वन भूमि पर अतिक्रमण के मामले में देश में पहले नंबर पर MP 


स्टोरी हाइलाइट्स

प्रदेश में प्रति वर्ष साढ़े 7 सौ हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर खेती और आवास बनाने के नाम पर हो रहा अतिक्रमण...

भोपाल। देश में वन भूमि पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण मध्यप्रदेश में हो रहा है। वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार अब तक मप्र में करीब 5,347 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है। जबकि दूसरे नम्बर पर असम और तीसरे नम्बर पर उड़ीसा का नाम है। मध्य प्रदेश में वन विभाग के संरक्षण शाखा की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में प्रति वर्ष साढ़े 7 सौ हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर खेती और आवास बनाने के नाम पर अतिक्रमण हो रहा है।

रिपोर्ट में ये बात भी स्वीकार की गई है कि वन भूमि से अतिक्रमण हटाने में मात्र 20 फीसदी ही सफलता मिल पाती है। इसकी मुख्य वजह वोट बैंक की राजनीति मानी जा रही है। रिपोर्ट में पिछले तीन साल के अतिक्रमण आंकड़ों का हवाला देकर कहा गया है कि 13209 हेक्टेयर में अतिक्रमण हुआ। जबकि मात्र 1039 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण से मुक्त कराने में वन महकमा सफल हो पाया।

प्रदेश में वन भूमि पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। इसे हटाने में प्रति वर्ष करीब 50 वन सुरक्षाकर्मी घायल होते हैं। कुछ घटनाएं ऐसी भी सामने आई हैं जिनमें सुरक्षाकर्मियों को अतिक्रमण मुहिम में जान से हाथ धोना पड़ा है। प्रदेश में करीब पांच माह पहले खंडवा जिले के गुड़ी वन परिक्षेत्र के आमाखुजरी में अतिक्रमण हटाने गए रेंजर सहित अन्य वन कर्मी और पुलिस कर्मियों को अतिक्रमणकारियों ने हमला कर घायल कर दिया था। इस मामले में राजनीतिक दबाव के चलते उल्टे वन कर्मियों पर ही सरकार ने प्रकरण दर्ज करा दिया। इसके बाद डीएफओ सहित कई अधिकारियों को सजा के तौर पर स्थानांतरण कर दिया गया। इससे वन विभाग के अधिकारियों को झटका लगा है।

ऐसे करते हैं अतिक्रमण

जंगल माफिया गर्मी के मौसम में पहले पेड़ों की अवैध हटाई करते हैं और बारिश के दौरान उसे खेत के रूप में तब्दील कर देते हैं। वन विभाग के अवैध कटाई की रिपोर्ट को देखा जाए तो पेड़ों की अवैध कटाई सबसे ज्यादा मामले दिसम्बर से मई के बीच दर्ज किए जाते हैं। इसी तरह अतिक्रमण के मामले मानसून सीजन (जून से लेकर सितम्बर) में होते हैं।

इंंदौर में 8 गुना बढ़ा अतिक्रमण

इंदौर परिक्षेत्र में एक साल 8 गुना अतिक्रमण हुआ है। इसके पहले इंदौर परिक्षेत्र में 2018 में 28, 2019 में 51हेक्टेयर 2020 में 166 हेक्टेयर और 2022 में यह घट कर 58 हेक्टेयर रह गया. शिवपुरी में 2019 में 977 हेक्टेयर, 2020 में 451 हेक्टेयर, 2021 में 834 और 2022 में 945 हेक्टेयर वन भूमि पर कब्जा हो गया है. वन मंत्री विजय शाह के इलाके खंडवा सर्किल में 2019 में 760 हेक्टेयर, 2020 में 352 हेक्टेयर, 2021 में 482 और 2022 में 582 हेक्टेयर वन भूमि पर कब्जा हो गया. वन मंत्री विजय शाह अतिक्रमणकारियों को चुनौती देते ही रह गए. इसके अलावा अतिक्रमण के मामले में छतरपुर और शहड़ोल सर्किल मैं भी अतिक्रमण कारी पीछे नहीं है.  इन सर्किलों में वन भूमि पर हर साल करीब 300 से लेकर एक हजार हेक्टेयर तक अतिक्रमण होता है।

 चुनावी वर्ष में सबसे अधिक अतिक्रमण

वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि चुनावी वर्ष में भूमि पर सबसे अधिक बेजा कब्जा किए जाते हैं. वोटों की खातिर राजनेता अतिक्रमणकारियों को न केवल संरक्षण देते हैं बल्कि उन्हें बेजा कब्जे के लिए उकसाते भी है. बुरहानपुर की घटनाएं इस बात के ज्वलंत उदाहरण है. खंडवा और बुरहानपुर के जनप्रतिनिधि किसी भी राजनीतिक पार्टियों से संबंध रखते हो किंतु वे वोटों की खातिर वन भूमि पर कब्जा कराने से बाज नहीं आते हैं. वन अधिकार एक में कहीं भी उल्लेख नहीं है कि हर साल आप वन भूमि पर कब्जा करो उसे सरकार पट्टे के रूप में बांटे. वैसे भी सुप्रीम कोर्ट ने दो हजार अट्ठारह में स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि 2005 के बाद बंद भूमि पर काबिज बेजा कब्जा धारियों को हटाया जाए.

प्रति वर्ष खर्च होता है 26 सौ करोड़

वन विभाग वनों की सुरक्षा और विकास के नाम पर प्रति वर्ष विभाग 2600 करोड़ रूपए प्रति वर्ष खर्च करता है। इसके अलावा ग्रन इंडिया मिशन, कैंपा सहित अन्य मदों से विभाग को करोड़ों रूपए प्रति वर्ष दिया जाता है। इसके बाद भी वनों की सुरक्षा पूरी तरह से नहीं हो पा रही है। अतिक्रमण, अवैध कटाई और उत्खनन के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। प्रदेश में वन भूमि 95 हजार वर्ग किलोमीटर है।

टाप 5 राज्य -- क्षेत्र वर्ग किमी में ------

मप्र ---5347
असम ----3172
उड़ीसा--785
महाराष्ट्र----605
अरूणांचल प्रदेश-- 586