यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे


स्टोरी हाइलाइट्स

आधुनिक विज्ञान की बिग बैंग थ्योरी बताती है कि ब्रह्मांड (सृष्टि) की उत्पत्ति महाविस्फोट से हुई. विस्फोट से असंख्य ग्रह, नक्षत्र, तारे बने.

यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे आधुनिक विज्ञान की बिग बैंग थ्योरी बताती है कि ब्रह्मांड (सृष्टि) की उत्पत्ति महाविस्फोट से हुई. विस्फोट से असंख्य ग्रह, नक्षत्र, तारे बने. जिससे ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ. और अभी विस्तार की प्रक्रिया जारी है| भारतीय अध्यात्म दर्शन में भी कहा गया कि एक ने अनेक होने की कामना की, और वह अनेक रूपों में विभक्त हो गया. उस एक ने लीला करनी चाही, यह सृष्टि उसी की महारास लीला है| जो निरन्तर जारी है| बिग बैंग में ऊर्जा उत्पन्न हुई, तो विस्फोट हुआ| उस एक परम में कामना हुई अनेक होने की, वह अनेक हुआ| कामना, चाह ही तो वासना है| स्वयं के प्रभाव के विस्तार की कामना ही वासना है| केन्द्र से परिधि की ओर बढ़ने की कामना वासना है| यही ऊर्जा है और अग्नि भी| वासना विखंडित करती है| जिस तरह प्रत्येक केन्द्र के भीतर ऊर्जा विखंडन का कारक होती है| वैसे ही वासना भी चेतना को विखंडित करती है|संभवतः ऋषियों ने इसी दृष्टिकोण से वासना को बुरा कहा हो| वासना का स्वभाव दाहक है| तीव्र वासना से भरा हुआ व्यक्ति उसकी दाहकता का सहज ही अनुभव करता है| लोग वासना को बुरा कहते हैं| जबकि प्रकृति की सक्रियता के लिये वह अति आवश्यक है| कोई भी विषय, वस्तु अशुभ बुरी नहीं होती| उसके उपयोग के तरीके अच्छे बुरे होते हैं| जो कामना गलत उद्देश्य से होने पर गढ्ढे में गिराती है, वही कामना सही शुभ उद्देश्य से होने पर उन्नति की कल्याण की कारक हो जाती है| ऊर्जा की उत्पत्ति के लिये टकराव घर्षण तीव्र दबाव चाहिये| एक मत के अनुसार उस परम के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं है| जो है सब वही है| जब दूसरा नहीं तो द्वंद भी नहीं, घर्षण टकराव की संभावना नहीं|तो एक और अवधारणा प्रस्तुत की गई, ब्रह्म और माया, पुरुष और प्रकृति की| दोनों के अस्तित्व को शाश्वत सनातन माना गया| जड़ (पदार्थ) और चेतन ( आत्मा ) के संयोग से सृष्टि का निर्माण हुआ| यह तथ्य हम सृष्टि की संचालन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष देखते ही हैं| कहा जाता है कि चेतन सकाम भाव के कारण पदार्थ से जुड़ जाता है| इसीलिये अध्यात्म में मोक्षाभिलाषी साधकों को निष्काम भाव की प्राप्ति के लिये कहा जाता है| सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया को विष्णु पुराण की कथा के रूपक से समझने का प्रयास करते हैं| विष्णु भगवान क्षीर सागर में शेष शैया पर योग निद्रा (महासमाधि, परम शून्य भाव में) सो रहे हैं| उनको सृष्टि निर्माण की कामना हुई| और सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई|उनकी नाभि से कमल, कमल मेँ ब्रह्मा और ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का विस्तार| अर्थात सब विष्णु से ही उत्पन्न हुये| गीता में भी श्री कृष्ण कहते हैं कि सब मुझसे उत्पन्न होते हैं, और मुझ में ही समा जाते हैं| विष्णु भगवान की मूर्ति चित्रों को ध्यान से देखें| रूपक को समझने का प्रयास करें तो अद्वैत, द्वैत, द्वैताद्वैत, विशिष्टाद्वैत, मत के आधार सूत्र प्राप्त होते हैं| परम शून्यावस्था में विष्णु, विष्णु के साथ लक्ष्मी (प्रकृति और पुरुष, माया और ब्रह्म)| जिसमें ब्रह्म अपनी माया सहित स्थित हैं, वह क्षीर सागर|क्षीर अर्थात दुग्ध, दुग्ध पुष्टिकारक माना जाता है| अर्थात