भोपाल: न्याय केवल कोर्ट के आदेशों से नहीं, बल्कि न्यायाधीशों के व्यक्तिगत साहस से भी जिंदा रहता है। मध्यप्रदेश की न्यायपालिका में इन दिनों एक ऐसा ही अभूतपूर्व घटनाक्रम चर्चा में है – जब शहडोल में पदस्थ महिला जज अदिति शर्मा ने अपने आत्मसम्मान और न्यायिक मूल्यों के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
उनके इस फैसले ने पूरे न्यायिक तंत्र को झकझोर दिया है।
❝जिसे मैंने यौन प्रताड़ना का दोषी माना, वही अब हाईकोर्ट में जज बन गया। मैं ऐसे तंत्र का हिस्सा नहीं रह सकती।❞
जज अदिति शर्मा का दो टूक रुख
महिला जज अदिति शर्मा का इस्तीफा सीधे तौर पर हाईकोर्ट जस्टिस राजेश कुमार गुप्ता की नियुक्ति के विरोध में है। अदिति शर्मा ने उन पर पूर्व में यौन उत्पीड़न और व्यवहारिक कदाचार के गंभीर आरोप लगाए थे।
यह मामला उस समय और भी संवेदनशील हो गया जब राजेश गुप्ता को हाईकोर्ट जज बनाए जाने की घोषणा हुई – और अदिति शर्मा ने नैतिक विरोध स्वरूप अपनी न्यायिक सेवाओं से त्यागपत्र दे दिया।
यह 2014 में एडीजे स्तर की महिला जज द्वारा जस्टिस एस.के. गंगेले के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की याद दिलाता है, जब पीड़िता को इस्तीफा देना पड़ा था। उस समय सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति ने उत्पीड़न का प्रमाण नहीं पाया था, लेकिन तबादले की प्रक्रिया को जरूर "गलत" ठहराया था।
2017-18 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की अनुशंसा पर 6 महिला जजों की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। कारण बताया गया – "कार्य संतोषजनक नहीं है"।
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए चार जजों की सेवाएं बहाल कीं – ज्योति वरकड़े, सोनाक्षी जोशी, प्रिया शर्मा और रचना जोशी। परंतु अदिति शर्मा और सरिता चौधरी के मामले में निर्णय नहीं बदला गया।
अदिति शर्मा ने इस निर्णय को "भेदभावपूर्ण और अन्यायपूर्ण" बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
⚖ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
“महिलाओं की प्रसव या गर्भपात से जुड़ी स्वास्थ्य स्थितियों को पुरुष तभी समझ पाते हैं जब वे स्वयं अनुभव करते।”
जस्टिस बीवी नागरत्ना और कोटिश्वर सिंह की पीठ
यह टिप्पणी न्यायिक इतिहास में महिला अधिकारों के पक्ष में एक साहसिक हस्तक्षेप मानी गई।
अदिति शर्मा का इस्तीफा केवल एक नौकरी छोड़ना नहीं, न्यायिक तंत्र पर नैतिक सवाल खड़ा करना है।
यह प्रश्न है – क्या न्यायपालिका में भी अब पीड़िता को ही बाहर किया जाएगा, और आरोपी को इनाम मिलेगा?
सवालों के घेरे में न्यायपालिका की पारदर्शिता
क्या यौन प्रताड़ना के आरोपित को उच्च न्यायिक पद देना तंत्र की नैतिक विफलता नहीं है?
क्या महिला जज की आवाज को नजरअंदाज कर दिया गया?
क्या यह फैसला बाकी महिला न्यायाधीशों को भी चुप रहने का संकेत नहीं है?
महिला जज अदिति शर्मा का यह कदम एक नैतिक विद्रोह है। ये महज़ एक इस्तीफा नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक ढांचे को आईना दिखाने वाली आवाज है – जो बताती है कि न्याय केवल कानून की किताबों में नहीं, बल्कि न्यायाधीशों की रीढ़ में होता है।