स्थानांतरण में भ्रष्टाचार की बू


Image Credit : X

स्टोरी हाइलाइट्स

शिकायतों से घिरे नायब तहसीलदार को "इनाम"  में मिली मनचाही पोस्टिंग..!!

भोपाल/आलोट: मध्य प्रदेश में स्थानांतरण नीति एक बार फिर सवालों के घेरे में है। आम जनता के आक्रोश, सैकड़ों शिकायतों और वायरल वीडियो के बावजूद एक विवादित अधिकारी को न सिर्फ बचा लिया गया, बल्कि उसे उसकी मनचाही पोस्टिंग भी दे दी गई। यह मामला आलोट में पदस्थ रहे नायब तहसीलदार मृगेंद्र सिंह सिसोदिया का है, जिनका हाल ही में स्थानांतरण उनके गृह जिले मंदसौर के समीप नीमच में कर दिया गया है।

नायब तहसीलदार सिसोदिया के खिलाफ आलोट क्षेत्र की आम जनता द्वारा 100 से अधिक शिकायतें मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर दर्ज कराई गई थीं। इन शिकायतों में भ्रष्टाचार, जबरन वसूली, फर्जी नामांतरण, भूमाफिया से सांठगांठ, गरीबों की जमीन हड़पने जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं।

जनता के साथ मारपीट और वायरल वीडियो..

सिर्फ भ्रष्टाचार ही नहीं, बल्कि मृगेंद्र सिंह सिसोदिया की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल उठे हैं। जनता के साथ बदसलूकी और मारपीट के उनके कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं, जिनमें वे आम नागरिकों के साथ अमर्यादित भाषा और हिंसक व्यवहार करते दिखते हैं। इन वीडियो को लेकर स्थानीय स्तर पर काफी विरोध हुआ, यहाँ तक कि मुख्यमंत्री और राजस्व मंत्री तक को शपथ-पत्र के साथ ये वीडियो प्रस्तुत किए गए।

इनाम की तरह मिला स्थानांतरण..

चौंकाने वाली बात यह है कि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद, मृगेंद्र सिंह सिसोदिया को निलंबित करने या किसी दूरस्थ क्षेत्र में भेजने की बजाय उन्हें उनके मनचाहे स्थान नीमच में पदस्थ कर दिया गया। यह स्थान उनके गृह जिले मंदसौर के बेहद करीब है, जिससे स्थानीय स्तर पर इसे "पुरस्कार स्वरूप स्थानांतरण" के रूप में देखा जा रहा है।

इस निर्णय से आम जनता में भारी आक्रोश है। आलोट के नागरिकों का कहना है कि इतने गंभीर मामलों में यदि अधिकारी को सजा के बजाय इनाम मिलता है, तो शासन-प्रशासन की नीयत और नीति दोनों संदिग्ध हैं। कुछ सामाजिक संगठनों ने इस स्थानांतरण को लेकर विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या स्थानांतरण अब योग्यता या दोषों के आधार पर नहीं, बल्कि साठगांठ और अंदरूनी पहुंच के आधार पर किए जाते हैं?

क्या मध्य प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता खत्म होती जा रही है?

मामला मीडिया और जनता के बीच तेजी से फैल रहा है, लेकिन अब तक न तो राजस्व विभाग और न ही मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से इस स्थानांतरण को लेकर कोई स्पष्टीकरण जारी किया गया है। यह चुप्पी जनता के आक्रोश को और गहरा कर रही है।

यदि यही न्याय है, तो अन्याय किसे कहेंगे?

शासन को चाहिए कि वह इस स्थानांतरण की पुनर्समीक्षा करे और उन अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करे जो जनसेवा की बजाय जनप्रताड़ना और घोटालों को ही अपना कर्तव्य मान बैठे हैं।