फ़िल्मी दुनिया के हसीन ख़्वाब में खोखली होती जिंदगी की जड़ें… P अतुल विनोद 


स्टोरी हाइलाइट्स

फ़िल्मी दुनिया के हसीन ख़्वाब में खोखली होती जिंदगी की जड़ें… P अतुल विनोद  फ़िल्मी दुनिया में हाथ आजमाने के बारे में कौन नही सोचता … हममे से किसके मन में ये ख्याल नही आता कि हम भी इस दुनिया का हिस्सा होते … खूब सारी दौलत .. नेम और फेम .. भले चेहरा मोहरा उतना नहीं जंचता  … आमिर जैसा चाकलेटी नहीं तो अजय देवगन जैसा तो दिखता हूँ … ऐश्वर्या नहीं तो रानी जैसी तो दिखती हूँ|  इस जगत की चकाचौंध से किसी न किसी अवस्था में हम सब प्रभावित होते ही हैं| ये बात अलग है कि कुछ लोग विचार आते ही उड़ा देते हैं बहुत कम होते हैं जो इस विचार को सपना बना लेते हैं| लेकिन भारत जैसे देश में ये संख्या भी कम नहीं होती|  यूं तो मानव अपने जीवन में भी एक अभिनेता ही है| भारतीय दर्शन में दुनिया को रंगमंच, परमात्मा को प्रोडूसर डायरेक्टर और मनुष्य को एक एक्टर ही माना गया है| सब कुछ उसके हाथ हैं हम तो कठपुतली ही हैं|  इसके बावजूद भी अभिनय की इस जिंदगी में रोल के अंदर रोल करने की प्रबल आकांक्षा के पीछे के कई कारण होते हैं|  फ़िल्मी रंग मंच पर पर्दे के पीछे भी कई फिल्मे चलती हैं| इस दुनिया में वो सब होता है जो परदे पर दिखाई देता है| ढाई घंटे की फिल्म में लायक और नालायकी के किस्से हमारा मनोरंजन करते हैं, लेकिन अंदर एक प्रतिभावान कलाकार स्ट्रगल और खलनायकों से दो चार हो रहा होता है| कंगना रानौत पहली नहीं हैं जो अंदर के किस्से बाहर बता रही हैं| स्टिंग्स और मीटू ने पहले भी यहाँ की हकीकत बयान की है| सिर्फ फिल्मे ही नहीं टेलीविजन और मीडिया इंडस्ट्री भी कुछ इसी तरह की है|  गाँव खेड़ों से लेकर कस्बे और शहर तक हर जगह, किसी न किसी दिल में परदे पर अपना हुनर दिखाने का ख़्वाब पलता है|  कोई हीरो हेरोइन बनना चाहता है तो कोई Music और लेखन, डायरेक्शन में अपना हाथ आज़माना चाहता है|  ख्वाब पलते हैं, बढ़ते हैं और फिर सपनों का ये कारवां निकल पड़ता है हकीकत बनने को| लेकिन सपने ज़मीन पर उतरने को इतने आसानी से राज़ी नहीं होते|  कई बार ये ख़्वाब हमारे नहीं होते, दूसरे हम पर थोप देते हैं| थोड़े भी अच्छे दिखे नहीं कि आसपास के लोग सीरियल ओर मूवी में जाने को कहने लगते हैं| उनका इरादा आपको प्रोत्साहित करने से ज्यादा हसी-ठिठोली होता है| लेकिन बाल मन को कहाँ समझ आता है|  “अरे तुम तो गजब हो” ...जाओ यार मुम्बई…. “ तुम तो ज़बरदस्त एक्टर बन सकते हो” .. तुम तो शानदार गायक बन सकती हो… तुम्हारी आवाज़ तो माशाल्लाह … “गजभई” हो|  स्टार बनने का सपना क्या क्या नही कराता… स्टारडम के पीछे की कहानी बेहद चौकाने वाली होती है|  हिंदी फिल्मो की ही बात कर लीजिये कुछ चेहरे हैं जो सदियों से जमे हुए हैं .. इस दौर में कितने आये और चले गये किसी को याद नही…. कितनो ने हताशा में मौत को गले लगा लिया .. कितने अपने शहरों में आकर मुँह छिपाए छोटे मोटे काम करके बमुश्किल गुजारा कर रहे हैं| और कितने किसी काम के न रहे| मुंबई से वापस न जाना पड़े, इसलिए कितने क्या क्या करने को मजबूर हुए? शायद सबको पता नहीं चलता|  हीरोइन बनने आई कितनी युवतियां बार बालाएं बन गयी? कितनी जिस्म का सौदा करने लगी कोई हिसाब नही!  संयोग से फ़िल्मी दुनिया के अनेक लोगों के सम्पर्क में आने का मौका मिला … जब भी ऑफ़ द रिकॉर्ड बातें हुयी, हैरानी हुयी … एक सज्जन ने जो बातें बतायी वो चौकाने वाली थी .. वो ऐसे चेहरों को लेकर थी जिन्हें हम बॉलीवुड का ख़ुदा तक मानते हैं… पता नहीं कितनी सच्चाई थी?  