अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्ट्री ने मैहर में 27.9 हेक्टे. वन भूमि किया कब्जा..सतना डीएफओ की रिपोर्ट में हुआ खुलासा,


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स्टोरी हाइलाइट्स

काबिज वन भूमि को वैध के लिए भरना होगी करोड़ों की पेनल्टी, दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके फैक्ट्री प्रबंधन, निराकरण के लिए करोड़ों की भरनी होगी पेनल्टी..!!

भोपाल: मैहर अल्ट्राटेक कंपनी ने कुल आवंटित वन भूमि 182.375 हेक्टेयर के विरुद्ध कुल 209.9 हेक्टेयर वन भूमि पर निर्माण कार्य किया है। यानि कंपनी द्वारा 27.9 हेक्टेयर वन भूमि अतिरिक्त अवैध निर्माण कार्य किया गया है। वन भूमि में अवैध निर्माण को लेकर मैहर अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्ट्री के संचालकों के खिलाफ करवाई करने में फॉरेस्ट मंत्रालय और शीर्ष अफसरों के पसीने छूट रहें हैं। वे इस बात को लेकर असमंजस में है कि बेदखली की कार्रवाई की जाए अथवा एफसीए के अंतर्गत अनुमति का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा जाए। इस बात का निर्णय अब राज्य शासन को करना है। यदि एफसीए के तहत नियमितीकरण होता है तो फैक्ट्री प्रबंधकों को  करोडों की राशि पेनल्टी बतौर भरना पड़ेगी।

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वन भूमि में अवैध निर्माण का खुलासा डीएफओ की सुनवाई के बाद सीसीएफ रीवा द्वारा वन मुख्यालय को भेजे गए जांच प्रतिवेदन में हुआ है। जांच प्रतिवेदन में यह भी उल्लेख किया गया है कि सुनवाई के दौरान फैक्ट्री प्रबंधकों ने वन भूमि पर अवैध निर्माण से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके। प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 1977 में मैहर सीमेंट फैक्ट्री सरलानगर (तत्कालीन सेंचुरी टेक्सटाइल लिमिटेड) को फैक्ट्री निर्माण, लेवर कॉलोनी निर्माण, एवं कन्वेयर बेल्ट निर्माण हेतु 193.186 हेक्टेयर भूमि आवंटित की गई थी। इस सम्बन्ध में वर्ष 1993 में कलेक्टर, जिला सतना द्वारा वर्ष 1977 से 99 वर्ष की अवधि के लिए लीज डीड सम्पादित की गई थी। ( कलेक्टर सतना द्वारा वर्ष 1977 से 99 वर्ष की अवधि के लिए लीज डीड)। आवंटित भूमि में से 188.230 हेक्टेयर वन भूमि थी, तथा 4.956 हेक्टेयर राजस्व भूमि थी। 

Imageवन भूमि वनखण्ड सगमनिया एवं वनखण्ड बम्हनी में स्थित है। 188.23 हेक्टेयर वन भूमि में सन्वेयर बेल्ट हेतु 5.855 फैक्ट्री साइट एवं लेबर कॉलोनी के निर्माण कार्य हेतु (188.23 हे० - 5.855) 182.375 वन भूमि आवंटित की गई थी।

2021 में भी निर्माण संबंधी दस्तावेज मांगे थे

रेंजर मैहर द्वारा नवम्बर 2021 में विवादित वन भूमि का निरीक्षण करने पर कक्ष क्रमांक पी-555 में बैंक कॉलोनी, हास्पिटल एवं बाजार के निर्माण नियमानुसार न होने पर तथा अवैध निर्माण का संदेह होने के कारण वन परिक्षेत्र मैहर का पत्र क्रमांक 1136 दिनांक 12 नवम्बर 21 द्वारा  निर्माण संबंधी दस्तावेजो मैहर सीमेंट फैक्ट्री संस्थान से मांग की गई। लेकिन संबंधित संस्थान द्वारा निर्माण के संबंध में कोई वैधानिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया गया। राज्य शासन के बीच कक्ष क्रमांक पी- 555 के कुल रकबा 193.186 हेक्टेयर के लिए हुआ है। 

