किसानों को ड्रिप सिंचाई को क्यों अपनाना चाहिए, टपक सिंचाई (ड्रिप सिंचाई) प्रणाली क्या है? 


स्टोरी हाइलाइट्स

सबसे बड़ा फायदा पानी की बचत होती है जिससे अतिरिक्त क्षेत्र को सिंचित किया जा सकता है। कम से कम 30 प्रतिशत पानी की बचत होती है। यानी की 30 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई।

ड्रिप सिंचाई व्यवस्था सिंचाई की एक उन्नत तकनीक है जो पानी की बचत करता है। इस विधि में पानी बूंद-बूंद करके पौधे या पेड़ में सीधा पहुँचाया जाता है जिससे पौधे की जड़े पानी को धीरे-धीरे सोखते रहते है। इस विधि में पानी के साथ उर्वरको को भी सीधा पौधा जड़ क्षेत्र में पहुँचाया जाता है जिसे फटीगेसन कहते है।

फटीगेसन विधि से उर्वरक लगाने में कोई अतिरिक्त मानव श्रम का उपयोग नहीं होता है। अत: यह एक तकनीक है जिसकी मदद से कृषक पानी व श्रम की बचत तथा उर्वरक उपयोग दक्षता में सुधार कर सकता है। ड्रिप सिंचाई कम पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों के लिए एक सफल तकनीक है। जिसमें स्थाई या अस्थाई ड्रिप लाइन जो पौधे की जड़ के पास या नीचे स्थित होते है।

आज के परिदृश्य में पानी की कमी से हर देश, हर राज्य, हर क्षेत्र जूझ रहा है तथा समय के साथ यह समस्या विकराल होती जा रही है। इसलिए जहाँ भी पानी का उपयोग होता है। वहाँ जितना भी संभव हो इसकी बचत करनी चाहिए। पानी का अत्यधिक उपयोग कृषि में ही होता है। इसलिए इसकी सबसे अधिक बचत भी यहीं ही संभव है। और हमें इसे बचाना चाहिए। इस मुहिम में ड्रिप सिंचाई एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है अत: कृषको को इसे बड़े पैमाने पर अपनाना चाहिए।

ड्रिप सिंचाई में इस्तेमाल होने वाले उपकरण तथा उनका कार्य:

1- पंप - पानी की आपूर्ति।

2- फिल्टर यूनिट- पानी को छानने की व्यवस्था। जिससे की ड्रिप सिस्टम के कार्यकाल में कोई बाधा उत्पन्न न हो। इसमें होते है, वाटर फिल्टर। बालू फिल्टर (बालू अलग करने के लिए)।

3- फगेसन यूनिट- सिंचाई वाले पानी में तरल खाद मिलाने की व्यवस्था।

4- प्रेशर गेज- ड्रिप सिस्टम में पानी का प्रेशर को इंगित करता है। 

5- मीटर ड्रिप सिस्टम में पानी के प्रवाह को इंगित करता है।

6- मुख्य पाइप लाइन- लेटरल्स में पानी की सप्लाई करती है।

7- लेटरल्स कम मोटाई वाली ट्यूब्स। ड्रीपर्स को पानी की सप्लाई करती है। 

8- ड्रीपर्स- पानी को पौधा जड़ क्षेत्र में बूंद-बूंद सप्लाई करते है। अनुकूल ड्रिप सिंचाई व्यवस्था को स्थापित करते वक्त कुछ तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि भूमि स्थलाकृति, मिट्टी, पानी, फसल और कृषि जलवायु स्थिति इत्यादि, फव्वारा सिंचाई (स्प्रिंकलर सिंचाई व्यवस्था) व्यवस्था से तुलना करें तो ड्रिप सिंचाई ज्यादा फायदेमंद साबित होगी। 

ड्रिप सिंचाई के फायदे:

1. सबसे बड़ा फायदा पानी की बचत होती है जिससे अतिरिक्त क्षेत्र को सिंचित किया जा सकता है। कम से कम 30 प्रतिशत पानी की बचत होती है। यानी की 30 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई।

2. पूरे खेत में पानी का एक समान वितरण।

3. खेती करने के सभी तरीकों में ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे कि खुले खेत में खेती, व्यावसायिक ग्रीन हाउस में खेती, आवासीय उद्यानों, पॉलीहाउस खेती, शेड नेट फार्मिंग इत्यादि सभी प्रकार की मृदाओं में सफलतापूर्वक सिंचाई।

4. क्योंकि सीमित क्षेत्र को गीला करता है। इसलिए फसल में खरपतवारों का प्रकोप बहुत कम होता है। 

