ईश्वर का वरदान है बुढ़ापा, जानिये इस उम्र में स्वस्थ रहने के टिप्स


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स्टोरी हाइलाइट्स

वे लोग भाग्यशाली हैं जिनको ईश्वर उम्रदराज़ होने का वरदान देता है, ये वरदान अभिशाप न बने उसके सरल-से उपाय हैं यह 12 सूत्र..!

बुढ़ापा तो सबको आना है! दरअसल, वे लोग भाग्यशाली हैं जिनको ईश्वर उम्रदराज़ होने का वरदान देता है। ये वरदान अभिशाप न बने उसके सरल-से उपाय हैं। हमें बस थोड़ा अनुशासन, कुछ ऐहतियात और थोड़ी समझदारी की आवश्यकता है। उम्र की इस अवस्था को समझना और उसकी सीमाओं का सम्मान करना है, बस !

1. बुढ़ापे को स्वीकार करें। इस बात पर गर्व भी करें कि हमारे पास जिंदगी का जितने सालों का अनुभव है वो औरों के पास नहीं है। हम अनुभवों में समृद्ध हैं। इस अमीरी के आनंद को महसूस करें।

2. खानपान में अराजक न हों। हमारी खाने की आदतें हमारे वजूद का हिस्सा बन जाती हैं, पर अब आपको उन पर कंट्रोल करना होगा, क्योंकि उम्र के साथ हमारी कोशिकाओं में मेटाबोलिक गतिविधियां कम हो जाती हैं। कारख़ाने में काम धीमा हो जाता है। ईंधन की ज़रूरत कम हो जाती है। तो ज़्यादा ईंधन मत डालिए। अब आप भकोसकर नहीं खा सकते, वरना यह अतिरिक्त ईंधन कोशिकाओं को चोक करेगा, वहां कचरे का ढेर जैसा सड़ेगा, बस वज़न बढ़ जाएगा। अतः कम खाएं। एक रोटी की भूख छोड़कर उठ जाएं। हां, कम खाएं पर वो संतुलित पोषक आहार हो, ताकि कम खाने के चक्कर में हम कुपोषण के शिकार न हो जाएं।

3. पानी पीते रहें। बुढ़ापे में प्यास कम लगती है। इसी कारण बूढ़ा आदमी पानी कम पीने लगता है और कई बार डीहाइड्रेशन का शिकार हो जाता है । इसीलिए, प्यास लगे न लगे, पानी पर्याप्त मात्रा में पीते रहें।

4. टीके लगवाएं। जिस तरह से हम अपने बच्चों का वैक्सीनेशन कराते हैं, साठ साल से ऊपर के लोगों के लिए भी कुछ वैक्सीन्स तय की गई हैं। निमोनिया और इन्फ्लुएन्जा बुढ़ापे की जानलेवा बीमारियां साबित हो सकती हैं। इन्फ्लुएन्जा वैक्सीनेशन हर साल अप्रैल के आस-पास करा लें। ये हर साल करें क्योंकि इन्फ्लुएन्जा का रोगाणु हर साल कुछ बदल जाता है। निमोकॉकस वैक्सीनेशन आपको निमोनिया से बचाएगा। इसे चार साल में एक बार ज़रूर लगवा लें। यदि पिछले दस साल से टिटेनस की वैक्सीन नहीं लगी है तो हर दस साल के अंतराल पर लगवाते रहें।

5. जांचें करवाते रहें। कोई कष्ट या तकलीफ़ न भी हो तब भी डॉक्टर की सलाह लेकर अपनी कुछ बुनियादी ख़ून, पेशाब की जांचें एक-दो साल में ज़रूर कराते रहें। ब्लड शुगर, किडनी फंक्शन, लिपिड प्रोफाइल, ईसीजी, थॉयराइड के अलावा एक जांच पीएसए (प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन) भी कराएं जिससे प्रोस्टेट के कैंसर की आशंका दूर होती है। एक जांच उम्र के साथ हड्डियों के कमज़ोर होने (ऑस्टियोपोरोसिस) की भी होती है। इसे डीएक्सए कहते हैं। इसे दो-तीन साल में एक बार करा लें, क्योंकि ऑस्टियोपोरोसिस का बहुत अच्छा इलाज आजकल उपलब्ध है। इस उम्र में औरतों को स्तन कैंसर होने की आशंका भी पच्चीस प्रतिशत बढ़ जाती है जो अक्सर बहुत दिनों तक, बिना किसी तकलीफ़ के अंदर ही अंदर पल सकता है। खुद के स्तनों को टटोलकर किसी गांठ के लिए जांचना (सेल्फ पेल्पएशन) सीख लें और नहाते समय यदा-कदा करते रहें। टटोलने पर ज़रा सी भी गांठ का संदेह हो तो डॉक्टर को तुरंत दिखलाएं। शुरुआत में इस कैंसर को सौ प्रतिशत ठीक किया जा सकता है।

