इस्लाम का मूल स्त्रोत ‘क़ुरआन' नामक वह ईशग्रंथ है, जिसकी ऐतिहासिकता व प्रामाणिकता के विश्वसनीय होने पर संसार के सभी निष्पक्ष व पूर्वाग्रहरहित विद्वानों, बुद्धिजीवियों एवं शोघकर्ताओं ने पूर्ण विश्वास ज़ाहिर किया है। यह आरम्भ से अंत तक, शब्दश: ईश्वरीय वाणी है, जो किसी भी मानव-हस्तक्षेप से मुक्त, पवित्र ईशग्रंथ है। इसमें पूरे मानव जीवन का विधान और मार्गदर्शन है। इसमें इंसान की हैसियत, उसे पैदा करने का उदेश्य, ईश्वर की सही पहचान, मनुष्य व ईश्वर के बीच सम्बन्ध, ईश्वर के प्रति मनुष्य के कर्तव्य दूसरे इंसानों के प्रति कर्तव्य-अधिकार, उपासना की वास्तविकता व पद्धति, मृत्यु-पश्चात् जीवन की व्याख्या विस्तार से वर्णित हुई है। पारलौकिक जीवन से सम्बन्धित क़ुरआन की बहुत सी आयतों में से कुछ के भावानुवाद यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
- ‘‘उस दिन हर व्यक्ति को उसकी कमाई का बदला पूरा-पूरा दे दिया जाएगा और किसी के साथ अन्याय न होगा।‘‘
- ‘‘और कर्म-पत्र सामने रख दिया जाएगा। उस वक़्त तुम देख लोगे कि अपराधी लोग अपने जीवन-ब्यौरे से डर रहे होंगे और कह रहे होंगे, ‘‘हाय हमारी तबाही! यह कैसा रिकार्ड है कि हमारी कोई छोटी-बड़ी गतिविधि ऐसी नहीं रही जो इस में उल्लिखित न हो। जो-जो कुछ उन्होंने किया था वह सब अपने सामने मौजूद पाएँगे और उस वक़्त तेरा रब किसी के साथ तनिक भी अन्याय न करेगा।''
- ‘‘उस दिन के अपमान और मुसीबत से बचो जबकि तुम ईश्वर की ओर वापस होगे। वहीं हर व्यक्ति की अपनी कमाई हुई नेकी या बुराई का पूरा-पूरा बदला मिल जाएगा।''
- ‘‘कोई शब्द उस के मुँह से नहीं निकलता जिसे रिकार्ड करने के लिए एक निरीक्षक मौजूद न हो।''
- ‘‘तुममें से कोई व्यक्ति चाहे ज़ोर से बात करे, चाहे धीरे से, कोई अन्धेरे में हा या दिन के उजाले में चल रहा हो, उसके बारे में ईश्वर के लिए सब बराबर है।''
- ‘‘अन्ततः हर व्यक्ति को मरना है और तुम सब अपना पूरा-पूरा बदला क़ियामत के दिन पाने वाले हो। सफल वास्तव में वह है जो वहाँ नरक की आग से बच जाए और स्वर्ग में दाख़िल कर दिया जाए। रहा यह संसार, तो यह केवल धोखे की चीज़ है।''
- ‘‘क्या इंसान यह समझ रहा है कि हम उसकी हड्डियों को इकट्ठा न कर सकेंगे? क्यों नहीं? हम तो उसकी उंगलियों की पोर-पोर तक ठीक-ठीक बना देने में सक्षम है। मगर इंसान यह चाहता है कि आगे भी दुष्कर्म करता रहे।''
हम्मद जैनुल आबिदीन मन्सूरी