर में बाल विवाह पर सख्त कार्रवाई, ज्योति तिवारी बनीं बेटियों की ढाल..!!

जब कानून संवेदनशील बनता है, तब इंसाफ़ केवल अदालत में नहीं, समाज के दिलों में उतरता है। सागर जिले के बण्डा क्षेत्र के ग्राम छापरी की तपती दोपहर में गाँव की चौपाल पर शादी की चर्चा जोरों पर थी “आज गोपाल ठाकुर के बेटे रामू की शादी है,” पर कोई नहीं जानता था कि उस दिन यह गाँव एक नई सोच की ओर कदम बढ़ाने वाला है। 17 वर्षीय रामू, जो कक्षा 11वीं में पढ़ता था और चिकित्सक बनने का सपना देखता था, की शादी 14 वर्षीय कुसुम से तय कर दी गई थी। समाज का दबाव था “अब लड़का बड़ा हो गया है, शादी कर दो,” लेकिन रामू का दिल पढ़ाई में था। वह यह नहीं चाहता था कि उसका बचपन यूँ ही समाप्त हो जाए। उसके दोस्त सोहन ने तब हिम्मत दिखाई और चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 पर फोन कर दिया। कुछ ही देर में विशेष किशोर पुलिस इकाई की प्रभारी अधिकारी ज्योति तिवारी अपनी टीम और स्थानीय पुलिस के साथ गाँव पहुँचीं। ढोल-नगाड़े बज रहे थे, बारात की तैयारी हो रही थी, लेकिन पुलिस जीप और सायरन की आवाज़ से सब ठहर गया।

परिवार के लोग पहले अनजान बने रहे, पर जब ज्योति तिवारी ने शांत और दृढ़ स्वर में कहा कि यह विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत अपराध है। लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष से कम है, इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता। गाँव में पहले विरोध हुआ, कुछ ने इसे परंपरा बताया। पुलिस अधिकारी ज्योति तिवारी ने कानून की धाराएँ समझाने के साथ मानवीय दृष्टिकोण से भी बात की। उन्होंने कहा बाल विवाह केवल एक परंपरा नहीं, यह एक ऐसा बंधन है जो बच्चों के भविष्य को बाँध देता है।” धीरे-धीरे माहौल बदला, सरपंच देवीसिंह, महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम और स्थानीय शिक्षकों की मदद से परिवार को समझाया गया। परिवार ने अंततः लिखित प्रतिज्ञा ली कि बच्चों की शादी केवल वयस्कता के बाद ही करेंगे। रामू और कुसुम की आँखों में राहत थी, जैसे किसी ने उनकी उम्र को फिर से लौटा दिया हो।

गौरझामर की राधा ने दिखाई हिम्मत

सागर जिले के ही गौरझामर गाँव में 16 वर्षीय राधा की कहानी ने भी सबका दिल जीत लिया। राधा का सपना पुलिस अधिकारी बनना था। जब पता लगा कि माता-पिता उसकी शादी तय कर चुके हैं, तो उसके सपने डगमगाने लगे, लेकिन उसने हार नहीं मानी। स्कूल में सुनी हुई बात उसे याद आई बाल विवाह अपराध है, मदद के लिए 1098 पर कॉल करें। उसने कॉल किया और पुलिस अधिकारी ज्योति तिवारी पुलिस टीम के साथ गाँव पहुँचीं। बारात जब गाँव की सीमा पर पहुँची, पुलिस सायरन की आवाज़ से सब ठहर गया। राधा की माँ ने कहा “दादी बीमार हैं, बस उसकी आख़िरी इच्छा है कि पोती की शादी देख लें।” यह सुनकर माहौल भावनात्मक हो गया, ज्योति तिवारी ने बड़ी संवेदनशीलता से समझाया माँ, आज अगर आप बेटी को पढ़ने देंगी, तो कल वही बेटी आपके नाम का मान बढ़ाएगी। पुलिस अधिकारी ज्योति तिवारी की समझाईश से धीरे-धीरे परिवार मान गया, और विवाह रोक दिया गया। राधा ने स्कूल लौटते हुए मुस्कुराकर कहा जब समाज और पुलिस साथ खड़े हों, तब कोई भी परंपरा किसी बालिका का भविष्य नहीं छीन सकती।”

जागरूकता से परिवर्तन तक- ज्योति तिवारी की पहल

इन दोनों घटनाओं के बाद पुलिस अधिकारी ज्योति तिवारी ने महिला एवं बाल विकास विभाग और शिक्षा विभाग के साथ मिलकर ग्राम पंचायतों व स्कूलों में “बाल विवाह रोकथाम एवं शिक्षा प्रोत्साहन अभियान” शुरू किया। अब सागर जिले के कई स्कूलों में हर महीने सत्र होते हैं। जहाँ बच्चे और अभिभावक सीखते हैं कि शादी तब ही, जब शिक्षा पूरी हो। गाँवों में ज्योति तिवारी का नाम अब “बेटियों की प्रहरी” के रूप में जाना जाता है। उनकी पहल ने यह साबित कर दिया कि कानून की सख्ती अगर संवेदनशीलता से जोड़ी जाए, तो बदलाव निश्चित है। हर उस विवाह को रोकना, जो उम्र से पहले हो रहा था किसी बच्चे के भविष्य को जीतने जैसा है।