स्टोरी हाइलाइट्स
पुराण ज्ञान राशि का भण्डार है और मानव जीवन का सच्चा साथी है।
पुराण ज्ञान राशि का भण्डार है और मानव जीवन का सच्चा साथी है। भगवान नारायण ने ही इस भूमण्डल पर व्यास जी के रूप में अवतार लेकर लोगों के कल्याण के लिये 18 पुराणों की रचना की। वस्तुतः पहले वेदों के निष्कर्ष से निकला पिण्डीभूत एक ही पुराण था। उसमें 100 करोड़ श्लोक थे। लेकिन द्वापर युग के अन्त में जब लोगों की बुद्धि का ह्रास होने लगा तब भगवान वेद व्यास जी ने 100 करोड़ श्लोकों को भी संक्षिप्त करके 18 भागों में बाँट दिया। वही 18 पुराण कहलाये।
ये 18 पुराण इस प्रकार से हैं:-
1. ब्रह्म पुराण
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव पुराण
5. वायु पुराण
6. श्रीमद्भागवत महापुराण (देवी भागवत)
7. नारद पुराण
8. अग्नि पुराण
9. ब्रह्म वैवर्त पुराण
10. लिंग पुराण
11. वराह पुराण
12. स्कन्ध पुराण
13. वामन पुराण
14. कूर्म पुराण
15. गरूड़ पुराण
16. ब्रह्माण्ड पुराण
17. मार्कण्डेय पुराण
18. मत्स्य पुराण
इन 18 पुराणों में भगवान के निर्मल यश का वर्णन है और मनुष्य के कल्याण के लिये सुनने योग्य बहुत सी लीलामयी कथाएं हैं। कहीं भगवान की कलावतार की कथा है, कहीं अंशावतार की तो कहीं पूर्णावतार की कथायें हैं। इन कथाओं को सुनने से मनुष्य के जीवन में जाने-अनजाने से किये समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान के परम् भावों की प्राप्ति होती है।
इस घोर कलयुग में क्या करें:-
जीव को मनुष्य शरीर भगवान की कृपा से प्राप्त होता है। 84 लाख जीवनों में भटकने के पश्चात् जब हमारे पाप कुछ कम हुये और भगवान की बड़ी कृपा हुयी तब जाकर हमें यह मनुष्य तन प्राप्त हुआ। मनुष्य जीवन केवल हमें भोगों में आसक्त रहने या सांसारिक कार्यों के लिये नहीं मिला है अपितु भगवान को प्राप्त करने के लिये और अपना जीवन सुधारने के लिये भगवान की तरफ से एक मौका मिला है। क्योंकि भगवान को जानने के लिये मनुष्य योनि ही सर्वोत्तम है न कि घोड़ा, गधा, साँप, बिच्छू बनकर और इस मनुष्य योनि में ही पुराणों की कथा सुनकर हम अपना कल्याण कर सकते हैं और ईश्वर के अत्यधिक निकट पहुँच सकते हैं।
लेकिन आज का मनुष्य संसार के कार्यों में इतना व्यस्त हो गया है कि उसका धर्म के कार्यों में मन ही नहीं लगता है और वह आध्यात्मिक कार्यों में समय न मिलने का बहाना ढूंढ़ लेता है और यह बात कई मायनों में सत्य भी है कि कलयुग में मनुष्य के पास बिल्कुल भी समय नहीं है और यदि वह समय निकाल भी दे तो वह क्या करे? कौन-सा पुराण पढ़े? कि शास्त्र का अध्ययन करे जिससे जीवन का कल्याण हो जाय।
अनन्तशास्त्रं बहुलाश्चविद्या अल्पस्यकालं बहुविघ्नता च अत्सारभूतं तदुपासनेय हंसोयथा क्षीर मिवाम्बु मद्येः।
अनेकों शास्त्र हैं, उपनिषद् हैं, 18 पुराण हैं और मनुष्य के पास समय बहुत कम है। यदि मनुष्य सारे काम-काज छोड़ कर इन शास्त्रों को पढ़ने बैठ जाय तो भी जीवन पर्यन्त इनको पूर्ण नहीं कर सकता। क्योंकि जीवन में बहुत से कष्ट हैं कभी स्वास्थ्य ठीक नहीं तो कभी पारिवारिक परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं। तो फिर क्या किया जाय? किस शास्त्र का अध्ययन किया जाय? जिससे सहजमय जीवन का कल्याण हो जाय। तो इसके उत्तर में कहा गया है कि -
ये श्रष्णवन्ति पुराणानि कोटि जन्मार्जितं खलो।
पापं जलं तु ते हित्वा गच्छन्ति हरि मंदिरं ।। (पद्म पुराण)
कलयुग में भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिये पुराणों का आश्रय लेना चाहिये। क्योंकि पुराण साक्षात् नारायण स्वरूप हैं। पर ऐसा प्रयास करना चाहिये कि अधिक से अधिक पुराणों की कथा सुन सकें या पढ़ सकें। पुराणों की कथा सुनने से मनुष्य के कोटि जन्मकष्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
पुराण कथा सुनने का फल:-
भक्ति रस से ओत-प्रोत पुराणों की मंगलमयी कथा जीवन को अत्यधिक पवित्र, पावन एवं श्रेष्ठ बनाती है। पुराणों की पवित्र कथायें धर्म, अर्थ एवं मोक्ष को देने वाली, शारीरिक और मानसिक रोग निवृत्ति के लिये पुराण कथा एक अचूक रामबाण है। पुराण श्रवण करने से जीव के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, धर्म एवं अधर्म का ज्ञान होता है, सदाचार की प्रवृत्ति बढ़ती है, भगवान में भक्ति बढ़ती है, जिसके द्वारा मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है।
पाँच प्रकार के पाप छल, छद्म, चोरी, व्यभिचार, ब्रह्म हत्या करना एवं पर-स्त्री या पर-पुरूष गमन, ये समस्त पाप भी पुराण कथा श्रवण करने से दूर हो जाती हैं। यदि मनुष्य इन पापों को दुबारा न करने का संकल्प लेकर पुराण श्रवण करे तो।
पुराण श्रवण करने से बहुत से लाभ होते हैं तथा अलग-अलग पुराणों का अपना अलग-अलग महत्व भी है। जैसे सन्तान प्राप्ति की कामना हो तो हरिवंश पुराण की कथा करनी चाहिये। धन प्राप्ति के लिये देवी भागवत् कथा, पित्रों के उद्धार के लिये और संसार के कल्याण के लिये श्रीमद्भागवत् कथा, रोग निवारण के लिये शिव पुराण की कथा इत्यादि कर सकते हैं।