आत्म तत्व: ब्रह्म है वह आत्मा नहीं बल्कि अनात्मा है|


स्टोरी हाइलाइट्स

ए सब अनात्मा जड़ कहे ,इनते  परे है ब्रह्म ।तह मन वचन पहुंचे नहीं......आत्म तत्व: ब्रह्म है वह आत्मा नहीं बल्कि अनात्मा है | Aatma Tatva Kya Hai | Aatma

आत्म तत्व बजरंग लाल शर्मा --------------- " ए सब अनात्मा जड़ कहे , इनते  परे है ब्रह्म । तह मन वचन पहुंचे नहीं, तो मिटे कैसे भरम ।। " (वृतांत मुक्तावली -7-22)                       इस स्वापनिक जगत में जो कुछ भी दिखाई देता है यह सब माया है । माया को ही शास्त्रों में प्रकृति कहा है और रचना करने वाले की इच्छा का नाम ही माया है , इसको जड़ कहा गया है । जीव अनादि है । जब जड़ और चेतन नहीं मिले थे तब भी जीव तो था । अकेला जड़ तथा चेतन इस जीव की रचना नहीं कर सकता है । कल्पना रूपी बीज (अनादि जीव) के साथ जब जड़ तथा चेतन मिलते हैं तब जीव शरीर धारण करता है । यह सारी क्रिया मोह जल रूपी नींद में होती है, नींद में बनने वाले सारे पदार्थ मिट जाते हैं तथा असत्य होते हैं ।   भगवान् राम का आत्मानुशासन जनजीवन का आदर्श -दिनेश मालवीय     जड़ अथवा प्रकृति अथवा माया वास्तव में असत्य है, क्योंकि यह मिटने वाली है । इस मिटने वाली जड़ रूपी माया के साथ जो चेतन मिलता है वह भी असत्य ही होता है, क्योंकि असत्य के साथ असत्य ही मिलता है । प्रकाश रूपी सत्य, अंधकार रूपी असत्य के साथ नहीं मिल सकता है । इसलिए जड़ प्रकृति के साथ मिलने  वाला चेतन  सत्य नहीं है। ब्रह्म की अनादि अवस्था ही सत्य है, परंतु सत्य ब्रह्म को असत्य होकर छाया (प्रतिबिंबित) के रूप में इस जड़ प्रकृति के साथ मिलना होता है । इस दिखाई देने वाले संसार में दो तरह की वस्तुएं हैं एक तो चल (चलायमान) तथा दूसरी विचल (स्थिर) । इन दोनों में ही चेतन तत्व रहता है । यह चेतन तत्व अनादि ब्रह्म का छाया रूप है, यहां इस छाया रुपी ब्रह्म को ही अनात्मा कहा गया है ।   आत्म संतुष्टि : हमारा हर काम आत्म संतुष्टि के लिए होता है| P अतुल विनोद  अनादि ब्रह्म सत्य है तथा इस असत्य रूपी चेतन से अलग है । जीव का मन और वचन दोनों ही उस सत्य ब्रह्म के पास नहीं पहुंच सकते हैं । इस प्रकार इस जीव के द्वारा असली ब्रह्म को किस प्रकार जाना जा सकता है ? अतः इस जीव का भ्रम किस प्रकार दूर हो सकता है| बिना सत्य के असत्य खड़ा नहीं हो सकता है । जड़ प्रकृति के साथ प्रतिबिंबित चेतन के मिलने के कारण ही असत्य प्रकृति दिखती है । इस नश्वर संसार में जब तक जीव रहेगा, प्रतिबिंबित चेतन इसके साथ जुड़ा रहेगा । आत्मा का संबंध तो अनादि सत्य ब्रह्म से ही है आत्मा इस नश्वर संसार में नहीं है । यहां जीव के साथ जो प्रतिबिंबित ब्रह्म है वह आत्मा नहीं बल्कि अनात्मा है । आत्मा तो दृष्टा है, निर्द्वन्द है, निर्विकार है, निराकार है, निर्लिप्त है । यह जीव के साथ लिप्त नहीं है । यह गर्भ में भी नहीं जाती है तथा मानव जीव से सिर्फ जाग्रत अवस्था में ही अपने सूक्ष्म रूप से जुड़ती है । स्वप्न की रचना करने वाला दृष्टा है वह अपने अंतर्मन के द्वारा संसार रूपी दृश्य को बाहर से देखता है । यह आत्मा मानव शरीर के अंदर नहीं है । (गीता-9-5)