चंबल के बीहड़ में एक दशक तक सबसे सुंदर और खूंखार महिला डकैत पुतलीबाई का राज रहा. चंबल के इतिहास में पुतलीबाई का नाम पहली महिला डकैत के रूप में दर्ज है. आज हम आपको बताएँगे कि नाच-गाने के लिए मशहूर गौहरबानो उर्फ पुतलीबाई बीहड़ की रानी कैसे बनी.
भारत में आज़ादी के पहले चंबल घाटी में गन कल्चर मर्दानगी की निशानी माना जाता था. पचास के दशक तक, कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि एक औरत बंदूक भी चला सकती है. पुरुषों के इसी भ्रम को तोड़ा कुछ महिला डकैतों नें, जिन्होंने बीहड़ों पर पुरुष डकैतों की तरह राज किया.
हत्या, लूट, डकैती और अपहरण के मामलों में भी ये महिला डाकू किसी से पीछे नहीं रहीं. चंबल की फिजाओं में बारूद भरने वाली एक ऐसी ही महिला डकैत पुतलीबाई थी. चंबल नदी के किनारे बसे मुरैना की अंबाह तहसील का बरबई गांव महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की जन्मस्थली के तौर पर जाना जाता है. 1926 में यहीं पर पुतलीबाई का जन्म हुआ. माँ असगरी और पिता नन्हे ने बेटी का नाम गौहरबानो रखा.
पुतलीबाई के घर में शुरु से ही नाच-गाने का माहौल था. बड़े भाई अलादीन के तबले की थाप पर पुतलीबाई ने पैर चलाने शुरु किए, तो लोगों के दिल उसके कदमों में गिरने लगे. कहते हैं कि दुबली-पतली गौहरबानो जब नृत्य करती थी, तो शरीर पुतली की तरह हरकत करता था. इसी वजह से उसका नाम पुतलीबाई पड़ा.
जल्द ही चम्बल और उसके बाहर पुतलीबाई के नाम का डंका बजने लगा. उसकी महफिल का हिस्सा बनने के लिए अमीरों की तिजोरियां खुल गईं. कम उम्र में ही पुतली ने वो ग्लैमर दिखाया जिसका लोग सपना देखते थे. उसकी मां को भी लगा कि अब ये इलाका पुतली की शोहरत के आगे छोटा पड़ने लगा है इसलिए वों उसे आगरा ले गई. यहां भी उसके घुंघरु की छन-छन से सिक्के बरसने लगे. जल्द ही पूरे उत्तरप्रदेश में पुतली बाई नशे की तरह छा गई. उसकी महफिल सजाने के लिए पैसे वालों की लाइन लगती थी.
कामयाबी अपने साथ सौ दुश्मन भी लाती है और अगर वो औरत हो, तो उसकी कामयाबी पुरुषों को आसानी से हजम नहीं होती. ऐसा ही पुतलीबाई के साथ भी हुआ. उसकी महफिल में पैसे वालों के साथ-साथ पुलिसवालों का दिल भी डोलने लगा. उसकी महफिलों में बार-बार हंगामे होने लगे. परेशान होकर पुतलीबाई वापस अपने गांव बरबई लौट आई.
चम्बल में एक बार फिर पुतलीबाई की महफिलें बड़ी होती गईं. अब तक पुतलीबाई के घुंघरुओं की गूंज चंबल के बीहड़ तक पहुंच गई थी. बारूद की गंध में जीने वाले डाकू भी पुतलीबाई के नृत्य के लिए मचलने लगे. उन दिनों चंबल में डाकू सुल्ताना का दबदबा चलता था.
पड़ोस के गांव सिरीराम का पुरा में पुतलीबाई के एक कार्यक्रम में सुल्ताना भी पहुँच गया. सुल्ताना कों पुतली की अदाएं भा गईं. उसने उसे 500 रुपए का इनाम भी दिया. एक छोटी सी मुलाकात के बाद डाकू सुल्ताना पुतलीबाई का दीवाना हो गया. कहा जाता है कि सुल्ताना डाकू महिलाओं की बहुत इज्जत करता था. उसने कभी किसी महिला की इज्जत पर हाथ नहीं डाला था.
