च्यवन ऋषि-दिनेश मालवीय
इनकी गणना भारत के प्रमुख ऋषियों में होती है. भृगु के पुत्र च्यवन सदातपस्या में लीन रहते थे. तपस्या करते-करते उनके ऊपर दीमक जम गयी थी और दीमक के एक टीले के नीचे वह दब गये. केवल उनकी आँखें दिखाई देती थीं.
एक बार महाराज शर्याति अपनी सेना के साथ वहाँ गये. सैनिकों ने जंगल में डेरे डाल दिए. हाथी-घोड़े भी उपयुक्त स्थानों पर बाँध दिए गये. सैनिक इधर-उधर घूमे लगे. महाराज की पुत्री सुकन्या अपनी सखियों के साथ जंगल में घूमने लगी. तभी उसे एक टीला दिखा. वहाँ पर वह वैसे ही विनोद के लिए बैठ गयी. उसे जुगनू की तरह चमकती हुयी दो आँखें दिखायी दीं. उसने बचपन की चंचलता के चलते उन आँखों में काँटा चुभो दिया. उसमें से रक्त की धारा बह निकली. राजकुमारी डर गयी और भागकर अपने शिविर में आ गयी. उसने यह बात किसी को नहीं बतायी.
इधर राजा की सेना में एक अपूर्व दृश्य दिखाई देने लगा. राजा की सेना का मल-मूत्र बंद हो गया. राजा, मंत्री, सेवक, सैनिक, घोड़े, हाथी, रानी सभी दुखी हो गये. राजा बहुत चिन्तित हुआ. उसने सबसे पूछा कि यहाँ पर मुनि च्यवन का आश्रम है. कहीं तुम लोगों ने उनका कोई अनिष्ट तो नहीं कर दिया. किसी ने उनके आश्रम में जाकर कुछ अशिष्टता तो नहीं की? डरते-डरते सुकन्या ने अज्ञानवश उससे हुए अपराध को बता दिया.
महाराज बहुत दीनता के साथ ऋषि के आश्रम पर पहुँचे और उनकी विधिवत पूजा करते हुए पुत्री के अपराध की क्षमा माँगी. च्यवन ऋषि बोले यह अपराध अज्ञान में ही हुआ सही, किन्तु में वृद्ध हूँ और मेरी आँखें भी फूट गयी हैं. लिहाजा तुम इस कन्या को मेरी सेवा के लिए छोड़ जाओ. राजा ने पुत्री का उनके साथ विधिवत विवाह कर दिया.
सुकन्या ने अपने पतिव्रत धर्म का पूरी निष्ठा से पालन किया. एक बार देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमार च्यवन के आश्रम पर आये. च्यवन मुनि ने उनका विधिवत सत्कार कीया. ऋषि के आतिथ्य को स्वीकार करके अश्विनी कुमारों ने कहा कि हम आपका क्या उपकार करें?.
च्यवन मुनि ने कहा कि तुम मेरी इस वृद्धावस्था को समाप्त कर मुझे युवावस्था प्रदान कर दो. दोनों कुमारों ने सरोवर में स्नान कर ऋषि से इसमें स्नान करने को कहा. उसमें से स्नान करके तीन देवतुल्य युवा पुरुष बाहर निकले. असल में अश्विनीकुमारों ने सुकन्या के पतिव्रत की परीक्षा लेने के लिए ही अपने भी वैसे ही रूप बना लिए थे. सुकन्या ने उनसे प्रार्थना की कि कृपया मेरे पति को अलग कर दीजिये. उसकी प्रार्थना को मानकर उन्होंने ऐसा ही किया और वे चले गये. सुकन्या सुखपूर्वक अपने सुंदर रूपवान पति के साथ रहने लगी.
च्यवन की वृद्धावस्था चली गयी और आँखें वापस मिल गयीं. उनकी तपस्या से क्षीण जर्जर शरीर एकदम बदल गया. एक दिन राजा अपनी कन्या को देखने आया. पहले तो वह ऋषि को पहचान ही नहीं पाया और अपनी कन्या पर क्रोधित हो गया.जब उसे सब बात जानी तब वह पुत्री पर बहुत प्रसन्न हुआ. च्यवन ऋषि और सुकन्या के पुत्र प्रमति हुए और प्रमति के पुत्र रुरु और शुनक हुए. ये सभी भृगुवंश में उत्पन्न हुए, इसलिए भार्गव कहलाये.