नई दिल्ली: राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के घर में गणपति पूजन पर विवाद खड़ा करने का कोई आधार नहीं था लेकिन विवाद खड़ा किया गया। विवाद खड़ा करने वाले यदि पूर्व की कांग्रेस सरकारों का इतिहास देख लेते तो विवाद नहीं करते। न्यायाधीशों और न्यायपालिका से संबंधों को लेकर पं. जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का इतिहास सनसनीखेज और विवादास्पद किस्सों से भरा रहा। कई पूर्व प्रधानमंत्रियों ने तो न्यायाधीशों से निजी फेवर तक लेने की कोशिश की। जो लोग सेपरेशन ऑफ पावर की बात करते हैं उन्हें ये किस्से याद कर लेने चाहिए। ऐसे अनेक किस्से हैं जो ये बताते हैं कि निजी निष्ठा, संबंध, और अन्य कारणों के आधार पर कांग्रेस की पूर्व की सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट तक में जजों को नियुक्त किया। यूपीए के दस साल के शासन काल के दौरान मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहते हुए तब के मुख्य न्यायाधीशों को अपनी इफ्तार पार्टी में हमेशा बुलाते रहे थे उस समय तो किसी ने सवाल नहीं खड़े किये।
राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश ने यह बात संसद टीवी के साथ संवाद कार्यक्रम में कही है। संसद टीवी के वरिष्ठ पत्रकार मनोज वर्मा के साथ बातचीत में हरिवंश ने हाल ही में गणेश उत्सव के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की मुलाकात के संबंध में कहा कि जो लोग संवैधानिक पदों पर बैठे प्रमुखों के मेल मिलाप पर सवाल उठाते हैं उन्हे जाना चाहिए कि भारतीय संविधान ये नहीं कहता कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के प्रमुख एक दूसरे से नहीं मिलेंगे। सिर्फ विरोध के नाम पर विरोध करने वाले अपनी प्रामाणिकता को कम करते हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए जस्टिस पीबी गजेंद्रगड़कर की आत्मकथा में कई किस्से हैं। गजेंद्रगड़कर ने अपनी आत्मकथा में जिक्र किया है कि नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बने लालबहादुर शास्त्री जिनकी नैतिकता और सार्वजनिक जीवन में शुचिता की भावना पर शायद ही कोई सवाल उठा सके वो शास्त्री भी सीजेआई के पद पर आसीन गजेंद्रगड़कर को अपने घर पर बुलाते थे। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के आसन पर बैठे गजेंद्रगडकर रात के अंधेरे में तत्कालीन पीएम शास्त्री के घर पर जाते थे ताकि आराम से बैठकर महत्वपूर्ण विषयों पर बातचीत कर सकें, इंतजार न करना पड़े। कल्पना करें आज के दौर में गृहमंत्री अमित शाह चंद्रचूड़ के घर में जाएं या फिर चंद्रचूड़ रात में पीएम मोदी से मिलने जाए तो विपक्ष या फिर एक्टिविस्ट टाइप के अधिवक्ता आसमान को किस हद तक अपने सर पर उठा लेंगे किस तरह उन्हें दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आएगी।
हरिवंश ने कहा कि गजेंद्रगड़कर ने धर्म का पालन करने और धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने को लेकर खुद का उदाहरण देते हुए भारतीय संविधान सेक्युलरिज्म और धार्मिक होने के बीच कोई विरोधाभास नहीं माना है मोदी और खास तौर पर चंद्रचूड़ की आलोचना करने वालों को कम से कम गजेंद्रगड़कर जैसे दार्शनिक जज की बात को ध्यान से समझना चाहिए गौर करना चाहिए। जस्टिस बहारूल इस्लाम का किस्सा तो राजनीति और न्यायपालिका के बीच के अनैतिक गठजोड़ और निजी रिश्ते को न्यायिक निष्पक्षता पर तरजीह देने का सबसे विवादास्पद उदाहरण है ये सज्जन असम से आने वाले कांग्रेस के बड़े नेता थे गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज बनने के पहले ये कांग्रेस में कई पदों पर रह चुके थे गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर रिटायर होने के बाद ये सुप्रीम कोर्ट में जज बने और सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद फिर से कांग्रेस के नेता। इसलिए सीजेई चंद्रचूड़ के गणपति पूजन और इसमें प्रधानमंत्री मोदी के शामिल होने की वजह से चंद्रचूड़ की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करने वालों के इरादों पर अगर आजादी बाद के न्यायिक इतिहास खास तौर पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और उस दौर के प्रधानमंत्रियों के आपसी संबंधों को देखेंगे तो प्रधानमंत्री मोदी और सीजेई चंद्रचूड़ दोनों ही सही नजर आएंगे।
इस संवाद कार्यक्रम में हरिवंश ने मीडिया की स्वतंत्रता और जवाबदेही के बारे में विस्तार से बात करते हुए कहा कि आज मीडिया स्वतंत्रता है। एक प्रमुख समाचार पत्र की हेडिंग दिखाते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे हैडिंगस लगाए जाते हैं जैसे आपातकाल में नहीं लगे और इसके बाद भी लोग मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठाते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों पर अर्मादित हैडिंग लगाना उचित हैं ? प्रेस की आजादी और जवाबदेही दोनों महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। मुख्यधारा की पत्रकारिता आदर्शों से दूर हो रही है।पत्रकारिता का धर्म लोगों को जागरूक करना है। राष्ट्र धर्म मीडिया के लिए हमेशा से पहले रहा है। पश्चिमी मीडिया ने कई बार भारत को लेकर भ्रामक खबरें फैलाई। भारत को लेकर पश्चिमी मीडिया की धारणाएं गलत साबित हुई। कोरोना को लेकर भी गलत साबित हुई। आज भारत का तेजी से विकास हो रहा है आर्थिक तरक्की कर रहा है। कुछ विदेशी शक्तियां विकास की इस रफ्तार को रोकना चाहती हैं। ऐसी शक्तियां भारत की संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करना चाहती हैं। भारत विरोधी शक्तियां सोशल मीडिया को जरिया बना रही हैं। लोकसभा चुनाव को विदेशों से प्रभावित करने की कोशिश की गई। हमे सावधान रहना होगा।