6. नियमित व्यायाम करें। जो व्यायाम आपको आनंद दे, वही करें तो बेहतर जिसे मज़े से कर सकें, वह व्यायाम चुनें: पैदल चलें, हल्की जॉगिंग करें, साइकल चलाएं, तैराकी करें, नृत्य करें कुछ भी शारीरिक श्रम करें। रोज़ कम-से-कम पंद्रह मिनट से लेकर पैंतालीस मिनट तक व्यायाम करें। बहरहाल, उत्साह में आकर सामान्य से ज्यादा एक्सरसाइज़ न करने बैठ जाएं, थकने की हद तक कभी कुछ न करें। उतना ही तेज़ चलें जितना शरीर साथ दे। दूसरों के साथ देखादेखी में कोई होड़ न करें। बीच-बीच में कुछ बैलेंसिंग, स्ट्रेचिंग और हल्के भारोत्तोलन के व्यायाम करें। नियमित व्यायाम के अलावा भी दिनभर सक्रिय रहें। किसी-न-किसी बहाने घर में चलते-फिरते रहें। घरेलू कामों में ख़ुद को व्यस्त रखें। एक ही जगह पड़े या बैठे न रहें। मानसिक तौर पर भी सक्रिय रहें। पढ़ें। बातें करें। सामाजिक कामों में भाग लें। मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही आवश्यक है जितना कि शारीरिक ।

7. तकलीफ़ों को गंभीरता से लें। इस उम्र में विटामिन डी, बी12 और कैल्शियम की कमी होना बड़ा आम है। इनकी कमी तुरंत पता भी नहीं चलती। कभी थकान, हाथ-पांव में दर्द, यहां-वहां झुनझुनी का होना, मुंह में छाले, हड्डियों में दर्द होना, ये कमियां बस अजीब-सी तकलीफ़े पैदा करती हैं जिनको डॉक्टर तक बुढ़ापे से जोड़कर देखा करते हैं। बुढ़ापे में थकान और हड्डियों में दर्द हो तो इसे बुढ़ापा मानकर नज़रअंदाज़ न करें। यदि आप शाकाहारी हैं तो दूध, दही या पनीर ज़रूर लें। शाकाहारी भोजन में दूध और इससे बने पदार्थ ही बी12 का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इनमें कैल्शियम भी होता है। बेहतर होगा कि हम किसी अच्छे डायटीशियन से सलाह लें कि इस उम्र में क्या खाएं कि इन विटामिन्स आदि की कमी न हो सके।

8. संभलकर चलें। बुजुर्ग के यूं ही लड़खड़ाकर गिरने और चोट खाने की आशंका पैंतीस से लेकर पचास प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इस उम्र में अक्सर हाथ सामने करके नहीं गिरा करते। बूढ़े तो अक्सर सीधे धड़ाम से ही गिरते हैं। इस उम्र में घुटनों की ऑस्टियोपोरोसिस, नजर कमज़ोर होना, मांसपेशियों की शिथिलता, दिमाग़ में कम रक्तप्रवाह आदि गिरने की आशंका को बढ़ाते हैं। संतुलन के व्यायाम नियमित रूप से करें कोई भी दवाई संभलकर और डॉक्टर को बताकर ही लें। दवाओं के साइड इफेक्ट्स से भी आप गिर सकते हैं। गिरें तो डॉक्टर से अपनी सब दवाएं बताकर सलाह लें कि इनके कारण तो नहीं गिर पड़े हम ? कहना ये है कि बुढ़ापे में चलते हुए सावधानी बरतने की ज़रूरत है।

9. अजीब व्यवहार पर ग़ौर करें। यह सूत्र परिजनों के लिए है। घर में कोई वृद्ध हों और वो कुछ दिनों से बहकी-बहकी बातें करने लगें, कुछ ज़्यादा ही सो रहे हों, आसपास की चीज़ें और लोगों की पहचान में गड़बड़ाएं तो हम इसे अक्सर उनकी उम्र की एक सामान्य बात मानकर अनदेखा कर जाते हैं। ऐसा न करें ये किसी दिमाग़ी बीमारी, गंभीर इंफेक्शन या डिमेंशिया की शुरुआत हो सकती है। अजीब व्यवहार को हमेशा सठियाना मानकर नज़रअंदाज़ न करें।

10. पेशाब संबंधी लक्षण न छिपाएं। पेशाब की कई तरह की परेशानियां बुढ़ापे का हिस्सा मान ली जाती हैं। ख़ासकर औरतें तो घर में यह बात किसी को बताती ही नहीं पेशाब का कपड़ों में छूट जाना, उस पर नियंत्रण न रह जाना, खांसने या ज़ोर से हंसने पर पेशाब निकल जाना, रुककर आना, धार पतली हो जाना- ऐसी तकलीफ़ के प्रति अलर्ट रहें पेशाब संबंधी लक्षणों की शुरुआत में ही डॉक्टर से मिलें। आजकल इन सबका बड़ा सटीक इलाज संभव है। इनको छुपाएं नहीं।

11. पोज़ीशन बदलते रहें। बुढ़ापे में बेड सोर अर्थात बैठने और लेटने की जगह पर हड्डियों के दबाव से कमज़ोर खाल में अक्सर घाव बन सकते हैं। इससे बचाव हेतु लंबे समय तक एक ही पोज़ीशन में बैठे या लेटे न रहें। घर के बूढ़े बुजुर्ग प्राय: एक जगह बैठे या लेटे रहते हैं। इनकी पीठ, नितंब, एड़ी, टखनों पर घाव बन जाते हैं जो आसानी से ठीक नहीं होते। इनका तुरंत इलाज कराएं वरना ये गहरे होकर बिगड़ सकते हैं, इनसे पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल सकता है। (सेप्टीसीमिया) जो जानलेवा भी हो सकता है।

12. सावधानी से चलाएं गाड़ी। बुढ़ापे में हमारे रिफ्लेक्स धीमे हो जाते हैं और अचानक कोई गाड़ी या व्यक्ति सामने आ जाए तो हम उतनी तेज़ी से रिएक्शन नहीं कर पाते। यह दुर्घटना संभावित उम्र है। संभलकर, आराम से ड्राइविंग करें।