पुतलीबाई की उम्र उस वक्त 25 साल रही होगी.धौलपुर के गांव में एक शादी समारोह में पुतलीबाई अपनी महफिल सजाने आई थी. डाकू सुल्ताना को पता चला तो वो भी वहां पहुंच गया. रात के 2 बजे थे. अचानक राइफल से फायरिंग हुई. पूरी महफिल में सन्नाटा छा गया. गैस लाइट बंद कर दी गई. तबला और सारंगी की धुन खामोश हो गई. सामने देखा तो डाकू सुल्ताना था. उसे देख कर पुतलीबाई जरा भी नहीं घबराई. पुतलीबाई ने सुल्ताना से बेधड़क पूछा कौन है तू? दूसरी तरफ से आवाज आई, तुम्हारा चाहने वाला.
सुल्ताना ने उसी वक्त पुतलीबाई को अपने साथ चलने को कहा. पुतलीबाई ने इनकार कर दिया तो उसने तबला बजाने वाले पुतली के भाई के सीने पर बंदूक तान दी. भाई की जान बचाने के लिए पुतली को मजबूरन सुल्ताना के साथ जाना पड़ा. एक डाकू की जबरजस्ती पुतलीबाई को बीहड़ में खींच ले गई.
जान बचाने की मजबूरी थी या दिल के हाथों मजबूर थी. धीरे-धीरे पुतलीबाई को भी सुल्ताना से प्यार हो गया. पुतलीबाई अब चंबल के खूंखार डाकू सुल्ताना की प्रेमिका बन गई थी. यह खबर चंबल के आसपास के सभी गांवों में आग की तरह फैल गई. पुतलीबाई नाचने गाने वाली थी.
लूटपाट, कत्ल, अपहरण और बारूद की गंध पुतली को अच्छी नहीं लगती थी. उसके पेट में सुल्ताना का बच्चा पल रहा था. उसे अपने और अपने बच्चे के भविष्य का डर सता रहा था. सुल्ताना भी इस बात को समझ गया और उसने पुतली कों उसके गाँव वापस भेज दिया.
गांव आते ही पुलिस ने पुतलीबाई को पकड़ लिया. वो उससे डाकू सुल्ताना के बारे में पूछताछ करने लगी. पुतलीबाई पुलिसवालों के सामने नहीं टूटी. लेकिन पुलिस वाले रोज उसके घर आ धमकते और उसे टॉर्चर करते. कभी भी उसे उठाकर थाने ले जाते. उसके साथ जबरदस्ती करते. पुलिसवालों ने उसकी इज्जत के साथ भी खिलवाड़ किया.
पुतलीबाई पुलिसवालों से परेशान हो गई थी. वो सिर्फ बच्चा पैदा होने का इंतजार करने लगी, ताकि फिर से बीहड़ में सम्मान की जिंदगी जी सके. उसने एक बच्ची को जन्म दिया. उसका नाम तन्नो रखा. बेटी को गांव में ही छोड़कर वो फिर से बीहड़ में डाकू सुल्ताना के पास लौट गई. बीहड़ में पुतलीबाई बदल चुकी थी. पुलिस की यातनाओं ने उसे फौलाद बना दिया पूरे बीहड़ में कोहराम मचा दिया. भिंड ,मुरैना, शिवपुरी और ग्वालियर में पुतलीबाई के नाम से लोग कांपने लगे थे.
23 जनवरी 1958 को पुलिस की एक टुकड़ी मुरैना जिले के कोथर गांव में लाखन सिंह से मुठभेड़ करने की तैयारी में थी. चारों तरफ पुलिस ने भागने के रास्ते बन्द कर दिए. जल्द ही पुलिस को यह पता चला कि गैंग लाखन सिंह का नहीं, बल्कि पुतलीबाई का है. दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई. इसी मुठभेड़ में 32 साल की पुतलीबाई और उसके गैंग के साथी पुलिस की गोलियों से मारे गए.
उसके अगले दिन पुतलीबाई और उसके 9 साथियों की लाशों का मुरैना में प्रदर्शन किया गया. पुतली की मां असगरी और बेटी तन्नो रोती बिलखती वहां पहुंचीं. असगरी ने अपनी बेटी का अंतिम संस्कार किया. आज भी चंबल की सबसे पहली खूंखार महिला डाकू पुतलीबाई की बेटी तन्नो कोलकाता में अपना कारोबार कर रही है. महज 32 साल की जिंदगी में पुतलीबाई ने ग्लैमर और बीहड़ की अंधेरी रातों को करीब से देखा. पुतलीबाई को चंबल में महिलाओं की बगावत की पहली आवाज माना जाता है.