भोपाल 50 करोड़ की लागत के बावजूद, नगरनिगम की बिल्डिंग से मीटिंग हॉल नदारत, उठे सवाल


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स्टोरी हाइलाइट्स

भोपाल का नया डेवलपमेंट मॉडल, नगर निगम की 50 करोड़ रुपये की बिल्डिंग में मीटिंग हॉल नहीं है, मेयर का कहना है कि उन्होंने इस बारे में कलेक्टर को फोन किया है। अब, नए हॉल के लिए बिल्डिंग के पास 0.25 एकड़ ज़मीन मांगी गई है..!!

अजब-गजब प्रदेश मध्य प्रदेश में आए दिन अजीबो-गरीब चीजें देखने को मिलती रहती है। अब राजधानी भोपाल में नए नगर निगम हेडक्वार्टर की बिल्डिंग तो बनकर तैयार हो गई, लेकिन अधिकारी मीटिंग हॉल बनाना ही भूल गए।

बिल्डिंग के निर्माण पर ₹50 करोड़ खर्च हुए, लेकिन वे मीटिंग हॉल बनाना भूल जाने से अब निगम की किरकिरी हो रही है। हालांकि, निगम के बड़े नेताओं का दावा है कि बिल्डिंग के डिज़ाइन में मीटिंग हॉल शामिल नहीं था। इस वाकये के बाद भोपाल में नगर निगम की प्लानिंग और इंजीनियरिंग पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठे हैं। 

विधानसभा नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा, 

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने भोपाल में ₹50 करोड़ की लागत से नगर निगम की आठ मंजिला इमारत बनवाई। इसके बाद उन्हें याद आया कि इसमें पार्षदों की बैठक के लिए मीटिंग हॉल ही नहीं है। 

भूल सुधार के लिए ₹10 करोड़ के अतिरिक्त खर्च से मीटिंग हाल बनाने का फैसला लिया। चाहे कानून हों, योजनाएँ हों या अधोसंरचनाएँ; भाजपा सरकार की दूरदर्शिता और मैनेजमेंट की भारी कमी स्पष्ट दिखती है। एक तरफ प्रदेश पर चार लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है, सरकार हर रोज़ ₹266 करोड़ का कर्ज़ लेकर सरकार चला रही है , वहीं दूसरी तरफ जनता के पैसे इस तरह लुटाए जा रहे हैं। कुप्रबंधन और लापरवाही को ‘विकास’ बताने का काम भाजपा ही कर सकती है। 

दरअसल तुलसी नगर में सेकंड स्टॉप के पास करोड़ों रुपये की लागत से बनी नगर निगम की नई बिल्डिंग अब मीटिंग हॉल न होने की वजह से विवादों में है। इसी मीटिंग हॉल में निगम की मीटिंग होती है, जहाँ काउंसिल भोपाल शहर के लिए अलग-अलग योजनाओं और प्रस्तावों को मंज़ूरी देती है। मीटिंग हॉल! वो जगह जहाँ पार्षद बैठकर शहर का भविष्य तय करते हैं। इसके बिना कॉर्पोरेशन अधूरा है, जैसे शादी का लड्डू बिना शरबत के।

निगम चेयरमैन किशन सूर्यवंशी ने बताया कि, “डिज़ाइन में मीटिंग हॉल शामिल नहीं था। शुरू में, यह तय हुआ था कि केबिन यहीं होंगे, लेकिन काउंसिल की मीटिंग पुरानी ISBT बिल्डिंग में होंगी। अब, ऑब्जेक्शन के बाद, पास में ही नया हॉल बनाया जाएगा।”

50 करोड़ रुपये खर्च हो गए, लेकिन मीटिंग हॉल को भूल गए। किसी ने DPR (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) या कंस्ट्रक्शन के बारे में नहीं सोचा। क्या अधिकारियों का ध्यान सिर्फ़ अपने क्वार्टर पर था? जब मामला बढ़ा, तो कॉर्पोरेशन ने सफ़ाई जारी की, लेकिन वह भी आधी-अधूरी थी। 

मेयर मालती राय ने कहा,

“यह अधिकारियों की गलती है। मीटिंग हॉल के बिना कॉर्पोरेशन अधूरा है, क्योंकि काउंसिल ही कॉर्पोरेशन चलाती है।”

मेयर ने कहा कि उन्होंने इस मामले पर बात करने के लिए कलेक्टर को बुलाया है। बिल्डिंग के पास 0.25 एकड़ ज़मीन के लिए रिक्वेस्ट की गई है, जहाँ नया हॉल बनाया जाएगा।लेकिन सवाल यह है कि इतनी बड़ी फेलियर कैसे हो सकती है? मीटिंग हॉल जैसी बेसिक चीज़ को भूल जाना? यह सिर्फ़ 50 करोड़ की बात नहीं है; यह भोपाल के प्लानिंग सिस्टम पर सवाल खड़े करता है।