रायसेन के जंगलों के साथ-साथ रिहायशी इलाकों में आतंक का पर्याय बन चुके रॉयल टाइगर को आखिरकार एक महीने की कड़ी मशक्कत के बाद वन विभाग की टीम ने पकड़ लिया।
एक माह पहले तेंदू पत्ता तोड़ने गए मनीराम जाटव को भी रॉयल टाइगर ने शिकार बनाया था। रॉयल टाइगर को पकड़ने के लिए कान्हा और पन्ना टाइगर रिजर्व से 5 हाथियों की टीम बुलाई गई। हाथियों के साथ 140 लोगों की टीम भी बाघ की तलाश कर रही थी। बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग ने करीब 25 लाख रुपये खर्च किये। इसके बाद भी बाघ वन विभाग की टीम को चकमा देकर भाग जाता था।
वन विभाग की टीम ने गुरुवार को बाघ को पकड़ने में बड़ी सफलता हासिल की। वन विभाग के प्रभागीय वनाधिकारी विजय कुमार ने अपनी टीम को श्रेय देते हुए बाघ को कैसे पकड़ा गया इसकी पूरी जानकारी साझा की। डीएफओ विजय कुमार ने कहा, ''जंगली जानवर इंसानों से डरते हैं। हाल ही में एक घटना में मनीराम जाटव को बाघ ने मार डाला था। यह घटना बहुत दुखद थी। बाघ अक्सर इंसानों पर हमला नहीं करते, लेकिन कुछ मीडिया संस्थानों ने इस बाघ को आदमखोर कहा। यह बाघ आदमखोर नहीं है।
डीएफओ ने कहा, ''आदमखोर बाघ लोगों पर हमला करने और उनका पीछा करने की श्रेणी में आते हैं। कान्हा और पन्ना टाइगर रिजर्व से इसे पकड़ने के लिए हमारी 140 सदस्यीय टीम पिछले 30 दिनों से जांच में लगी हुई थी। इसमें हाथी भी थे।'' खास बात यह है कि हमने इसे ट्रैक करने के लिए फोन कैमरे, थर्मल कैमरे और लाइव सीसीटीवी फुटेज का इस्तेमाल किया।
डीएफओ ने कहा, ''नई तकनीक से बाघ को ट्रैक करने में वन विभाग को काफी मदद मिली। टीम के साथ विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम भी थी। गुरुवार को बाघ का पता लगाया गया, जिसके बाद सुबह करीब 8 बजे बाघ को इंजेक्शन लगाया गया।'' " दूसरा इंजेक्शन दिया गया जिसके बाद बाघ बेहोश हो गया और अब उसे सतपुड़ा टाइगर रिजर्व भेजा जाएगा, जहां 5 दिनों तक उसकी निगरानी की जाएगी। इसके बाद बाध को जंगल में छोड़ दिया जाएगा।