Mohan Cabinet: पचमढ़ी में 5वीं डेस्टिनेशन कैबिनेट, आदिवासी गौरव को मिली पहचान, जानिए कौन हैं राजा भभूत सिंह?


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स्टोरी हाइलाइट्स

एमपी कैबिनेट मीटिंग महज प्रशासनिक पहल नहीं है, बल्कि प्राकृतिक धरोहरों के सम्मान, आदिवासी इतिहास के पुनर्पाठ और स्थानीय विकास की दृष्टि से ऐतिहासिक, मुख्यमंत्री डॉ. यादव का यह प्रयास राज्य सरकार की 'विरासत के जरिए विकास' की नीति को मजबूती देता है..!!

मध्य प्रदेश की खूबसूरत वादियों में मोहन कैबिनेट की बैठक होने जा रही है। यह बैठक आदिवासी समाज और वीरता के प्रतीक राजा भभूत सिंह की स्मृति को विशेष रूप से समर्पित होगी, जिनकी ऐतिहासिक भूमिका को मंत्रिपरिषद की बैठक के दौरान फिर से याद किया जाएगा। पचमढ़ी गोंड शासक राजा भभूत सिंह के ऐतिहासिक योगदान को समेटे हुए है। उन्होंने इस पहाड़ी भूभाग का उपयोग शासन, सुरक्षा और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए किया। ऐसे में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में 3 जून को पचमढ़ी स्थित राजभवन में होने वाली कैबिनेट बैठक में आदिवासी विरासत, प्राकृतिक संसाधनों और विकास के लिए नए संकल्प लिए जाएंगे।

यह बैठक आदिवासी नायकों के गौरव, धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व के स्थल पचमढ़ी को राष्ट्रीय पहचान दिलाने की दिशा में निर्णायक कदम माना जा रहा है।

यह कैबिनेट बैठक महज एक प्रशासनिक पहल नहीं है, बल्कि प्राकृतिक विरासत के सम्मान, आदिवासी इतिहास के पुनर्पाठ और स्थानीय विकास की दृष्टि से ऐतिहासिक होगी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव का यह प्रयास राज्य सरकार की 'विरासत से विकास' की नीति को मजबूती देता है।

पचमढ़ी भगवान भोलेनाथ की नगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है। पचमढ़ी में धूपगढ़ चोटी समुद्र तल से करीब 1,350 मीटर (4,429 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान सतपुड़ा पर्वतमाला का प्रमुख आकर्षण है। धूपगढ़ से दिखने वाला सूर्योदय और सूर्यास्त पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है, लेकिन यह स्थान गोंड साम्राज्य की सामरिक शक्ति और प्राकृतिक संरक्षण दृष्टिकोण को भी दर्शाता है।

पचमढ़ी मध्य प्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन भी है। मंत्रिपरिषद की बैठक का आयोजन प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह पचमढ़ी की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को सम्मानित करने का अवसर है।

पचमढ़ी प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के अंतर्गत 33.88 करोड़ रुपए की लागत के 11 विकास कार्यों का लोकार्पण और करीब 20.49 करोड़ रुपए की लागत के 6 कार्यों का शिलान्यास करेंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री पौधारोपण भी करेंगे।

मंत्रिमंडल की बैठक विशेष रूप से गोंड शासक राजा भभूत सिंह की स्मृति को समर्पित होगी, जिन्होंने अंग्रेजों से स्वतंत्रता संग्राम, शासन, रक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए पचमढ़ी की पहाड़ियों का उपयोग किया था। 

मुख्यमंत्री डॉ. यादव की पहल पर कैबिनेट की बैठक में राजा भभूत सिंह की वीरता और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को याद करते हुए उन्हें सम्मानित किया जाएगा। 