Imageजिस अनुबंध की प्रति वन मण्डल अधिकारी वन मण्डल सतना एवं मुख्य वन संरक्षक रीवा वृत्त रीवा को उपलब्ध कराई गयी है। संबंधित संस्थान को निर्माण से संबंधित अपना पक्ष रखने बावत् विभाग द्वारा समय दिया गया परन्तु संस्थान द्वारा वन भूमि पर हुए निर्माण से समन्धित कोई भी सुसंगत अभिलेख, वन एवं राजस्व के मूल मानचित्र, अथवा अन्य वैधानिक दस्तावेज नहीं प्रस्तुत किये गये। इसके उपरांत रेंजर मैहर द्वारा संस्था प्रमुख अल्ट्राटेक सीमेंट सरलानगर मैहर के विरूद्व वन अपराध प्रकरण क्रमांक 31/12 दिनांक 24 फरवरी 24 के माध्यम से पंजीबद्ध किया गया।

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अनुमति के विरुद्ध 27.9 हेक्टेयर पर निर्माण किया

कंपनी द्वारा स्थल पर कक्ष कमांक पी-546 में 182.00 हेक्टेयर में निर्माण कार्य किया गया है, जिसमें सीमेन्ट फैक्ट्री प्लांट, रिहायसी कॉलोनी, स्कूल, रेस्टहाउस आदि सम्मिलित हैं। कक्ष कमांक पी-546 में 182 हेक्टेयर में निर्माण कार्य के अतिरिक्त कंपनी द्वारा कक्ष कमांक पी-555 में 27.9 हेक्टेयर में बैंक, लेबर कॉलोनी, कॉलेज, हॉस्पिटल, बाजार आदि का निर्माण किया गया है। अतएव फैक्ट्री प्रबंधन को कुल आवंटित 188.23 हेक्टेयर वनभूमि में से कन्वेयर बेल्ट हेतु आवंटित 5.855 हेक्टेयर वनभूमि को हटाकर कुल 182.375 हेक्टेयर में निर्माण कार्य करने की अनुमति प्राप्त थी किंतु कंपनी द्वारा आवंटित 182.375 हेक्टेयर वन भूमि के विरुद्ध बीट सगमनिया के कक्ष क्रमांक पी-546 में 182 हेक्टेयर तथा बीट  बम्हनी के कक्ष क्रमांक पी-555 मैं 27.9 हेक्टेयर में निर्माण कार्य किया गया। इस प्रकार कंपनी को निर्माण कार्य हेतु कुल आवंटित  वन भूमि 182.375 हेक्टेयर के विरुद्ध कुल 209.9 हेक्टेयर वन भूमि में फैक्ट्री प्रबंधन द्वारा निर्माण कार्य किया गया। अतएव कंपनी द्वारा 27.9 हेक्टेयर वन भूमि अतिरिक्त अवैध निर्माण कार्य किया गया है। 

वर्किंग प्लान में भी अतिक्रमण का था उल्लेख

वनमण्डल सतना की कार्य आयोजना में वर्ष 2008-09 से 2017-18  में 30  हेक्टेयर तथा वर्तमान कार्य आयोजना वर्ष 2019-20 से 2028-29 भाग-3 आलेख  में 24.94 हेक्टेयर अतिक्रमण कक्ष कमांक पी-555 में लेख किया गया है। जो 2005 के पूर्व का है। कार्य आयोजना (वर्ष 2008-09 से 2017-18) एवं वर्तमान कार्य आयोजना (वर्ष 2019-20 से 2028-29)  के अनुसार भी कक्ष कमांक पी-555 में कंपनी प्रबंधन द्वारा किये गये 27.9 हेक्टेयर में निर्माण कार्य अतिक्रमण के रूप में अंकित है एवं यह अतिक्रमण वर्ष 2005 से पूर्व का है। 