अपने छोटे से शहर में स्टारडम हासिल करना कठिन नही होता| थोड़ी सी प्रतिभा ही आपको अपने गाँव कस्बे का हीरो बना देती है| स्कूल से लेकर सार्वजनिक मंच तक स्थानीय नेता, अफसरों से अवार्ड पाना.. मीडिया में छपना लत बना देता है| लेकिन घर की छत पर दोनों हाथ फैलाकर खड़े होने से आप मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री की सफलता की छत पर सवार नहीं हो जाते|  आपको लगने लगता है कि आपको अब आगे की यात्रा करनी चाहिए परदे का ग्लैमर आपको खींचने लगता है|  आप ट्रेन में सवार होकर निकल पड़ते हैं|  रियेलिटी शो, टीवी सीरियल्स, मूवी में काम पाने का असल संघर्ष यहाँ शुरू होता है|  बात नही बनती तो इवेंट्स, होस्टिंग, जूनियर आर्टिस्ट या फिर मोडलिंग में हाथ अजमाने का विकल्प मिलता है| लेकिन सबके नसीब में ये सब भी नहीं होता|  हम सब देखते हैं हमारे परिचितों में से कितने मुंबई जाते हैं लेकिन उन्हें परदे पर देखने को आँखें तरस जाती हैं| वे कभी कभी कहीं दिखाई देते हैं| कभी वो धार्मिक सीरियल में दरबान बने नज़र आते हैं तो कभी किसी गाने में हीरो हेरोइन के साथ डांस करते हुए|  ऐसा नहीं है कि सब फेल हो जाते हैं सफल भी होते हैं लेकिन कितने फ़ीसदी?  युवाओं को निराशा तब हाथ लगती है जब सफल होने के बाद भी ये हीरो हीरोइन खुश रहने के लिए ड्रग्स लेते दिखाई देते हैं|  ऐसा लगता है कि बॉलीवुड सिर्फ एक अँधेरा कुआ है| जहाँ हारे हुए के सामने भी अँधेरा है और जीते हुए के सामने भी.. जो टॉप स्टार्स हैं वे भी क्राइम केसेस में फसे हुए हैं|  लडकियों के लिए सबसे नकारात्मक सूचनाएं हैं.. कहा जाता है कि उनका शोषण हर स्तर पर होने का बन्दोबस्त है|  टेलेंट एजेंसी, फोटोग्राफर्स, कोऑर्डिनेटर, कास्टिंग डायरेक्टर तक हर स्तर पर मौका देने के एवज में कोई न कोई डिमांड रख ही देता है|  असफल होने के बाद मुंबई से वापस घर लौटना किसी युवती के लिए आसान नहीं होता.. क्यूंकि इसमें उसकी बेइज्जती है,.. एक तो सपना टूट गया दूसरा सामाजिक माखौल … इसलिए ज्यादातर लडकियाँ लौटती ही नही| बताया जाता है वे हर तरह के समझोते के साथ अपनी जिंदगी गुजारती हैं|  सवाल ये है कि क्या ज़िदगी स्टारडम पाने के बाद पूर्ण हो जाती है? और यदि हो जाती है तो फिर ये कामयाब स्टार्स आनंद के लिए ड्रग्स पर निर्भर क्यों हो जाते हैं? मनुष्य को नेम और फेम क्यों चाहिए ? क्यूंकि इससे उसके अहम् को संतुष्टि मिलती है .. कहीं न कहीं उसके अंदर अपने आसपास के लोगों से बेहतर दिखने की चाह होती है… इसका मतलब ये है कि वो सुपीरियेरिटी काम्प्लेक्स का शिकार होता है.. (ये अहंकार है) इसीलिए उसे कैसे भी स्टारडम चाहिए .. किसी स्टार को आसानी मालामाल देख उसे भी इसकी ललक पैदा होती है.. ये लालच है|  लालच और अहंकार दोनों ही पतन का कारण है| यदि आपमें वाकई पर्दे पर छा  जाने का हुनर है तो आप ज़रूर अपनी किस्मत आज़माए, लेकिन आप अपने अंदर अभिनेता किसी के कहने या नेम फेम और पैसे की चाह में देख रहे हैं तो आपको फिर से सोचना चाहिए|  Casting Couch,Extra-marital affair,Intimate scenes,Underworld connection,Getting intimidation,Nepotism,Infidelity,Discrimination for skin tone,Sexualisation of actresses,Friends with benefits,Depression, alcoholism and mysterious deaths,Flop actors are considered socially dead,Poverty,Racism, regionalism,Unholy nexus,deception and double standards