मेडिटेशन करने से पहले ये समझ लें? ध्यान की सबसे सरल विधि क्या है?


स्टोरी हाइलाइट्स

जो लोग मानसिक रूप से कमजोर होते हैं वे लंबे समय तक प्रचलित ध्यान(एकाग्रता या धारणा) का प्रयोग करने से गहराई से सोचने लग जाते हैं| उनकी यादों के पुराने पिटारे खुल जाते हैं और वो घबरा जाते हैं, ऐसे लोग दिन रात एक ही बात को सोचते रहते हैं, उसी को सर्च करते हैं, उसी को देखते हैं उसी को सुनते हैं|

अतुल विनोद ध्यान कैसे करते हैं और इसका सरल उपाय जाने इससे पहले कुछ बातें समझ लेना चाहिए| जो लोग मानसिक रूप से कमजोर होते हैं वे लंबे समय तक प्रचलित ध्यान(एकाग्रता या धारणा) का प्रयोग करने से गहराई से सोचने लग जाते हैं| उनकी यादों के पुराने पिटारे खुल जाते हैं और वो घबरा जाते हैं, ऐसे लोग दिन रात एक ही बात को सोचते रहते हैं, उसी को सर्च करते हैं, उसी को देखते हैं उसी को सुनते हैं| ऐसे लोग कल्पनाएं करने लगते हैं और वह जो जो कल्पना करते हैं वह वह उनके सामने आने लगता है| उन्हें अपना हर symptom कुंडलिनी या चक्र जागृति से जुड़ा हुआ दिखाई देता है| वहीं उन्हें स्वप्न में दिखाई देता है| वहीं उन्हें ध्यान के दौरान दिखाई देता है| इसी को hallucinations कहते हैं ,जो आगे चलकर मानसिक विकार (Psychosis) में बदल जाता है | यदि आपके साथ ऐसा हो रहा है तो भी आप को डरने की जरूरत नहीं है लेकिन आपको इसे अध्यात्मिक जाग्रति या कुंडलिनी जागृति मानने से बचना होता| क्योंकि जब तक आप इन्हें जागृति के अनुभव मानते रहेंगेआप तब तक ऐसा साहित्य, ऐसी जानकारियां हासिल करते रहेंगे जो आपको और ज्यादा इल्यूजन में ले जाएंगे| मान लीजिए यदि आपकी अध्यात्मिक/कुंडलिनी/चक्र जागृति के कारण किसी तरह से कहीं कोई अवरोध पैदा हुआ है तो भी आपको बाहरी जानकारियों या इलाज के दरवाजों को बंद कर देना चाहिए क्योंकि कुंडलिनी स्वयं ही इस तरह के अवरोध को हटाने में सक्षम है | ऐसे कई कोर्स संचालित हैं जो 1 हफ्ते या 15 दिन के होते हैं जिनमें आपको सुबह से लेकर रात तक सिर्फ ध्यान की प्रक्रिया करनी पड़ती है, लम्बे समय तक किये गये कृत्रिम ध्यान अभ्यास खतरनाक हैं| ध्यान रखें कि परेशानी होने पर एक ही पोजीशन पर ना बैठें, यदि आपको बैठने में तकलीफ हो रही है तो आप अपना पोश्चर चेंज कर लें| यदि आप एकाग्रता का अभ्यास कर रहे हैं या किसी खास प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और आपका दिमाग गर्म हो रहा है दर्द हो रहा है तब आप ध्यान को वहां से हटा ले और अपने दिमाग को ठंडक दें| ध्यान और आत्मज्ञान परिणाम है ना कि किसी प्रक्रिया का हिस्सा| आज के दौर में हमारी प्राचीन ध्यान और योग की विधियां बहुत हद तक मूल रूप से बदल गई हैं| हमारा योग विज्ञान एक पूर्ण विज्ञान है| जिसमें बहुत ज्यादा बदलाव की आवश्यकता नहीं है| क्योंकि मूल रूप से योग हमारी चेतना के द्वारा खुद ही हमें कराया जाता है, जिसमें बदलाव की शायद ही कोई गुंजाइश हो हां आधुनिक तकनीकी की वजह से हम अच्छी-अच्छी ध्वनियों को रिकॉर्ड करके उन्हें रीप्ले करके सुन सकते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन मूल रूप से योग को बदला नहीं जा सकता | योग में ध्यान सातवी स्टेज है ये टी कर लें कि क्या अपने इससे पहले की ६ स्टेज पार कर ली हैं? कई बार हम बड़े-बड़े ध्यान योग शिविर अटेंड करने के बाद खुद को आध्यात्मिक व्यक्ति मानने का भ्रम पाल लेते हैं और हमें लगता है कि हम