5. उर्वरकों एवं पोषक तत्वों का ह्रास कम होता है। जिससे उनकी उपयोग दक्षता बड़ जाती है। साथ ही भूमिगत जल, खुला वातावरण एवं अन्य वस्तुओं में उर्वरकों एवं पोषक तत्वों द्वारा प्रदूषण की संभावना बहुत कम हो जाती है।

6. मिट्टी के कटाव की संभावना नगण्य हो जाती है। 

7. असमतल (ऊंचे-नीचे) खेत में ड्रिप व्यवस्था का बहुत प्रभावकारी तरीके से इस्तेमाल होता है ।

8. दूसरी सिंचाई तरीकों की तुलना में मानव श्रम का कम उपयोग होता है। जिससे किसान को आराम मिलता है।

9. क्योंकि फसल एवं पत्तियां भीगती नहीं है। इसलिए फसल में बीमारियों के प्रकोप की सम्भावना कम हो जाती है।

10. फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों को कम से कम क्षति पहुंचाए फर्टीगेशन (ड्रिप व्यवस्था के साथ खाद को सिंचाई वाले पानी के साथ प्रवाहित करना) किया जा सकता है।

ड्रिप सिंचाई से सिंचित धान की :

ड्रिप सिंचाई बनाम छिड़काव (स्प्रिंकलर) सिंचाई छिड़काव सिंचाई के मुकाबले ड्रिप सिंचाई ज्यादा फायदेमंद होती है। छिड़काव सिंचाई व्यवस्था की निम्न कमियां हैं।

1. तेज हवा और ज्यादा तापमान की वजह से स्प्रिंकलर सिंचाई में पानी का असमान वितरण हो जाता है।

2. स्प्रिंकलर सिंचाई में वाष्पीकरण की वजह से पानी बर्बाद हो सकता है। 

3. स्प्रिंकलर सिंचाई में पत्तियां व पौधे भीग जाते हैं। इससे बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

4. उचित देखभाल के अभाव में स्प्रिंकलर स्प्रे एंगल जोड़ (फिक्सचर्स) को खराब कर सकते है।

ड्रिप सिंचाई से सिंचित गेहूं की फसल..

ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का खर्च :

मूलतः ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का प्रति इकाई खर्च फसल के प्रकार जैसे एक वर्षीय फसलें (गेहूं, सरसों, मक्का, कपास, गन्ना इत्यादि) या बागवानी फसलें (अनार, आम, केला, अमरूद, नींबू इत्यादि) सब्जी वाली फसलें (टमाटर, आलू, मिर्च इत्यादि), पौधों के बीच दूरी और पानी के स्रोत की जगह पर निर्भर करता है। दूसरा तथ्य यह है कि ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का खर्च प्रत्येक राज्य में अलग-अलग होता है इसके अनुसार राज्यों का वर्गीकरण तीन श्रेणी में किया गया है। 'ए' बी' और 'सी' राज्य।

भारत के ऐसे राज्य जहां 10000 हेक्टेयर से ज्यादा के क्षेत्र ड्रिप सिंचाई के तहत हैं उन्हें एक श्रेणी में रखा गया है। इस श्रेणी में आंध्र प्रदेश। तेलंगाना, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्य शामिल हैं। 'ए' श्रेणी से बाहर वाले राज्य और जो हिमालय क्षेत्र में आते हैं 'बी' श्रेणी में आते हैं ।

पूर्वोत्तर राज्य, जम्मू और कश्मीर, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग का जिला 'सी' श्रेणी के तहत आता है। 'बी' श्रेणी वाले राज्यों में ड्रिप व्यवस्था में आने वाला खर्च 'ए' श्रेणी के राज्यों के मुकाबले 15 से 16 फीसदी ज्यादा अनुमानित है। जबकि 'सी' श्रेणी के राज्यों में अनुमानित खर्च 25 से 26 फीसदी खर्च 'ए' श्रेणी के राज्यों के मुकाबले ज्यादा है।

ड्रिप सिंचाई से सिंचित तैयार गेहूं की फसल ड्रिप सिंचाई पर सब्सिडी: 

भारत में ड्रिप व्यवस्था में सब्सिडी की व्यवस्था केंद्र प्रायोजित और राज्य सरकार की योजनाओं में उपलब्ध है। किसान की जमीन की मात्रा के हिसाब से सब्सिडी की ये मात्रा अलग-अलग राज्यों में बदल जाती है। इसकी जानकारी के लिए किसान अपने नजदीकी कृषि विभाग कार्यालय ए या कृषि अधिकारी से संपर्क कर सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ लेना चाहिए।

के.के. शर्मा जिला सलाहकार के अनुसार,

किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग दतिया जिला दतिया म.प्र.