भोपाल। प्रदेश में बड़े पैमाने पर हो रहे वन भूमि पर अतिक्रमण, अवैध कटाई और खनन करना पर नजर रखना के लिए 2016 बैच के आईएफएस अक्षय राठौर 'रियल-टाइम फॉरेस्ट अलर्ट सिस्टम' सॉफ्टवेयर डेवलप किया है। इससे वन विभाग का सूचना तंत्र मजबूत होगा और अतिक्रमणकारियों की वन विभाग की आंखों में धूल झोंकने की तमाम संभावनाएं खत्म हो जाएंगी। साथ ही फील्ड स्टॉफ पर भी नजर रखी जा रही है। इस नवाचार से अब वन क्षेत्र की रखवाली और संरक्षण पहले से अधिक सक्षम और प्रभावशाली हो सकेगा। यह पहल देश के अन्य राज्यों के लिए भी मॉडल साबित हो सकती है।
मध्य प्रदेश ने देश में पहली बार जंगलों की सुरक्षा के लिए एक बड़ी तकनीकी पहल करते हुए AI आधारित रियल-टाइम फॉरेस्ट अलर्ट सिस्टम की शुरुआत की है। इस अत्याधुनिक सिस्टम के जरिए अब वन विभाग जंगलों में होने वाले अवैध अतिक्रमण, पेड़ कटाई और भूमि परिवर्तन जैसी गतिविधियों की सीधी और त्वरित निगरानी कर सकेगा। फिलहाल यह सिस्टम का प्रयोग गुना, शिवपुरी, विदिशा, बुरहानपुर और खंडवा वन मंडलों में इस्तेमाल होने लगा है। इससे बेहतर रिजल्ट मिलने लगे है और अब वन विभाग पूरे प्रदेश में शुरू करने जा रहा है। इस सिस्टम के जनक गुना डीएफओ अक्षय राठौर ने बताया कि मप्र देश का पहला राज्य बन गया है, जहां AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) आधारित रियल-टाइम फॉरेस्ट अलर्ट सिस्टम को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया गया है।
डीएफओ राठौर ने बताया कि गूगल क्लाउड का इस्तेमाल इसलिए किया गया है, ताकि सूचना तंत्र को और ज्यादा मजबूत बनाया जा सके। उनके मुताबिक वन विभाग जल्द ही आधुनिक ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल भी करेगा, जिससे अतिक्रमणकारियों पर नकेल कसने में मदद मिलेगी। उन्होंने इसकी क्रेडिट वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव को देते हुए बताया कि यह अत्याधुनिक प्रणाली सैटेलाइट इमेज, मोबाइल फीडबैक और मशीन लर्निंग के जरिए काम करती है। अब यह सिस्टम जहां न सिर्फ अतिक्रमणकारियों के लिए सिरदर्द बनी हुई है, बल्कि वन विभाग का जमीनी अमला भी इसकी निगरानी में है। दरअसल, अतिक्रमण बढ़ने की एक खास बात स्थानीय कर्मचारियों की ओर से सही जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं देना भी रहा है।
कैसे काम करता है एआई फॉरेस्ट अलर्ट सिस्टम
आईआईटीयन आईएफएस राठौर ने बताया कि सिस्टम Google Earth Engine पर आधारित है, जो मल्टी-टेम्पोरल सेटेलाइट डेटा का विश्लेषण करता है। सिस्टम एआई और सैटेलाइट इमेज के जरिए 10×10 मीटर क्षेत्र में भी बदलाव पकड़ सकता है। इसमें तीन अलग-अलग तारीखों की सैटेलाइट इमेज को मिलाकर फसल, बंजर भूमि, निर्माण आदि में बदलाव की पहचान की जाती है। हर संभावित बदलाव की जानकारी मोबाइल ऐप के जरिए फील्ड स्टाफ को भेजी जाती है, ताकि वे मौके पर जाकर पुष्टि कर सकें। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गुना वन विभाग की जमीन पर अतिक्रमण के मामलों में काफी संवेदनशील रहा है। पिछले साल गुना जिले के पन्हेटी मेें वनभूमि पर कब्जे को लेकर ही खूनी संघर्ष हुआ है, जिसके बाद प्रदेशभर में गुना की किरकिरी हुई थी। इससे पहले भी गुना के फतेहगढ़, बमौरी और सिरसी क्षेत्र में वन भूमि पर कब्जे को लेकर खूनी संघर्ष के सनसनीखेज मामले सामने आते रहे है।
अब पूरे प्रदेश में होगा लागू करने की तैयारी
गुना, शिवपुरी समेत पांच वन मंडलों में सफल परीक्षण हो चुका है। पूरे प्रदेश में लागू करने की तैयारी है। सूत्रों ने बताया कि 7 जून से इसे पूरे मध्य प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा। वन बल प्रमुख रहे स्वर्गीय अनिल ओबेरॉय के बाद एक बार फिर अत्याधुनिक तकनीक इस्तेमाल करने जा रहा है। स्वर्गीय ओबेरॉय ने कार्यकाल में इस तरह के तकनीकी सॉफ्टवेयर को डेवलप करके न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि पूरे देश भर में इसका प्रयोग किया। उनके कार्यकाल में मध्य प्रदेश वन विभाग को कई अवार्ड भी मिले थे।