बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर चल रही अटकलों के बीच हर्ष चौहान का नाम सुर्ख़ियों में है। हर्ष चौहान राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष थे और उन्होंने एक सप्ताह पहले अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, जबकि उनके कार्यकाल में अभी आठ महीने बाकी थे। अब उनके इस्तीफे को लेकर सियासी गलियारों में अलग अलग चर्चाएं हैं।
हर्ष चौहान आदिवासी सीटों पर गहरी पैठ रखते हैं। साथ ही उन्हें केंद्रीय नेतृत्व का भी सीधा समर्थन प्राप्त है। ऐसा कहा जा रहा है, कि BJP आदिवासी और अनुसूचित जाति की सीटों पर कब्ज़ा करना चाहती है इसी के चलते किसी आदिवासी नेता को पार्टी का फेस बनाए जाने की कवायद शुरु कर दी गई है।
वहीं दूसरी ओर ये भी कहा जा रहा है कि हर्ष चौहान का केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में जंगल कानून को लेकर कई मुद्दों पर मतभेद चल रहे थे। इसी विवाद के चलते उन पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया था।
इंदौर के हर्ष चौहान संघ में भी रह चुके हैं। संघ पदाधिकारियों से मतभिन्नता के चलते उनकी वहां से रवानगी हुई थी। उसके बाद से वे एकता परिषद में जंगल बचाओं अभियान में जुटे रहे। इसके बाद संघ के अनुषांगिक संगठन वनवासी कल्याण का भी लंबे समय तक काम संभाला। कांग्रेस सरकार गिरने के बाद राज्यसभा सांसद के लिए हर्ष चौहान का नाम जोर-शोर से चला था, लेकिन बाद में वनवासी कल्याण से ही सुमेर सिंह सोलंकी को राज्य सभा सांसद बनाया गया। इसके कुछ दिनों बाद हर्ष चौहान को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाया था। हर्ष चौहान के पिता दिवंगत भारत सिंह चौहान धार से सांसद रह चुके हैं।