राजस्व विभाग के कब्जे की वन भूमि को साल भर के भीतर जंगल महकमे को सौंपने के निर्देश


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स्टोरी हाइलाइट्स

एसीएस वर्णवाल सभी कमिश्ननर और कलेक्टर को भेजे परिपत्र..!!

भोपाल: अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने सभी कमिश्ननर और कलेक्टर को राजस्व विभाग के कब्जे की वन भूमि को साल भर के भीतर जंगल महकमे को सौंपने के निर्देश दिए है। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रकाश में दिए है। 

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि वन विभाग के कब्जे के बाहर ऐसी भूमि जो वनभूमि के रूप में अधिसूचित है और जो राजस्व विभाग के कब्जे में है या जिसे राजस्व विभाग द्वारा निजी व्यक्तियों/संस्थाओं को आवंटित किया गया है, जिस पर अवैध अतिक्रमण किया गया है, ऐसी सभी भूमि फारेस्ट को दिया जाए। 

15 मई 25 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के पैरा 92, 93, 94, 95 (i), (ii). (iii), (iv). (v). (vi) में निर्णय दिया है कि राजस्व विभाग के अंतर्गत ऐसी वन भूमि जिस पर वन विभाग के अतिरिक्त किसी अन्य का कब्जा या अतिक्रमण हो, जिसे वापस लेना या खाली कराना सार्वजनिक हित में सम्भव नहीं हो तो, ऐसी स्थिति में संबंधित राजस्व वन भूमि की कीमत वसूल किया जाकर उस राशि का उपयोग वृक्षारोपण, वन पुनरूत्पादन और संरक्षण के लिए किया जाना है। 

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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 15.05.2025 के परिपालन में आवश्यक कार्यवाही कर माननीय न्यायालय के उक्त आदेश का निर्धारित समय सीमा में कड़ाई से पालन किया जाना सुनिश्चित करें।

विशेष जांच टीमों का गठन करें..

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देश दिया है कि वे विशेष जांच टीमों का गठन करें। इन टीमों का काम आरक्षित वन भूमि पर हुए अवैध आवंटनों की जांच करना होगा। यह जांच की जाए कि कहीं राजस्व विभाग के कब्जे में मौजूद आरक्षित वन भूमि किसी व्यक्ति या संस्था को ऐसे काम के लिए तो नहीं दे दी गई है, जो जंगलों से जुड़ा न हो। इस निर्देश से आईएफएस पर पॉलिटिकल और प्रशासनिक दबाव कम होगा। रतलाम, मैहर, बड़वानी और धार जिले में वन भूमि पर फैक्टीरियां और कॉलेज बन गए हैं। छतरपुर में वन राज्य मंत्री की शह पर वन भूमि पर खेती हो रही है।   

संस्था से उसकी पूरी लागत वसूलें..

अदालत ने आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर किसी वजह से भूमि वापस लेना जनहित में न हो, तो संबंधित व्यक्ति या संस्था से उसकी पूरी लागत वसूल की जाए और उस धनराशि का इस्तेमाल वनों के विकास में किया जाए। 

सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति कृष्णन विनोद चंद्रन शामिल थे, ने यह भी कहा कि यह पूरी प्रक्रिया एक साल के भीतर पूरी हो जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अब से आरक्षित वन भूमि का उपयोग केवल वनो के विकास के लिए ही किया जाना चाहिए।”

क्यों देना पड़ा सुप्रीम कोर्ट को आदेश..

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि “28 अगस्त, 1998 को पुणे जिले के कोंढवा बुद्रुक में कृषि उद्देश्यों के लिए 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि का आवंटन और उसके बाद 30 अक्टूबर, 1999 को को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के पक्ष में इसकी बिक्री की अनुमति देना पूरी तरह से अवैध था।”

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 3 जुलाई, 2007 को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आरआरसीएचएस को दी गई पर्यावरण मंजूरी अवैध है। ऐसे में अदालत ने उस मंजूरी को रद्द कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि राजस्व विभाग के कब्जे में मौजूद जमीन जो वन भूमि के रूप में आरक्षित है उसे तीन महीनों के भीतर वन विभाग को सौंप दिया जाना चाहिए।