स्टोरी हाइलाइट्स
हिन्दू धर्म के सबसे नटखट देवता है भगवान श्री कृष्ण ,जिन्हें न केवल अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है अपितु उनकी भक्ति भी अतिरिक्त लाड़-ओर प्रेम से भरपूर होती है
हिन्दू धर्म के सबसे नटखट देवता है भगवान श्री कृष्ण ,जिन्हें न केवल अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है अपितु उनकी भक्ति भी अतिरिक्त लाड़-ओर प्रेम से भरपूर होती है कृष्ण को जहाँ उनकी बचपन की लीलाओं के बालकृष्ण रूप के अनुसार माखनचोर,छलिया,कन्हैया कहते हैं , वहीं उनके कुरुक्षेत्र में दिए गए गीता के ज्ञान के अनुसार योगेश्वर कृष्ण रूप में उनको एक योगीराज, कुशल राजनीतिज्ञ भी कहते हैं..
किन्तु कृष्ण के वास्तविक स्वरूप को समझ पाना सरल नही है कृष्ण को केवल वही समझ सकता है जिसे स्वयं का ज्ञान हो गया हो ,क्योंकि कृष्ण स्वयं आत्मज्ञानी थे, जिन्होंने गीता के सार से पूरा जीवन जीने का पथ जगत को बता दिया..
प्रभु श्री कृष्ण ग्रामीण जीवन के आदर्श है ,वे गो पालक थे ,उन्हें माखन चोर कहते है ,क्योंकि वो कंस के पास कर के रूप में जा रही मटकियों को फोड़ देते थे, वे ऐसा गोकुलवासियों को कंस के निरंकुश शासन से मुक्ति दिलाने के लिए करते थे...
कृष्ण प्रेम के सच्चे देवता है , वे एक मात्र प्रभु है जिन्होंने प्रेम न केवल किया ,बल्कि निभाया भी , मीरा ने जब कृष्ण भक्ति में लीन होकर जहर का पान किया तो वे कृष्ण ही थे जिन्होंने उन्हें बचाया...
द्रोपदी को चीरहरण से बचाना हो या फिर नरकासुर के कैद से पटरानियों को छुड़ाना कृष्ण ने हमेशा न स्त्रियों की रक्षा करना वरन उनका सम्मान करना भी सिखाया है
कृष्ण को लेकर अलग अलग मत है ,जिसके अनुसार कृष्ण की अर्धागिनी बनी रुक्मणी लक्ष्मी का अवतार थी, रुक्मणि कृष्ण से मिली नहीं पर फिर भी उनको प्रेम करती थी ,उनकी पूजा करती थी , और इस अमूर्त प्रेम को ही कृष्ण ने अपनाया है...
कृष्ण द्वारिका के महल में निवास करते थे, वे द्वारका के राजा थे, किन्तु ऐसे राजसी जीवन को व्यतीत करने के साथ -साथ भी वे एक "नैष्ठिक ब्रम्हचारी ही रहें, कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि मनुष्य अपने कर्मो से भाग नहीं सकता, वे संसार की जागृति में रह कर ही अपना जीवन व्यतीत करते थे, कलियुग में मनुष्य भी भौतिक जीवन के साथ रह कर अपना कर्मफल भुगतेगा..
कृष्ण को महाभारत का आयोजक माना जाता है ,वे संपूर्ण महाभारत में अर्जुन के सारथी बन उसको ज्ञान देते रहें, किन्तु कर्ण को मारने के लिए अर्जुन ने उस पर निहत्थे वार कराया था ,जिसका कारण कर्ण का योद्धा होना ही नहीं अपितु अर्जुन के अहंकार को तोड़ना था ,अर्जुन को अपने श्रेष्ठ योद्धा होने पर घमंड था जिसे कृष्ण ने कर्ण को निहत्थे अवस्था मे मार कर समाप्त कराया,
ठीक इसी तरह कृष्ण ने कंस औऱ कौरवों के अहंकार को भी मात दी ,ये सत्य है कि कृष्ण अलौकिक है ,निरंकार है , वो जल -थल हर जगह है ,किंतु उनके भक्तों के लिए वे जिस रूप में उन्हें पूजेंगे उसी रूप में वो उन्हें मिलेंगे ,बशर्ते भक्ति सच्ची ,निष्ठा ,और प्रेम वाली हो ,कृष्ण की कृपा अवश्य मिलती है , ठीक उसी प्रकार जैसे उनके परम् मित्र सुदामा को मिली थी।
जय श्री कृष्णा