दुनिया में उथल-पुथल का कारण बच्चों के गलत पालन-पोषण में छुपा है

स्टोरी हाइलाइट्स
दुनिया में उथल-पुथल का कारण बच्चों के गलत पालन-पोषण में छुपा है
-सरयूपुत्र
दुनिया में तमाम प्रगति के बावजूद चारों तरफ उथल- पुथल है.लोग एक- दूसरे को डरा कर कुछ हासिल करना चाहते हैं. आइये, इसके पीछे बुनियादी कारण पर कुछ विचार करते हैं.मनुष्य एक ऐसा जीव है, जो जन्म के समय सबसे अधिक पराश्रित होता है. पशु-पक्षियों और अन्य जीवों के बच्चों को जीवन शुरू करने के लिए मां-बाप की उतनी आवश्यकता नहीं होती, जितनी मनुष्य को.पशुओं के बच्चे जन्म के साथ चलने लगते हैं, जबकि मनुष्य के बच्चों को खड़े होने में कुछ वर्ष लग जाते हैं.
इसका सीधा मतलब है, मनुष्य और मनुष्यता लालन- पालन पर निर्भर करती है. लालन-पालन की नींव ही कमजोर होगी तो स्वास्थ्य और संस्कार की दृष्टि से मनुष्य कमजोर होगा. सृष्टि के लिए बच्चों के सही लालन- पालन की अहम जिम्मेदारी माता-पिता की है.कोई भी माता-पिता बच्चे पैदा करने के लिए तो चिकित्सकों से संपर्क करते हैं और,उसके स्वस्थ्य के सम्बन्ध में उनकी सलाह लेते हैं , लेकिन जन्म के बाद उसको पालने के मानदंडों का कोई प्रशिक्षण नहीं प्राप्त करते.
पुराने और आधुनिक समय में बच्चों को पालने के तरीकों में काफी बदलाव आ गया है.पहले हर परिवार में 4 अथवा 6 बच्चे होना साधारण बात थी. सामूहिक परिवार में उनका पालन-पोषण होता था. दादा-दादी और नाना-नानी सहित अन्य बड़ों का बच्चों पर बहुत गहरा प्रभाव होता था. बच्चों को डराकर नहीं, प्रेम और आचरण के द्वारा संस्कारित किया जाता था.| कम से कम 5 साल बाद विद्यालय भेजने की तैयारी की जाती थी. इसके पहले बच्चे के भीतर संस्कार के बीज आरोपित हो जाते थे.
आजकल बच्चों की परवरिश और खानपान के तौर-तरीके बदल गए हैं.
वर्तमान में माता-पिता के पास बच्चों को देने के लिए संसाधन और सामान तो हैं, लेकिन समय का अभाव है. वे उन्हें क्वालिटी टाइम नहीं दे पाते. इस कारण बच्चों के साथ अधिक समय रहने से वह जोकुछ बिना बोले या बताएं सीखता था,वह मौका उसे बहुत कम मिल रहा है. बच्चा 6-8 माहका भी नहीं होता,और दूध पिलाते समय उसे मोबाइल पर कोई गानासुनाने या कोई कार्टूनदिखाना शुरू कर दिया जाता है.| साल दोसाल बाद तो ऐसी स्थिति बन जाती है, कि बच्चा बिना मोबाइल के दूध ही नहीं पीता.| माता-पिता ने बच्चे के हाथ से मोबाइल छीना तो वह "रो-रो" कर बुरा हाल कर देता है.बच्चा रोए नहीं, इसलिए उसे फिर मोबाइल पकड़ा दिया जाता है.| यहीं से बच्चे की जिद शुरू हो जाती है.
एक और बात जो देखी जा रही है वह यह है कि माता-पिता, जाने - अनजाने डर दिखाकर बच्चे को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं.यह घातक प्रवृत्ति बच्चे के अंतर्मन मे ऐसी बैठती है कि पूरे जीवन घर-परिवार समाज और राष्ट्र के लोक व्यवहार में उसे अपनाता रहता है. बच्चों को स्कूल भेजने में भी आज बहुत जल्दबाजी की जाती है. विदेशों में, जहां प्रगति हमसे ज्यादा है,5 साल से पहले बच्चों को स्कूल में दाखिल नहीं करते. लेकिन हमारे यहां ढाई साल 3 साल में बच्चों को स्कूल में डाल देते हैं. खेलने - कूदने का उन्हें पूरा मौका नहीं मिलता. स्थिति तो यह हो गई है कि बच्चे को सोते से उठाकर स्कूल बस में बैठा देते हैं और वह स्कूल में जाकर सो जाता है. लेकिन छोटे बच्चों को स्कूल भेजना फैशन हो गया है. साथ ही स्कूल से लौटने के बाद टयुशन भी बच्चे पर लाद दी जाती है.अगर स्कूल पढ़ाई नहीं करा सकते तो फिर कोचिंग को भी स्कूल क्यों नहीं मान लिया जाए.
आज समाज में जिस तरह की परिस्थितियां सामने हैं, जिस तरह की उथल-पुथल है, उसका हल मनुष्य को बचपन से ही संस्कारित और सही दृष्टि से शिक्षित करने में छिपा हुआ है.बचपन में ही बच्चों को डरा कर या सौदेबाजी कर उनसे कुछ करने के लिए कहा जाता है, जिसे वह कर तो देता है लेकिन यह लालच उसके मन मे गहरा पैठ जाता है.जब वह बड़ा होता है तो वह भी उसी तरह का व्यवहार समाज में लोगों के साथ करता है.कुछ भी हासिल करने के लिए वह भी वैसा ही लालच देने और डराने की कोशिश करता है.
जीवन के हर क्षेत्र में यदि बहुत गहराई से देखें, तोहर व्यक्ति में वही भाव काम कर रहा है, जोउसके मन में बचपन में विकसित हुए. उसे बचपन में प्यार से अनुशासन नहीं सिखाया गया,उसे डर और डंडे से कुछ करने के लिए कहा गया. असहाय होने के कारण मजबूरी में उसने वह किया, लेकिन उसके अंतर्मन में वह बात बैठ गई किदरकार या लालच देकर कुछ भी कराया जा सकता है. वह उसे समाज में लागू करता है.
शासक, हो चाहे राजनेता, सबके व्यवहार का यदि ध्यान से अध्ययन किया जाए तो हम यह पाएंगे कि उनकी भी यही कोशिश होती हैकि डरा कर या लालच देखर अपना काम पूरा करो. अगर हम अपने जीवन से भी सबक लें तो याद होगा कि कई बार घर मेंअभिभावकों द्वारा बच्चों को यह लालच दिया ऐसा करेगा तो तुझे टॉफी देंगे. उसके मन में लालच का भाव गहरे तक चला जाता है.राजनेता आए दिन लोकलुभावन वायदे कर सत्ता की सीढ़ियांचढ़ते हैं.| यह संस्कार भी बचपन से ही उनमें पड़ा है.
कुल मिलाकर यदि हम बच्चों के लालन-पालन में लालच, डर और लेन-देन की बजाए प्रेम से संस्कार के साथ करने की परंपरा फिर से चालू करें और माता-पिता बच्चों को सामान भले ही कम दें, लेकिन समय ज्यादा से ज्यादा दें, ताकि वह आचरण से सीख सकें.| जल्दी स्कूल में डालना कोई लाभदायक नहीं है. खेलने- कूदने का पूरा मौका बच्चों को मिलना चाहिए.| बच्चों का सर्वांगीण सही दृष्टि से विकास होगा तो समाज और राष्ट्र भी सही दिशा में जाएगा.|