पितामह भीष्म ने अम्बा का अपहरण क्यों किया ?
सम्पूर्ण स्त्री होने का गर्व हे मुझमें। सौम्य हूँ,सुशील हूँ। सौन्दर्यवान,नवयौवना। क्या कमी है मुझमें। संसार के सभी स्त्री-पुरूषों का अपना एक सपना होता है? ऐसा ही सपना मैंने भी देखा है-सौभराज शाल्व। उसके पास विमान भी है। एक अत्यन्त गौरवशाली,वीर युवक योद्धा। मेेरे पिता काशीराज ने मेरी उम्र को देखकर उसको योग्य वर भी मान लिया है। हम दोनों एक दूसरे को मान देते हैं। किंतु इसी बीच एक अप्रत्याशित घटना ने मेरा जीवन नर्क बना दिया।
स्वयं को भीष्म कहलवाने वाले गंगादत्त देवव्रत ने काशी से हम तीन बहनों के आयोजित स्वंयवर से हमारा हरण कर लिया। यद्यपि मेरे पिता ने कुरूवंश को स्वयंवर में आमंत्रित भी नहीं किया है। हम तीन बहनों,मैं अम्बा,अंबिका और अंबालिका का स्वयंवर चल रहा है। बिन बुलाये मेहमान भीष्म ने हम तीनों को हरण कर राजाओं को युद्ध करने की चुनौती दे डाली। सब राजाओं की तो घिग्घी बंध गई किंतु वीर योद्धा शाल्व भीष्म से भिड़ गया। घनघोर युद्ध में विजय भीष्म की हुई। किंतु दोनों की धनुर्विद्या एवं युद्ध कला देख मैं आश्चर्य चकित रह गई। एक ओर मेरे प्रति आकर्षित शाल्व का प्राणांतक संघर्ष और दूसरी ओर दर्जनों महान राजाओं के बीच से अकेले तीनों बहिनों को बलात हरण करने वाले दुस्साहसी भीष्म।
स्वयंवर की प्रथा है कि हरण करने वाले को ही धर्मत: कन्या का वरण करना पड़ता। किंतु जब हम बहिनें हस्तिनापुर आईं तो दृश्य बदला हुआ है। स्त्री के प्राकृतिक अधिकार और स्त्रीत्व पर इतना कुठाराघात। कुरू साम्राज्ञी सत्यवती के दो पुत्र हैं। चित्राँगद और विचित्र वीर्य। बड़े चित्राँगद,सम्राट हैं। वे गंधर्व राज चित्राँगद के आक्रमण में मारे गए हैं। अब जो दूसरे भाई विचित्र वीर्य सम्राट बने हैं-अत्यंत रूग्ण,निर्वीय और अशक्त हैं। बताते हैं कि वे महालय की दासियों से संयुक्त होते रहते हैं। वे उम्र में भी हम तीनों बहिनों से छोटे हैं। मात्र अठारह वर्ष के। जबकि मैं 30 वर्ष,मँझली 25 वर्ष तथा छोटी 20 वर्ष की है।
भीष्म ने अपने इसी रूग्ण भाई के लिए पशुओं की तरह,वह भी जीवन के परम सौभाग्य स्त्रीकर्म हेतु,हमारा हरण किया। हमको उठा लिया। यह अन्याय है। हरण भीष्म ने किया तो वरण भी उन्हीं को करना होगा। किंतु नहीं। समरथ को नहीं दोष गुसाईं। तीनों के लिए एक ही पति-वह भी अठारह वर्षीय सम्राट,जो रूग्ण है। दासियों में संयुक्त रहने वाला। कामातुर। क्या वह हमारे पति होने योग्य है? समाज बताये कि,क्या यह स्वीकार्य योग्य है? मैंने विद्रोह कर दिया। विवाह करूंगी तो सिर्फ भीष्म के साथ अन्यथा प्रतिशोध लूँगी। जब भीष्म को ज्ञात हुआ कि मैं शाल्व की अनुरागिनी रही हूँ। उन्होंने मुझको शाल्व के पास भेजने की आज्ञा दी। मेरा यह तर्क भी नहीं माना कि-मेरा हरण करने वाले उन्हीं को तो मेरा धर्मत: वरण करना चाहिए। यह संभव था कि हरण के पूर्व तक तो मैं शाल्व की हो सकती थी किंतु अब? अब मैं केवल भीष्म की ही हो सकती हूँ।
अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा के कारण भीष्म कुछ भी सुनने को तैयार नहीं। उन्होंने अंबिका और अंबालिका का विवाह विचित्र वीर्य से करा दिया जो धर्मत: उचित नहीं। मुझको शाल्व के पास भेज दिया। किंतु मैं इतनी सरलता से मानने वाली नहीं। मेरे स्त्रीत्व को जो आघात लगा। यह प्रयास उसका परिमार्जन नहीं। मैं भगवान परशुराम के सरस्वती नदी के किनारे स्थित अस्थायी आश्रम में पहुँची। यहीं पर महर्षि शेखावत्य और महर्षि जाबालि भी उपस्थित हैं। भृगुश्रेष्ठ परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म को भी बुला भेजा। भृगु का किसी को बुलाने का तात्पर्य समझ भीष्म के मस्तक पर प्रश्वेतबिंदु निकल पड़े। मेरे नाना राजा होत्रवाहन भी वहाँ आ पहुँचे हैं। खासी चर्चा हुई। यद्यपि कोई हल नहीं निकला। मैं शाल्व के राज्य सौभ गई। उस वीर शिरोमणि ने भी तो मुझको यह कहकर लौटा दिया कि यदि मैं-तुम्हारा हरण करता तो विवाह भी अवश्य करता। किंतु अब,चूंकि तुम्हारा हरण भीष्म ने किया है अत: मैं अधर्म द्वारा तुम्हारा वरण नहीं कर सकता। मैं उसकी बात से सहमत हूँ। मैं हरण और वरण तथा वरण और हरण के चक्रव्यूह में उलझ रही हूँ।
मैं मन मारकर भीष्म के सारथि वीरसेन के साथ हस्तिनापुर लौट आई। भीष्म के प्रति मेरा हृदय कठोर हो गया मेरे श्राप के कारण ही शिखण्डी वाली घटना हुई। रूग्ण और असहाय विचित्रवीर्य तो शय्या पर ही पड़ा रहता है। अल्पायु में अनेक स्त्रियों के सम्पर्क में आने से निर्वीय हो चुका सम्राट मेरी दोनों बहनों से कभी मिला ही नहीं। वे साम्राज्ञी तो हैं किंतु व्यवहारिक पत्नी नहीं। अब तो निर्वीय सम्राट की मृत्यु भी हो गई। कुरू राज्य में उत्तराधिकार का संकट आ गया।
राजमाता सत्यवती ने अपनी चिंता भीष्म पर व्यक्त की। निर्णय हुआ कि नियोग द्वारा संतोनोत्पत्ति हो। राजमाता ने मत्स्यकन्या रहते पाराशर ऋषि से प्राप्त अपने पुत्र महर्षि वेद व्यास को वुलवाया। उन्हें अंबिका और अंबालिका में नियोग द्वारा पुत्र पैदा करने हेतु नियुक्त किया। ऋषि ने सर्वप्रथम अंबिका को संयुक्त किया। धर्मत: उसका जो पुत्र धृतराष्ट्र नाम से हुआ-वह स्वस्थ और सुंदर तो है किंतु उसके नेत्रों में ज्योति नहीं है। क्योंकि संयुक्त होते समय अंबिका ने भय वश नेत्र बंद कर लिए। दूसरी बहिन,अंबालिका से उत्पन्न पुत्र पाण्डु रोग ग्रस्त है। पीत। अंबालिका भी भय से पीली पड़ गई थी। अत: पुत्र भी शक्तिहीन और पांडू रोग से ग्रसित हुआ। अब राजमाता ने पुन: ऋषि को बुलाया। अंबिका से पुन: नियोग हेतु आदेश दिया। किंतु इस बार उसने अपनी दासी मर्यादा को महर्षि के पास भेज दिया-जिससे पुत्र तो उत्पन्न हुआ किंतु हमेशा कहलाया। दासी पुत्र। विदुर।
निष्कर्षत: नेत्रहीन होने के कारण धृतराष्ट्र सिंहासन पर बैठने योग्य नहीं है। पांडू,सम्राट तो बना किंतु कर्दम ऋषि के श्राप वश पत्नी माद्री के स्पर्श करते ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। विदुर दासी पुत्र होने के कारण मात्र महामात्य ही बन सका। साम्राज्य का सुखद उपभोग कोई भी तो नहीं कर सका। मेरा सुंदर जीवन निरर्थक हो गया किंतु उनका तो पूरा परिवार ही नष्ट हो गया।
लेखक - रमेश तिवारी