भोपाल: IAS संतोष वर्मा पर लगे आरोपों की श्रृंखला अलग-अलग घटनाएं नहीं हैं। वे एक व्यापक सवाल की ओर इशारा करती हैं—क्या एक अधिकारी का आचरण केवल उसका निजी मामला है, या वह प्रशासनिक विश्वसनीयता का आईना भी होता है? आरक्षण पर दिया बयान, फर्जी दस्तावेज मामले के आरोप, और व्यक्तिगत विवाद—तीनों मिलकर यही कहते हैं कि मुद्दा अब व्यक्ति से ऊपर उठ चुका है।अब सवाल सिस्टम से है। यह जांच अभी पूरी नहीं हुई है।यह रिपोर्ट उन्हीं सवालों की गंभीर पड़ताल करती है। आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा विवादों के बीच खड़े हैं, और इस बार विवाद किसी साधारण टिप्पणी तक सीमित नहीं है। उनके बयान ने प्रशासनिक सेवा के मूल सिद्धांतों को चुनौती देने का आरोप खड़ा किया है। सवाल यह भी उठा कि क्या यह सिर्फ एक निजी राय थी, या एक संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारी का आचरण, जो नियमों के दायरे में कसौटी पर कसा जाना चाहिए।
यह बयान जिसने प्रशासनिक तटस्थता पर चोट पहुंचाई
AJJAKS की बैठक में दिए गए बयान ने राज्य में तीखी प्रतिक्रिया पैदा की। बयान में वर्मा ने आरक्षण को “रोटी-बेटी के व्यवहार” से जोड़ाऔर कहा कि - "जब तक एक ब्राह्मण अपनी बेटी दान नहीं कर देता या मेरे बेटे के साथ संबंध स्थापित नहीं कर लेता, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए" कई ब्राह्मण संगठनों ने इसे सामाजिक रूप से विभाजनकारी, समुदाय विशेष पर आघात और संवैधानिक मर्यादा के खिलाफ बताया।
आचरण नियमों का उल्लंघन? संगठनों ने गंभीर आरोप लगाए
कई संगठनों और प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि वर्मा का बयान अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के सीधे विरोध में है।
इन नियमों में स्पष्ट है कि:
- अधिकारी को उच्च नैतिक मानकों का पालन करना है।
- निष्पक्षता, असंवेदनशील विषयों पर संयम, और सोच-समझकर दिया गया वक्तव्य अनिवार्य है।
- किसी भी तरह की बात जो सामाजिक समरसता को प्रभावित करे या किसी समुदाय की गरिमा पर चोट करे, वर्जित है।
- पद पर रहते हुए अधिकारी को व्यावसायिकता, संवैधानिक मर्यादा, और तटस्थता बनाए रखना आवश्यक है।
- प्रशासनिक हलकों में चर्चा तीखी है। कई अधिकारियों का कहना है कि यह बयान इन सभी मानकों के खिलाफ जाता है, और इस पर विभागीय कार्रवाई का आधार स्पष्ट रूप से मौजूद है।
- 2021 का फर्जी दस्तावेज प्रकरण: एक अधिकारी पर लगा सबसे गंभीर दाग
- संतोष वर्मा का करियर इससे पहले भी कई बड़े सवालों से गुजर चुका है। 2021 का मामला आज भी सबसे गंभीर माना जाता है।
आरोप क्या थे?
रिपोर्ट्स के अनुसार,
वर्मा पर विभागीय प्रमोशन समिति (DPC) से जुड़े दस्तावेजों में स्पेशल जज विजेंद्र रावत के कथित फर्जी हस्ताक्षर जोड़ने का आरोप लगा। 27 जून 2021 को FIR दर्ज हुई। उसी रात गिरफ्तारी हुई। कई महीनों तक जेल में रहे। फिर जमानत मिली। यह मामला इसलिए भारी है क्योंकि यह केवल व्यक्तिगत गलती नहीं, बल्कि न्यायिक दस्तावेजों में हस्तक्षेप जैसे संवेदनशील आरोप से जुड़ा है। एक अधिकारी की विश्वसनीयता पर यह सबसे बड़ी चोट मानी गई।
व्यक्तिगत जीवन से जुड़े विवाद: दो तरफ से दर्ज गंभीर आरोप वर्मा के निजी जीवन से जुड़े कई मामले भी समय-समय पर सामने आए।
2016 की शिकायत
एक महिला ने दावा किया: पढ़ाई के दौरान संबंध बने, सरकारी क्वार्टर में साथ रहने की स्थिति आई, बाद में पता चला कि वर्मा शादीशुदा हैं। शिकायत में यौन शोषण और धोखे के आरोप लगे। वर्मा ने इसे ब्लैकमेल बताया। मामला लंबा चला और दोनों पक्षों के आरोप सार्वजनिक चर्चाओं में रहे। कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया नौकरानी से विवाह का झांसा देने का दावा।
एलआईसी एजेंट से संबंध और फिर विवाद। शिकायतें, जवाबी शिकायतें, और कानूनी तनाव। इन मामलों में अंतिम निष्कर्ष अलग-अलग है, लेकिन आरोपों का स्वर लगातार गंभीर रहा। क्या इन सभी विवादों में कोई पैटर्न दिखाई देता है? आरोप अलग-अलग समय और अलग-अलग संदर्भों में सामने आए, लेकिन विश्लेषण की दृष्टि से स्थिति एक पैटर्न का संकेत देती है। निजी और प्रशासनिक निर्णयों में नियंत्रण की कमी है। संवेदनशील विषयों पर संयम का अभाव है। नियमों से टकराती प्रवृत्ति और बार-बार विवादों में नाम आना। इन तीनों बिंदुओं का संयोजन एक गंभीर प्रशासनिक चिंता का विषय है।
सिस्टम पर उठ रहा बड़ा सवाल
संतोष वर्मा का मामला अब एक व्यक्ति से आगे बढ़ चुका है।
सवाल यह है कि:
क्या विभागीय अनुशासन की प्रक्रिया कमजोर है?
क्या पुराने मामलों में समय पर और सख्त कार्रवाई होती, तो इस तरह के विवाद फिर सामने आते?
क्या प्रशासनिक तंत्र एक अधिकारी पर नियंत्रण स्थापित करने में विफल रहा है?
कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि “जब बार-बार इतने गंभीर आरोप सामने आते हैं, तो जिम्मेदारी केवल अधिकारी की नहीं होती, सिस्टम की भी होती है।”
आगे क्या—क्या अब निर्णायक कार्रवाई होगी?
नया विवाद सरकार को कार्रवाई के मुहाने पर खड़ा कर चुका है।
तीन रास्ते खुले हैं:
आचरण नियमों का उल्लंघन मानकर विभागीय कार्रवाई
पुराने मामलों की पुनर्समीक्षा
सख्त चेतावनी या सेवा संबंधी निर्णय
राज्य यह देख रहा है कि क्या सरकार इस बार निर्णायक कदम उठाएगी, या मामला फिर समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा।
गणेश पाण्डेय