मध्य प्रदेश में एक नई स्वास्थ्य चुनौती तेज़ी से फैल रही है। एम्स भोपाल की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 20 से ज़्यादा ज़िलों में 130 से ज़्यादा मरीज़ मेलियोइडोसिस नामक एक संक्रामक रोग से पीड़ित पाए गए हैं। यह रोग बैक्टीरिया से होता है और सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इसके लक्षण टीबी जैसे दिखते हैं, जिसके कारण गलत इलाज हो रहा है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हर दस में से चार मरीज़ों की मौत हो जाती है, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है।
एम्स भोपाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि मेलियोइडोसिस के लक्षणों में लंबे समय तक लगातार बुखार, लगातार खांसी, वज़न कम होना और फेफड़ों में घाव शामिल हैं। ये लक्षण तपेदिक जैसे ही होते हैं। यही वजह है कि डॉक्टर अक्सर महीनों तक टीबी की दवाइयाँ देकर मरीज़ों का इलाज करते हैं।
जब तक बीमारी का पता चलता है, तब तक संक्रमण पूरे शरीर में फैल चुका होता है, जिससे मरीज़ की जान को खतरा हो सकता है। यही वजह है कि इस संक्रमण से मृत्यु दर 40 प्रतिशत तक पहुँच रही है।
पिछले छह सालों के आँकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश के 20 से ज़्यादा ज़िलों में यह बीमारी सामने आई है। भोपाल, इंदौर, सागर और रतलाम जैसे ज़िलों में सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं। एम्स के विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी अब राज्य में स्थानिक हो गई है। इसका मतलब है कि संक्रमण जारी रह सकता है, और समय-समय पर नए मामले सामने आते रहेंगे।
एम्स भोपाल ने 2023 से मेलियोइडोसिस पर चार विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं। 25 से ज़्यादा सरकारी और निजी संस्थानों के 50 से ज़्यादा माइक्रोबायोलॉजिस्ट और चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया गया। इस प्रयास के परिणामस्वरूप, हाल ही में जीएमसी भोपाल, बीएमएचआरसी, जेके अस्पताल, सागर और इंदौर सहित विभिन्न अस्पतालों से 14 नए मामले सामने आए हैं। इससे स्पष्ट है कि बढ़ती जागरूकता और प्रयोगशाला क्षमता के साथ, इस बीमारी की पहचान तेज़ी से हो रही है।
मेलिओइडोसिस पैदा करने वाला बैक्टीरिया बर्कहोल्डेरिया स्यूडोमेलाई है। यह मिट्टी और दूषित पानी में पाया जाता है। संक्रमण आमतौर पर त्वचा के घावों, दूषित पानी के संपर्क में आने या साँस के माध्यम से होता है। अगर तुरंत और सही तरीके से इलाज न किया जाए, तो यह शरीर के विभिन्न हिस्सों में फोड़े, फेफड़ों में संक्रमण और सेप्सिस का कारण बन सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मेलिओइडोसिस को उपेक्षित बीमारियों की अपनी सूची में शामिल किया है। यह पहले से ही दक्षिण पूर्व एशिया और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है। भारत में, खासकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में, इसके मामलों की लगातार बढ़ती संख्या चिंता का विषय बन गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि धान के खेतों में काम करने वाले किसान, मधुमेह से पीड़ित लोग और अत्यधिक शराब पीने वाले लोग इस संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इन समूहों में संक्रमण की घटना और मृत्यु दर दोनों देखी गई है।
एम्स भोपाल ने डॉक्टरों और आम जनता से अपील की है कि अगर किसी को दो-तीन हफ़्ते से ज़्यादा बुखार रहे, टीबी की दवाओं का असर न हो, या शरीर पर बार-बार छाले पड़ें, तो तुरंत मेलियोइडोसिस की जाँच करवाएँ। जल्दी निदान और उचित इलाज से इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है और कई जानें बचाई जा सकती हैं।
पुराण डेस्क