ध्यानी हो गए हैं, लेकिन यह सिर्फ हमारा अहंकार ही होता है, अध्यात्म किसी प्रक्रिया का हिस्सा बनना नहीं है बल्कि आध्यात्म एक उपलब्धि है, जीवन की एक विधि है, अस्तित्व का एक आयाम है | कुछ गुरु कहते हैं कि वर्तमान के प्रति जागरूक हो जाओ बस, वर्तमान के प्रति जागरूक होना एक विचार, एक अच्छी कल्पना तो हो सकती है परंतु जब तक हम विकारों, बुरी आदतों, बुरे संस्कारों से मुक्त नहीं होंगे तब तक हम वर्तमान के प्रति कैसे जागरूक हो सकते हैं? यदि आप ध्यान योग में बहुत कुछ नहीं कर सकते आपको अच्छा गुरु प्राप्त करना कठिन लगता है तो आप एकांत में शांत होकर बैठना शुरू कर दें, बस यहीं से आपकी अध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत हो जाएगी| अब सवाल आता है कि हम शांत होकर कैसे बैठ सकते हैं? शांत होकर बैठना बहुत कठिन है क्योंकि हम जो हैं वह हमारे विचारों भावनाओं और संस्कारों के कारण हैं| यह इस जन्म के भी हो सकते हैं और पूर्व जन्म के भी| इन विचारों को समझना जरूरी है और इनके स्रोत को समझना भी जरूरी है| जब आप इन विचारों के स्रोत को समझ लेते हैं तो इनके आवागमन का सिलसिला धीरे-धीरे कम होने लगता है| यदि आप ध्यान करना चाहते हैं तो किसी भी खास प्रक्रिया का इस्तेमाल करे बगैर आप ध्यान कर सकते हैं| आप सिर्फ एक शांत स्थान पर बैठें| विचार को रोकने या सांस पर ध्यान न दें| सिर्फ बैठे रहें, शांत सिर्फ शांत, आप आंखों को बंद कर लें, या आंखें आधी खुली रखें| ध्यान से पहले क्या न करें? बहुत जल्दबाजी ना करें | सिर्फ शांत होकर बैठने की आदत डालें| पूरी नींद लें| अच्छा भोजन लें| तनाव कम से कम लें| बहुत ज्यादा परेशानियां हो तो परमात्मा के ऊपर छोड़ दें| सारी परेशानियों को अपने सिर पर सवार ना होने दें| अपने रिश्तो को सामान्य करें अपने दिमाग में जो भी कुछ आ रहा है एक फिल्म की तरह उसे सिर्फ देखते रहें| रोकने कि कोशिश न करें| अपने अहंकार को जितना नीचे ला सके उतना नीचे ले जाएँ| अपनी पहचान से थोड़ी देर के लिए मुक्त हो जाएँ| अपनी इज्जत मान सम्मान प्रतिष्ठा को थोड़ा ताक पर रख दें| लोगों से बिना कारण मिलना जुलना कम कर दें| बेफिजूल की इंटरनेट सर्चिंग न्यूजपेपर रीडिंग फेसबुक व्हाट्सएप पर दिन रात पढ़ते रहना देखते रहना इन सब को थोड़ा कम करें| शांति के साथ, प्यार के साथ संतुलन के साथ धीरे-धीरे 15 मिनट 20 मिनट आधा घंटे बैठने की प्रैक्टिस करते रहें| किसी तरह की इच्छा ना रखें| बहुत ज्यादा आध्यात्मिक चर्चाओं में, तर्कों में, विश्लेषण में, किताबें पढ़ने में इंवॉल्व ना हों| बहुत ज्यादा आध्यात्मिक ज्ञान आपकी साधना में बाधा बन सकता है, यह ज्ञान नहीं सिर्फ जानकारियां हैं, जो आपको भ्रमित करती रहती हैं| हो सके तो ध्यान से पहले प्राणायाम व तेज शारीरिक गतिविधियों के द्वारा अपने शरीर को थोड़ा सा मजबूत बनाएं| अपनी इच्छाओं ,वासनाओं, विकारों को जो मन से जुड़े हुए हैं उन्हें दूर करने की कोशिश करें| अनुभवी गुरु की सहायता लें, लेकिन आपके आंतरिक गुरु की भी बात सुनें| अपनी अंतरात्मा की बात भी सुनने की कोशिश करें| याद रखिए अध्यात्म में दो-तीन महीने में कुछ हासिल नहीं होता आप यदि सोचते हैं कि 1 हफ्ते के मेडिटेशन रिट्रीट से आप आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर लेंगे तो यह आपका भ्रम है| आध्यात्मिक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो लंबे समय में फलित होती है|