जन्मदिन: दादा साहब फाल्के का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था


स्टोरी हाइलाइट्स

भारतीय फिल्म जगत के पितामह कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के का जन्म आज के ही दिन 1870 में हुआ था। उनका असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था।

जन्मदिन:- दादा साहब फाल्के का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था

Dadasaheb Phalke, motion picture director who is considered the father of the Indian cinema. Phalke was credited with making India's first indigenous feature film and spawning the burgeoning Indian film industry today chiefly known through Bollywood productions.

भारतीय फिल्म जगत के पितामह कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के का जन्म आज के ही दिन 1870 में हुआ था। उनका असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था। वो एक बेहतरीन निर्देशक ही नहीं बल्कि एक जाने माने निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे। उनका जन्म 30 अप्रैल 1870 को हुआ था। उन्होंने 19 साल के फिल्मी करियर में 95 फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में बनाई थीं।
40 वर्ष के उम्र में साझेदार के अलग हो जाने के बाद वह काफी चिडचिडे हो गए थे। इसी स्वाभाव को कुछ बदलने के लिए वह एक फिल्म के प्रदर्शन में गए। उस फिल्म को देखने के बाद उनको अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया था और उस सख्स ने तय कर लिया था कि वह फिल्में ही बनाएगा।

बचपन से ही दादा साहेब की रूचि कला में थी और वह इसी क्षेत्र में अपना भविष्य देखते थे। इसी कारण उन्होंने साल 1885 में जेजे कॉलेज ऑफ आर्ट में दाखिला लिया। उन्होंने बड़ौदा के मशहूर कलाभवन से भी कला की शिक्षा हासिल करी। इसके बाद उन्होंने नाटक कंपनी में चित्रकार के रूप में काम मिल गया। 1903 में वे पुरातत्व विभाग में बतौर  फोटोग्राफर काम करने लगे थे।
उनका मन फोटोग्राफी में ज्यादा नहीं लगा और वह  बतौर फिल्मकार अपना करियर बनाने चाहते थे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए साल 1912 में वो लंदन चले गए। कुछ समय लंदन में रहकर उन्होंने फिल्म निर्माण के बारे में सीखा और कुछ उपकरण खरीद कर वह मुंबई वापस लौट आए। उन्होंने 5 पोंड में एक सस्ता कैमरा ख़रीदा। दादा साहेब ने 'फाल्के फिल्म कंपनी' की शुरुआत की और उसके बैनर तले राजा हरिश्चंद्र नाम की फिल्म बनाने का काम चालू किया जिसमें लगभग उन्हें छह महीने का वक्त लगा था।

फिल्म निर्माण के समय उनकी पत्नी ने उनकी काफी सहायता की थी। फिल्म की शूटिंग के दौरान फिल्म में काम करने वाले लगभग 500 लोगों के लिए खुद खाना बनाती थीं। इस फिल्म के निर्माण में लगभग 15,000 रूपये लगे, जो उस समय बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। तीन मई 1913 को मुंबई के कोरनेशन सिनेमा हॉल में यह फिल्म पहली बार दिखाई गयी। लगभग 40 मिनट की यह फिल्म सुपरहिट साबित हुई।
फिल्म राजा हरिश्चंद्र की अपार सफलता के बाद दादा साहेब ने फिल्म मोहिनी भस्मासुर का निर्माण किया।  इसके बाद वो नहीं रुके और एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में बनाना शुरू कर दिया। दादा साहेब की आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी। दादा साहेब ने 16 फरवरी 1944 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

भारतीय सिनेमा में दादा साहब के ऐतिहासिक योगदान के चलते 1969 से भारत सरकार ने उनके सम्मान में 'दादा साहब फाल्के' अवार्ड की शुरुआत की गई थी।  दादा साहब फाल्के पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। बता दें आपको सबसे पहले देविका रानी चौधरी को यह पुरस्कार मिला था। पिछले साल इसे अभिनेता अमिताभ बच्चन को दिया गया और हाल ही में सुपरस्टार रजनीकांत को यह सम्मान देने की घोषणा की गई है।