माया सहित ब्रह्म, संपूर्ण सृष्टि जिस महाकाश शून्य में स्थित है, वह पुष्टिकारक गुणों से युक्त है| ध्यान साधकों को ध्यान की अवधि में भले ही कुछ क्षणों के लिये शून्यता का अनुभव हुआ हो, वे जानते हैं कि समाधि की क्षणिक झलक से भी चैतन्यता, स्फूर्ति में वृद्धि होती है| जिनको ध्यान साधना का अनुभव नहीं है, उन्हें कथाएँ गप्प लगेंगी ही| सृष्टि के निर्माण का कारण क्या है?? विज्ञान कहता है, महा विस्फोट| विस्फोट क्यों? केन्द्र में अत्यधिक दबाव| मिथक कथाएँ कहती हैं सृष्टि निर्माण की कामना| कामना क्यों? रूपकों से ही समझने का प्रयास करते हैं|प्राण नाथ जी से किसी ने सृष्टि निर्माण के उद्देश्य के संबंध में प्रश्न पूछा| तो प्राणनाथ जी ने कहा कि परम शून्यता के एकरस अनुभव से उत्पन्न ऊब के कारण रोमांच (एडवेंचर), भय, दुख, संघर्ष के अनुभव के लिये संसार रचा गया| बुद्ध संसार को दुखमय कहते ही हैं| उपरोक्त रूपक के आधार पर हम अपनी स्थिति पर विचार करें| जैसे रोमांचक अनुभव के लिये, स्वयं ही खतरों के खिलाड़ी बनते हुये, संसार के बियावान में कूद पड़े| और संसार की मनोहारी छटा से मुग्ध हो स्व को विस्मृत कर बैठे| और सामने आने वाली चुनौतियों से घबरा कर त्राहि माम करने लगे| खेल में चुनौतियों से घबराने वाले खिलाड़ी को अच्छा नहीं माना जाता| केन्द्र में बैठा परम जो खेल का आयोजक है, वह हताश खिलाड़ियों का उत्साह वर्धन करता रहता है| परम से सहयोग पाने का साधन प्रार्थना है| इस खेल की मुख्य शर्त है पूर्णता से खेलना| खेल पूरा खेलना है| भय, दुख से पार होना है| सर्वाधिक अभय, हरहाल में आनंदित होने पर ही खेल पूरा होता है| आध्यात्म जगत की कई साधना विधियां भय को जीतने के लिये हैं| जिनमें साधक स्वयं महाभय (महाकाल) को आमंत्रित करता है| कठिन तपस्याओं के पीछे दुख भय को जानकर मुक्त होना है| भगोड़े कायर कभी भी मुक्ति मोक्ष नहीं पा सकते| कामना ही माया है, माया का ही बंधन है| कामना के वश हुआ मनुष्य पशुभाव में दीन हीन अवस्था में जीने को विवश होता है| क्योंकि इच्छा की दासता स्वीकार कर अपने स्वामित्व च्युत हो जाता है| अधिकतर लोग इसी श्रेणी के होते हैं| बहुत कम लोग कामना इच्छा पर नियंत्रण रखते हैं| ऐसे लोग इच्छा की दासता स्वीकार नहीं करते| जो अपने आप पर नियंत्रण रखते हैं| स्वयं पर जिनका स्वामित्व है, वही यथार्थ में स्वामी है| विष्णु की मूर्ति में लक्ष्मी (महामाया )चरण सेवा कर रही हैं| (रूपक को समझें)| जो इच्छाओं पर नियंत्रण रखते हैं, इच्छा उनकी दासी की तरह सेवा करती है| मनुष्य को सृजन के लिये भाव, विचार, संकल्प शक्ति आदि प्रकृति से सहज प्राप्त हैं| जीवन में हम जब भी कुछ सृजनात्मक कार्य करते हैं, तब इन्हीं शक्तियों का उपयोग करते ही हैं|स्वयं के स्वभाव के विस्मरण के कारण व्यक्ति अपनी सामर्थ्य से अनभिज्ञ हो दुखी होता है| इससे विपरीत फल मिलने लगते हैं| क्योंकि भाव और विचार के अनुसार भविष्य का निर्माण होने लगता है|संसार में रहते हुये निष्क्रिय रह नहीं सकते| अतः या तो सकारात्मक रहते हुये शुभ फल प्राप्त करें, या नकारात्मक रहते हुये अशुभ फल पायें| ना अस्ति, सकार नकार के झूले में झूलते हुये कभी सुखी कभी दुखी होते रहते हैं| स्वयं ही कल्पवृक्ष के समान होते हुये भी अज्ञान के कारण दीन हीन बने रहते हैं|लोक परलोक सब मनुज देह में हैं| सात लोक, सात चक्र इनकी योग में चर्चा है|रोमांच ऐडवेंचर की इच्छुक आत्मायें मूलाधार चक्र में ही गिरतीं हैं. वहां से ऊर्ध्वगमन का रोमांचकारी खेल प्रारंभ होता है| जो चेतना के ब्रह्मरंध्र (ब्रह्म लोक) में पहुंचने पर पूरा होता है| – शत्रुघ्न सिंह