क्या मनुष्य का पतन हो गया है? मानव कैसे बनेगा इंसान?


स्टोरी हाइलाइट्स

लगभग सभी धर्मों ने मनुष्य को विलक्षण और सर्वश्रेष्ठ कृति बताया है| 

अतुल विनोद जो मनुष्य इन बंधनों में से किसी से नहीं बंधे वही वास्तविक मनुष्य है उन्हीं को योगी कहा जाता है| अनंत सर्वव्यापी परमपिता परमात्मा का यह चहेता मानव कहां से कहां पहुंच गया? एक और बात मनुष्य को इस सृष्टि का अभिन्न हिस्सा कहा गया है और उस परमपिता परमात्मा का अंश| आखिर ऐसा क्या हुआ कि पहले मनुष्य अच्छा था और पिछले दो ढाई हजार सालों में अवनति का शिकार हो गया?   लगभग सभी धर्मों ने मनुष्य को विलक्षण और सर्वश्रेष्ठ कृति बताया है|  लेकिन वर्तमान में यह कहा जा रहा है ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ संतान होते हुए भी मनुष्य अपने रास्ते से भटक गया है| यहूदी और मुसलमान तो यह कहते हैं ईश्वर ने देवदूतों के बाद मनुष्य की की रचना की| हिंदू धर्म में मनुष्य को देवताओं से भी बेहतर कहा गया है|  निष्पाप और पवित्र मनुष्य अचानक पापी और अपवित्र कैसे बन गया? मानव ही मानव की जान का दुश्मन बन गया है|  मानवों के समूह देश और राज्य बन कर एक दूसरे को निगल जाने के लिए आमादा हैं| मानव की आत्मा स्वतंत्र कही जाती है| लेकिन उसका मन इतना परतंत्र कैसे हो गया कि वह अंधविश्वास पाखंड और भ्रम के बवंडर में फंसकर उसी डाली को काटने को तुल गया जिस पर वह बैठा है? अपनी आत्मा से हटकर अज्ञान के मिथ्या जगत में उलझ कर दर-दर भटकता हुआ मानव कहीं अपनी मूल प्रकृति तो नहीं भूल गया? ज्यादातर धर्मों ने यह बात भी कही कि मानव जिस ईश्वर की प्राप्ति के लिए इधर-उधर भटकता है| वह ईश्वर उसकी देह में पहले से ही मौजूद है|  रोचक बात यह है जो परमात्मा उसके ह्रदय में बसता है उस परमात्मा के बाहरी स्वरूप के लिए इंसान इंसान से लड़ता भी है| सनातन धर्म ने तो यह तक कह दिया है कि जीव जंतुओं में भी ईश्वर का निवास है लेकिन मनुष्य भगवान का सबसे श्रेष्ठ मंदिर है| ईश्वर को बाहर ढूंढना एक तरह का बंधन है और अपने अंदर सिर्फ उसे महसूस करने का भाव आ जाना ही मुक्ति है| मैं और मेरे का जिस दिन विसर्जन हो जाएगा उस दिन परमात्मा का अपने ह्रदय के आकाश में ही दर्शन हो जाएगा| वेद कहते हैं- जब तुम अपने आप को शरीर समझते हो तुम विधाता से अलग हो, जब तुम अपने आपको जीव समझते हो तब तुम अनंत ज्योति के एक स्फुर्लिंग हो| जब तुम अपने आप को आत्म स्वरूप मानते हो तभी तुम भी विश्व-ब्रम्हांड हो| शास्त्र कहते हैं ज़्यादातर लोग गुलाम हैं|  कोई अपने परिवार का गुलाम है, कोई अपनी जाति धर्म का गुलाम है,कोई विषयों का गुलाम है, कोई नाम का गुलाम है, कोई पद का गुलाम है कोई देश का गुलाम है कोई समाज का| हर व्यक्ति अपने आप को ऊपर उठा सकता है, लेकिन सबसे पहले उसे हर तरह की बंधनों की बेड़ियों को तोड़ना पड़ेगा| पहले शरीर से सबल बनो फिर मन से|दोनों एक दूसरे के पूरक हैं| यदि मन से मजबूत है तो शरीर से भी मजबूत बन जाएंगे और शरीर से मजबूत बन गए तो मन से भी सबल बन जायेंगे| एक स्प्रिंग जो लंबाई में बहुत छोटी नजर आती है उसे खोल दो तो विस्तार कई गुना बड़ा नजर आता है|  इसी  मनुष्य  स्प्रिंग की तरह है अपने आप में ही लिपटा हुआ, अपने आप को खोलने की कोशिश कीजिए| धर्म, शास्त्र, किताब, वेद, पुराण, कुरान में कहा गया है कि मनुष्य के अंदर दैवीय शक्ति मौजूद है| वह सामने आ जाएगी लेकिन तब जब मनुष्य चलाकियों, बेईमानियों और मन की दासता से मुक्त हो जाएगा|