पचमढ़ी के लिए किए जाने वाले विकास कार्यों में कार्यों में जयस्तंभ क्षेत्र में सड़कों का सौंदर्यीकरण, धूपगढ़ में जलापूर्ति के लिए पाइप लाइन और पंप हाउस, पंचमढ़ी प्रवेश द्वार का सौंदर्यीकरण, सतपुड़ा रिट्रीट में रसोई, रेस्टोरेंट और स्वीमिंग पूल का जीर्णोद्धार और पर्यटन सेवाओं का विस्तार, जटाशंकर और पांडव गुफाओं में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए पिंक टॉयलेट लाउंज का उद्घाटन, हांडी खो और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में पर्यटन सुविधाओं का विकास, एमआईसीई योजना के तहत सामुदायिक केंद्र का विकास, ग्लेन व्यू में केंद्रीय नर्सरी की स्थापना और पहाड़ी पर स्थित बंगले को होम-स्टे में परिवर्तित करना शामिल है। 

प्रख्यात शोधकर्ता एवं समाजसेवी चाणक्य बख्शी ने सतपुड़ा की घाटियों में आजादी की अलख जगाने वाले राजा भभूत सिंह के बारे में लिखा है कि सैताम मिलकर गाते हैं, गोंड मवासी, फांसीखाड़, सांकलधो कहलाते हैं, क्रांतिकारी गीत गाते हैं, फिरंगियों से भी लड़े थे, भभूत सिंह का पचमढ़ी, यह पचमढ़ी स्वर्ग के समान सुंदर है।

लेखक चाणक्य बख्शी लिखते हैं कि अमर राष्ट्रनायक शहीद राजा भभूत सिंह सदैव अमर रहेंगे और समाज की चिरस्थायी स्मृति में अंकित रहेंगे। उल्लेखनीय है कि राजा भभूत सिंह का जन्म देनवा नदी के तट पर संयुक्त पचमढ़ी जागीर की हरकोट रायखेड़ी शाखा के सामंती परिवार में हुआ था, जो पचमढ़ी बड़ा महादेव के पारंपरिक सेवक एवं रक्षक थे।

अजीत सिंह पचमढ़ी के महादेव चौरागढ़ पहाड़ियों में राजा भभूत सिंह के वंश के पूर्वज थे। भोपा गोत्र के कोरकू ठाकुर वंश की पचमढ़ी शाखा के जागीरदार ठाकुर मोहन सिंह ने 1819-20 में अंग्रेजों के खिलाफ नागपुर के राजा अप्पासाहेब भोंसले का पूरे दिल से समर्थन किया था। 

अपने पूर्वजों के पदचिन्हों पर चलते हुए, युवा राजा भभूत सिंह ने भी 1857 की क्रांति के नेता तात्या टोपे के आह्वान पर 1858 में भारत के पहले सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का फैसला किया। राजा भभूत सिंह अपने बुजुर्गों से अंग्रेजों के खिलाफ नागपुर के राजा अप्पासाहेब भोंसले के सशस्त्र संघर्ष में स्थानीय आदिवासी योद्धाओं के समर्थन की कहानियाँ सुनते हुए बड़े हुए।

मुगलों व अंग्रेजों की मालिकाना अपसंस्कृति के कुसंस्कार व भोगवादी मानसिकता से ग्रस्त अंग्रेजी अमले का सामना राजा भभूत सिंह की शोषित प्रजा को करना पड़ रहा था। सरलता की प्रतिमूर्ति मवासी व गोण्ड गाँवों से अंग्रेज दरोगा व कर्मचारी जब तब देशी पशु पक्षियों की मुफ्त में मॉग व पकड़ धकड़ कर रहे थे। राजा भभूत सिंह पीड़ा व आक्रोष से देख रहे थे कि तात्या टोपे का सहयोग करने के आरोप में पचमढ़ी के ठाकुर महेन्द्रसिंह जी को तथा शोभापुर के दरबार राजा महिपाल सिंह जी को तथा फतेहपुर के दरबार राजा किशोर सिंह जी को दबाव बनाकर अंग्रेज अपमानित कर रहे थे।

