सत्संग की महिमा- आज भी उतनी ही प्रासंगिक


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत में प्राचीन काल से ही ज्ञान, विवेक और ईश्वर के प्रति निष्काम भक्ति के लिए सत्संग को सबसे ज्यादा अहमियत दी गयी है. सत्संग की महिमा हरएक धर्मग्रंथ में गायी गयी है. इसके पीछे विज्ञान यह है कि हम जिस भी व्यक्ति के साथ रहते हैं और उठते-बैठते हैं, जाने-अनजाने उसके गुण-दोष हमारे भीतर आने लगते हैं. हमारे गुण-दोष भी उसे प्रभावित करते हैं. व्यक्ति की पहचान इस बात से की जाती है कि वह कैसे लोगों की संगति करता है

  भारत में प्राचीन काल से ही ज्ञान, विवेक और ईश्वर के प्रति निष्काम भक्ति के लिए सत्संग को सबसे ज्यादा अहमियत दी गयी है. सत्संग की महिमा हरएक धर्मग्रंथ में गायी गयी है. इसके पीछे विज्ञान यह है कि हम जिस भी व्यक्ति के साथ रहते हैं और उठते-बैठते हैं, जाने-अनजाने उसके गुण-दोष हमारे भीतर आने लगते हैं. हमारे गुण-दोष भी उसे प्रभावित करते हैं. व्यक्ति की पहचान इस बात से की जाती है कि वह कैसे लोगों की संगति करता है. अंग्रेजी में कहावत है कि A man is known by the company he keeps. आधुनिक मनोविज्ञान भी इस बात को मानता है कि मनुष्य के चरित्र और आचरण को उसके साथ रहने वाले लोग बहुत प्रभावित करते हैं. ऋषियों ने जिस बात को बहुत अच्छी तरह समझ लिया था. हमारे यहाँ एक परम्परा रही है कि ऋषिगण ज्ञान और विवेक संबंधी सन्देश कथाओं के माध्यम से देते रहे हैं. इससे व्यक्ति को रोचक तरीके से बात समझ में आती है. सत्संग के विषय में भी एक पौराणिक कथा मिलती है. यह कथा इस प्रकार है- विश्वामित्र का वशिष्ट के प्रति दुराभाव और ईर्ष्या के बारे में सभी जानते हैं. वह हमेशा वशिष्ट से तकरार करने का कोई मौका नहीं चूकते. एक बार दोनों में इस बात पर विवाद छिड़ गया कि तपस्या बड़ी है कि सत्संग. वशिष्ट का कहना था कि सत्संग बड़ा है और विश्वामित्र तपस्या को सत्संत से बड़ा बता रहे थे. इस विवाद का निर्णय करवाने के लिए दोनों शेष के पास पहुँचे. शेष ने कहा कि अभी तो मेरे सिर पर पृथ्वी का बोझ है, इसलिए मैं कोई निर्णय नहीं दे सकूंगा. यदि आप दोनों में से कोई थोड़ी देर के लिए इस भार को उठा ले तो मैं कुछ निर्णय दे सकता हूँ. विश्वामित्र को अपनी तपस्या पर बहुत घमंड था. उन्होंने अपनी दस हज़ार वर्ष की तपस्या के फल का संकल्प लेकर पृथ्वी को उठाने का प्रयास किया. पृथ्वी काँपने लगी. सारे संसार में तहलका मच गया. ऐसी स्थिति में महर्षि वशिष्ट ने अपने सत्संग के आधे क्षण के फल का संकल्प लेकर पृथ्वी को धारण कर लिया. वह बहुत देर तक पृथ्वी को धारण किये रहे. अंत में जब शेष भगवान् पृथ्वी को वापस लेने लगे तो विश्वामित्र बोले कि अभी आपने निर्णय सुनाया ही नहीं. शेषजी हँस कर बोले कि निर्णय तो अपने आप हो गया. आधे क्षण के सत्संग की बराबरी हजारों वर्ष की तपस्या नहीं कर सकी. तो मित्रों, अपने साथियों और अपनी संगति का चयन बहुत सोच-समझकर कीजिए और बच्चों को भी अच्छी कम्पनी के लिए प्रोत्साहित कीजिए. वे किन बच्चों के साथ रह रहे हैं, इस पर नज़र रखिये और सुझाव दीजिये कि उन्हें किन बच्चों के साथ रहना चाहिए.