जाइए, उज्जैन क्यों है इतना ख़ास, दुनिया का एकमात्र चिरंजीवी मंदिर भी यहीं- दिनेश मालवीय

स्टोरी हाइलाइट्स
Ujjain has a very important place in terms of knowledge, science, mathematics, literature and spirituality. Although there are countless
जाइए, उज्जैन क्यों है इतना ख़ास, दुनिया का एकमात्र चिरंजीवी मंदिर भी यहीं -दिनेश मालवीय
ज्ञान, विज्ञान, गणित, साहित्य और अध्यात्म की दृष्टि से उज्जैन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. वैसे तो भारत में अनगिनत और एक से बढ़कर एक तीर्थ-स्थल हैं, लेकिन उज्जैन इन सबमें बहुत न्यारा है. इसमें अनेक महत्वपूर्ण चीजें एकसाथ मिलती हैं. शेष तीर्थ-स्थलों में एक-दो चीजें ही सबसे महत्वपूर्ण होती हैं. यहाँ के अधिष्ठाता देवता कालों के काल श्रीमहाकालेश्वर हैं, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल हैं.
इसके अलावा, उज्जैन में अनेक बातें हैं, जो इसे सबसे विशेष बनाती हैं. उज्जैन को महाभारत में स्वर्ग कहा गया है. यह एक मात्र ऐसा तीर्थ-स्थल है, जहाँ ज्योतिर्लिंग के साथ ही सिंहस्थ महाकुम्भ का आयोजन होता है. बारह वर्ष के अंतराल में होने वाले इस एक माह के महाकुम्भ पर्व के दौरान करोड़ों लोग पवित्र क्षिप्रा में डुबकी लगाकर यहाँ होने वाले धार्मिक आयोजनों से पुण्य अर्जित करते हैं. वर्ष 2016 के सिंहस्थ में लगभग सात करोड़ लोगों ने इस पर्व में भाग लिया था.
यहाँ साढ़े तीन काल विराजमान हैं- महाकाल, गढ़कालिका, काल भैरव और अर्धमहाकाल. श्रीमहाकाल की महिमा तो विश्वविदित है ही, लेकिन उनके कोतवाल काल भैरव भी कुछ कम प्रसिद्ध नहीं है. यहाँ भैरोगढ़ में उनका दुर्गनुमा विशाल मंदिर है. यह प्रतिष्ठित प्रतिमा द्वारा मदिरापान किया जान आजतक विश्वभर में कौतुहल का विषय बना हुआ है. मदिरा का प्याला उनके मुंह से लगाते ही पूरा खाली हो जाता है.
उज्जैन में तीन गणेश विराजमान हैं- चिन्तामन गणेश, मंछामन गणेश और इच्छामन गणेश. इन प्रसिद्द मंदिरों के दर्शन से मनुष्य की सारी चिंताएं दूर हो जाती हैं.
उज्जैन में 84 महादेव स्थित हैं, जिनमें सबकी अपनी-अपनी विशेषता है. यहाँ भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा-स्थली है. यह नगर के अंकपात क्षेत्र में स्थित है. यह श्रीकृष्ण ने अपने बड़े भाई बलरामजी के साथ 62 दिन तक अध्ययन किया था. इस दौरान उन्होंने सभी 64 कलाओं, 14 विद्याओं और वेड-वेदांग का सम्पूर्ण अध्ययन किया था. यही अपने गरीब सहपाठी सुदामा से उनकी मित्रता हुई जो इतिहास में एक उदाहरण बन गयी.
उज्जैन के मंगलनाथ क्षेत्रमें मंगल ग्रह का उत्पत्ति स्थान है. यहाँ मंगलनाथ का विशाल सुन्दर मंदिर स्थित है, जहाँ लोग दर्शन के साथ-साथ मंगल दोष का निवारण करवाने जाते हैं.
इसी पावित्र नगरी ने विश्व साहित्य को मूर्धन्य संस्कृत कवि महाकवि कालिदास की सौगात दी. उनके साहित्य की उत्कृष्टता के कारण कुछ विद्वानों ने उन्हें भारत का शेक्सपीयर कहा है. हालाकि यह गलत है, क्योंकि कालिदास शेक्स्पीयर से बहुत पहले हुए और उनके साहित्य की उत्कृष्टता शेक्सपीयर में नहीं मिलती. कहा तो ऐसा जाना चाहिए कि शेक्सपीयर अंग्रेज़ी के कालिदास हैं.
उज्जैन दुन्या का एकमात्र ऐसा स्था है, जहाँ ऐसे आठ लोगों का मंदिर है, जिन्हें चिरंजीवी माना गया है. इसे बाबा गुमानदेव हनुमान अष्ट चिरंजीवी मंदिर कहा जाता है. इन आठ चिरंजीवियों में परशुराम, अश्वत्थामा, राजा बलि, मार्कंडेय, कृपाचार्य, विभीषण और हनुमानजी शामिल हैं. गुमानदास हनुमान मंदिर का बहुत महत्त्व है. गुमान यानी घमंड. इस मंदिर में हनुमानजी के इस विग्रह के दर्शन करने से घमंड का नाश होता है. इसीलिए इसे गुमानदास हनुमान मंदिर कहा जाता है.
उज्जैन में विक्रमादित्य जैसे महान सम्राट हुए, जिन्हें भारत के इतिहास और पुराण साहित्य में एक आदर्श राजा माना जाता है. वह महान योद्धा होने के साथ ही उद्भट विद्वान, न्यायप्रिय शासक, गुणीजन के संरक्षक और अनेक दिव्य गुणों से सम्पन्न व्यक्ति थे. उनकी इष्ट देवी माता हरसिद्धि का मंदिर यहीं स्थित है. उनके दरबार के नौ रत्न अलग-अलग विद्याओं में पारंगत थे. सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत शुरू किया था.
उज्जैन वैसे तो देश के सभी धर्मों और सम्प्रदायों का एक प्रमुख केंद्र रहा है, लेकिन तंत्र साधना में इसका विशेष स्थान है. यहाँ बहुत महान तांत्रिक हुए हैं और कुछ आज भी हैं. इसी कारण यहाँ के शमसान को तीर्थ का दर्जा प्राप्त है. इसे चक्रतीर्थ कहा जाता है.
इसके अलावा उज्जैन संसार के केंद्रबिंदु के रूप में भी मान्य है. उज्जैन से कर्करेखा होकर गुजरती है. प्राचीनकाल से ही उज्जैन कालगणना का प्रमुख केंद्र रहा है. यहाँ पर जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला है, जिसकी प्रसिद्धि विश्वभर में है.
उज्जैन मुख्य रूप से मंदिरों का नगर है. यहाँ कदम-कदम पर मंदिर स्थित हैं. हर मंदिर के पीछे कोई इतिहास है और सबका अपना-अपना महत्त्व है. उज्जैन में विभिन्न अखाड़े भी यहाँ की एक महत्वपूर्ण विशेषता है. इन अखाड़ों का अपना गौरवशाली इतिहास है. इन्होने धर्म की रक्षा और प्रसार में बहुत अहम् भूमिका अदा की है.
उज्जैन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग दो सौ किलोमीटर और इंदौर से लगभग पचास किलोमीटर दूर है. इसकी रेल और सड़क मार्ग से कनेक्टिविटी बहुत अच्छी है.