जनवरी 1859 में जयपुर में हुई तात्याटोपे की फाँसी के समाचार ने राजा भभूत सिंह के धीरज का जैसे बाँध ही तोड़ दिया। राजा भभूत सिंह ने अपने मित्र व सेनापति होली भोई के साथ मिल कर छः माह जुलाई 1859 से जनवरी 1860 तक छापेमार युद्ध कला से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया। सतपुड़ा की महादेव पहाड़ियों के आँचल में मटकुली, पचमढ़ी, बागड़ा, बोरी के घने जंगलों में घाटियों, गुफाओं व खोहों के सहारे सतत संघर्ष चलता रहा। अंग्रेजों ने कर्नल मैक्नील डंकन के नेतृत्व में मद्रास इन्फैन्ट्री के साथ राजा भभूत सिंह के विरुद्ध अभियान छेड रखा था। राजा भभूत सिंह फिरंगियों के लिए महादेव की पहाड़ियों व देनवा की घाटियों के रहस्यमयी योद्धा सिद्ध हुए थे। उनके चमत्कारी युद्ध कौशल ने उन्हें क्षेत्र के जनजातीय समाज की परंपरा ने दैवीय शक्ति से युक्त श्र‌द्धा पुरुष मान्य किया था।

अगस्त 1859 में अंग्रेजी सेना से देनवा की सेंकरी घाटी में हुए भीषण युद्ध में राजा भभूत सिंह अपने साथियों संग सकुशल सुरक्षित निकल गए और अंग्रेजी सेना को पीछे हटना पड़ा। स्थानीय कहावतों में सुप्रसिद्ध है कि अभिमंत्रित जड़ी बूटियों से युक्त राजा भभूत सिंह का बन्दूक की गोली कुछ भी न बिगाड़ पाती थी और राजा भभूत सिंह अंग्रेजों को चकमा दे पलक झपकते हर्राकोट से गुप्त मार्गों से पुरानी पचमढ़ी पहुँच जाते थे।

सतपुड़ा टाईगर रिजर्व में राजा भभूत सिंह के किले के खण्डहर आज भी अपने पराक्रमी नायक की मूक गवाही देते खड़े ।. हर्राकोट से पचमढ़ी तक के जंगलों में मोर्चाबंदी अंग्रेजों के लिए अभेद्य सिद्ध हुई थी। पगारा के समीप सॉकलदोह और फाँसीखड्ड जहाँ अपराधियों को मृत्यु दण्ड दिया जाता था, राजा भभूत सिंह के न्यायप्रिय राज के साक्ष्य हैं। पचमढ़ी में माढ़ादेव की गुफा ने राजा भभूत सिंह का धन सुरक्षित रखा था और हर्राकोट में गुप्त शस्त्रागार था।

जनवरी 1860 में भारतीय इतिहास की परंपरागत दुर्बलता दोहराते हुए राजा भभूत सिंह के ही एक पूर्व सहयोगी ने भेदिया बनकर अंग्रेजों को ठिकाने की सूचना दे दी जिस के आधार पर राजा भभूत सिंह अपने सहयोगी मित्र होली भोई के साथ अंग्रेजों की पकड़ में आ गए। राजा भभूत सिंह व होली भोई को जबलपुर जेल भेज दिया गया। क्रांति के सहयोगियों को अंग्रेजों ने तरह तरह से दण्डित किया। 

राजा भभूत सिंह की जागीर जब्त कर ली गई। अंग्रेजों ने जागीर के सब से महत्वपूर्ण भाग बोरी परिक्षेत्र के घने जंगलों को जब्त कर भारत के प्रथम सरकारी रिज़र्व संरक्षित वन अधिसूचित कर दिया। हर्राकोट राईखेड़ा क्षेत्र को राजसात कर लिया गया। आज भी सतपुड़ा की घनी वादियां अपने राजा भभूत सिंह की वीरता की गाथा कहती हैा राजा भभूत सिह ने अपनी वीरता से तत्‍कालीन अंग्रेज शासकों को लोहे के चने चबाने को मजबूर कर दिया था।