लोक निर्माण विभाग की छतरपुर में स्थित सरकारी इमारत की रजिस्ट्री निजी व्यक्तियों के नामों पर करने का मामला सामने आया है। इनमें से एक बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री का यात्रा प्रभारी है। सरकारी इमारत के फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद कलेक्टर पार्थ सारथी ने विभाग के कार्यपालन यंत्री भारती आर्य को जांच के आदेश जारी दिए हैं। आर्य द्वारा गठित कमेटी में एडीएम मिलिंद नागदेवे, तहसीलदार पीयूष दीक्षित और रजिस्ट्रार जीपी सिंह को शामिल किया है।
पीडब्ल्यूडी की यह इमारत कोतवाली इलाके में बालाजी मंदिर के सामने है। रजिस्ट्री नौगांव निवासी धीरेंद्र कुमार गौर और दुर्गेश पटेल के नाम पर की गई है। धीरेंद्र , धीरेंद्र शास्त्री का करीबी है। 4000 स्क्वायर फीट की यह एकमंजिला सरकारी संपत्ति लोक निर्माण विभाग के भवन पुस्तिका में 64वें नंबर पर हाउस ऑफ उमाशंकर तिवारी दफ्तरी वाले के नाम से दर्ज है। जिसे पीडब्ल्यूडी ने किराए के लिए आवंटित किया था। इसका किराया नियमित रूप से जमा होता रहा है।
लोअर कोर्ट ने पक्ष में सुनाया था फैसला
दरअसल, देश में राजशाही खत्म होने के बाद राजाओं-नवाबों की संपत्तियों की इन्वेंट्री तैयार की गई थी। जो संपतियां व्यक्तिगत नहीं थी, उन्हें सरकार के अधीन कर दिया गया। छतरपुर का यह भवन उस समय विध्य प्रदेश सरकार की इन्वेंट्री में पीडब्ल्यूडी के नाम दर्ज किया गया था। बाद में कुछ लोगों ने फर्जी दस्तावेज तैयार किए और इस भवन को दरोगा पंडित के नाम पर दिखाते हुए कोर्ट में दावा पेश कर दिया।
2004 में लेबर कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी के पक्ष में फैसला सुनाया। इस पर 2005 में दावाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल कर स्टे ऑर्डर ले लिया गया। कथित तौर पर कुछ अधिकारियों की लापरवाही के चलते नवंबर 2024 में गलत दस्तावेजों के आधार पर डिक्री जारी कर दी गई और जून 2025 में इस संपत्ति की रजिस्ट्री धीरेंद्र गौर और दुर्गेश पटेल के नाम कर दी गई।
भवन के नामांतरण पर लगाई रोक
वर्तमान में 9 करोड़ रुपए अनुमानित कीमत की यह संपत्ति निजी हाथों में जाने की स्थिति में है। हालांकि, पीडब्ल्यूडी और जिला प्रशासन हरकत में आ गए हैं। छतरपुर एसडीएम अखिल राठौर ने फिलहाल भवन के नामांतरण और रजिस्ट्री पर रोक लगाने के निर्देश जारी कर दिए हैं। वहीं, पीडब्ल्यूडी की तरफ से हाईकोर्ट में अपील दायर करने की तैयारी है।
कार्यपालन यंत्री भारती आर्य ने बताया कि मैं अभी नया आया हूं। मामला 1974 का है। 6 अक्टूबर को ही कलेक्टर ने मुझे इंचार्ज बनाया है। इस केस में 8 अक्टूबर को हाईकोर्ट गया था। वहां वकील ने बताया कि सारे दस्तावेज इकट्ठा कर लीजिए, अगली तारीख में पेश करेंगे।