गूगल इमेजरी में भी अतिक्रमण उजागर
गूगल अर्थ इमेजरी वर्ष 2002 तक ही उपलब्ध है एवं वर्ष 2002 के पूर्व की गूगल इमेजरी उपलब्ध नहीं है। वर्ष 2002 की गूगल इमेजरी में यह अतिक्रमण देखा जा सकता है। अतएव यह अतिक्रमण वर्ष 2002 के पूर्व का है। फैक्ट्री प्रबंधन द्वारा इनके निर्माण वर्ष के सम्बन्ध में कोई भी दस्तावेज तथा कथन प्रदाय नहीं किये गये हैं। जांच के समय स्थानीय बुजुर्गों से पूछतांछ की गई, जिसमें उनके द्वारा बताया गया कि अस्पताल, कॉलोनी एवं ग्राउन्ड वर्ष 1981 से 1984 के मध्य में बना है तथा कॉलेज एवं बाजार 2000 से 2002 के मध्य प्रारंभ किया गया है तथा कॉलेज को वर्ष 2005 में मान्यता प्राप्त हुई है। 

 किसी राजस्व अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं

अल्ट्राटेक सीमेण्ट फैक्ट्री द्वारा उक्त भूमि के संबंध में आज दिनांक तक केवल कलेक्टर, सतना द्वारा वर्ष 1993 में (1977 से 2078, 99 र्ष की अवधि के लिए) दी गई लीज डीड की छायाप्रति प्रदाय की गई है। साथ ही फैक्ट्री प्रबंधन द्वारा वर्ष 1990 के एक नक्शे की छायाप्रति प्रदाय की गई है, जिसमें किसी भी राजस्व के अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं हैं, इसमें केवल एसएन नाचने तत्कालीन डीएफओ सतना के हस्ताक्षर है। यह कोई मानचित्र नहीं है, बल्कि कंपनी द्वारा स्थल पर किये गये निर्माण कार्य का लेआउट प्लान है, जो कि उन्होंने अतिक्रमण पश्चात् बनाया है, जिसकी कोई वैधता नहीं है। साथ ही लेख है कि इस क्षेत्र के राजस्व मानचित्र भू-अभिलेख कार्यालय जिला सतना एवं मैहर में उपलब्ध नहीं है। साथ ही कलेक्टर जिला सतना द्वारा वर्ष 1993 में प्रदाय की गई लीज डीज की मूल फाइल तथा संबंधित अन्य अभिलेख भी अद्यतन स्थिति में प्राप्त नहीं हुए है।

क्या है एफसीए के नियम..?

एफसीए के तहत, वन भूमि को बांध, खनन और अन्य गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए बदला जा सकता है, लेकिन इसके लिए एफसी अधिनियम की धारा- 2 के तहत पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होती है। कभी-कभी खनन या निर्माण जैसे प्रोजेक्ट का काम वन विभाग की मंजूरी लिए बिना ही शुरू कर दिया जाता है। इसके बाद मंत्रालय जुर्माने की राशि तय करने के लिए ऐसी परियोजनाओं के प्रस्तावकों की जांच करता है। एफएसी ने सिफारिश की है कि जिन मामलों में राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार की मंजूरी के बिना गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग की अनुमति दी गई है, तो उनके खिलाफ एफसी अधिनियम 1980 के तहत कार्रवाई की जाएगी।

नियम के उल्लंघन पर पांच गुना तक पेनाल्टी 

इसके उल्लंघन के लिए जुर्माना वास्तविक परिवर्तन की तारीख से उल्लंघन के प्रत्येक वर्ष के लिए प्रति हेक्टेयर वन भूमि के एनपीवी (नेट प्रेजेंट वैल्यू) के बराबर होगा, जैसा कि निरीक्षण अधिकारी द्वारा रिपोर्ट किया गया है, एनपीवी के अधिकतम पांच गुना तक और जमा किए जाने तक 12% साधारण ब्याज"। वनों का एनपीवी (नेट प्रेजेंट वैल्यू) वह राशि है जो किसी परियोजना प्रस्तावक को उस वन भूमि के लिए चुकानी होती है जिसे गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए बदला जा रहा है। यह वनों के प्रकार और गुणवत्ता पर निर्भर करता है। इसमें यह भी प्रावधान है कि राज्य सरकारें उल्लंघन को रोकने में विफल रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करेंगी।