यहां के खानपान पर राजसी छाप है तो पंजाबी सौंधी महक मिलती है, लेकिन इस पर सबसे ज्यादा राजस्थानी अंदाज देखने को मिलता है। यहां के लोग बताते हैं कि यहां की दाल बाटी, चूरमा के लड्डू और भटे का भर्ता तो सात समंदर पार तक अपने स्वाद के कारण जाना पहचाना जाता है। यहां स्वाद की सत्ता सदियों से है और उसे चखने के लिए देश विदेश से लोग यहां आते हैं। ये स्वाद केवल इसी मिट्टी-पानी में ही मिलता है।
बाटी के एक रूप को बाफला कहा जाता है और इसे भी खूब पसंद किया जाता है। बाटी और बाफले में एक ही फर्क है कि बाटी कंडों/ ओवन पर सेंकी जाती है किंतु बाफले बनाने के लिए आटे से बने गोले (लोई) को पहले उबाला जाता है और फिर उसे कंडों पर सकते हैं। फिर इन्हें भी में सराबोर कर दिया जाता है। इससे इसका स्वाद बढ़ जाता है।
वहीं बाटी की बजाए बाफला खाने में गरिष्ठ होता है। इसे खाने के बाद नींद आती है। बाटी और बाफले के आटे में अगर दरदरनापन होता है तो उससे स्वाद बढ़ जाता है। इसके लिए गेहूं में मक्का, बाजरा मिला देते हैं। वहीं गेहूं पीसते समय भी उसके हल्के दरदरे रह जाने का ध्यान रखा जाता है। बाटी बनाते समय आटे में पानी मिलाया जाता है, लेकिन बाफला बनाने के समय आटे में पानी के साथ दही भी मिला देते हैं, इससे बाफला, अपेक्षाकृत नरम और खिला हुआ बनता। है।
मालवा के कुछ प्रमुख व्यंजन:
दाल बाटी और चूरमा दाल बाटी और चूरमा तीन व्यंजन हैं जो एक साथ थाली में परोसे जाते हैं। बाटी, गेहूं के मोटे आटे से बनाई जाती है। चूरमा, मीठे आटे का मिश्रण होता है। दाल बाटी और चूरमा आमतौर पर दोपहर के भोजन के समय ही खाए जाते हैं। अधिक घी से यह और भी बेहतर स्वाद बना देता है।
बाटी के लिये आटा और बेसन को दही और घी से मिश्रित कर गूंथ कर उसमें अजवाइन और नमक मिलाकर फिर पानी डाल कर नरम गूंध लेते हैं। फिर नींबू के आकार की गोलियां बनाकर एक घंटे के लिए ढक कर रख देते हैं। इसके बाद गर्म कोयले पर बारी-बारी से उन्हें सुनहरा होने तक सेंका जाता है। इसके बाद उस पर गर्म घी डालते हैं। इन्हीं नींबू के आकार की गोलियों को यदि पहले उबाल लिया जाए और फिर अंगारों पर सेंका जाए तो बाफला तैयार हो जाता है। बाफले को घी में डुबोकर परोसा जाता है।
दूसरा व्यंजन है दाल इसके लिए चना, मूंग, तुअर, मसूर दाले एक साथ उबाल ली जाती हैं। फिर इसमें तेज पत्ता, हींग, प्याज, अदरक-लहसुन का पेस्ट और टमाटर का तड़का लगाते हैं। दाल को हल्का गाढ़ा रखते हैं, इसमें कच्चा घी, नींबू का रस और हरा धनिया मिलाने के बाद परोसा जाता है।
चूरमा बनाने की विधि: पकी हुई बाटी को हल्का ठंडा होने दें, फिर उसे तोड़ के मिक्सी में पीस लें। इसमें गुड़ या शक्कर का चूरा अपने स्वाद के अनुसार मिलाएं और इसके बाद सूखे मेवे (काजू-पिस्ता) को गरम घी के साथ मिलाते हुए लड्डू बांध लें। इसमें इलायची का चूर्ण मिला देने से स्वाद बढ़ जाता है।
सेव: बेसन के सेव एक बहुत ही स्वादिष्ट नमकीन है, जो हम कभी भी खा सकते हैं। बेसन के सेव बनाना बहुत आसान है। मध्य प्रदेश के एक प्रमुख शहर रतलाम की प्रसिद्धि का एक प्रमुख कारण इस शहर के अलग अलग तरह के नमकीन जैसे समोसा, कचोरी, पोहे और फलाहारी नमकीन है।
नमकीन की इन श्रेणियों में सेव का अपना प्रमुख स्थान है। मुख्य रूप से बेसन एवं मसालों से निर्मित इस नमकीन खाद्य को बिक्री सम्पूर्ण शहर एवं भारत के अलग अलग प्रदेशों में दूर दूर तक होती है। सेव के प्रकारों में मुख्य रूप से लोंग, लहसून एवं काली मिर्च से बनी सेव बहुतायात से बिकती है।
रतलाम भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के मालवा क्षेत्र का एक जिला है। रतलाम शहर समुद्र सतह से 1577 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। रतलाम के पहले राजा महाराजा रतन सिंह थे। यह नगर सेव, सोना, सट्टा, मावा, साड़ी तथा समोसा-कचौरी के लिये प्रसिद्ध है। सेव बनाने में मुख्य रूप से मूंगफली के तेल का उपयोग किया जाता है।
पोहा: पोहा मालवा इलाके का सबसे पसंदीदा व्यंजन है। खासतौर पर इंदौरी पोहा विभिन्न तरीकों व स्वाद से बनाया जाता है। मालवा में लोगों के दिन की शुरुआत पोहा वाले नाश्ते से होती है। यह घर के अलावा हर गली-चौराहे पर भी मिलता है।
पोहा एक ऐसा व्यंजन है जिसे मालवा में लोग दिन में भूख लगने पर कभी भी खाते हैं। इस स्वाद के शौकीन इसे रात के भोजन के बाद भी खा सकते हैं। पोहे में सेव या ऊसल डालकर भी खाया जाता है। इंदौर का बेहद तीखा तरी वाला पोहा, नींबू आलू पोहा को जीरावन के साथ भी पसंद किया जाता है।
निमाड़ का खानपान निमाड़ मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में है। वर्तमान में निमाड़ के अंतर्गत मध्यप्रदेश के बड़वानी, बुरहानपुर, खंडवा और खरगोन जिले आते हैं। यह इलाका आदिवासियों का ठिकाना रहा है और आज भी विन्ध्य और सतपुड़ा के वनवासी क्षेत्रों में आदिवासी रहते हैं।
खाने की चीजों में तीखे का तड़का निमाड़ की वास्तविक पहचान है। साथ ही खाना बनाने के तरीके भी यहां काफी अलग हैं। ये है सबसे खास निमाड़ में दाल-चिकोली, मेथी के पराठे, शाही खिचड़ी बड़े ही चाव से खाए जाते हैं। इसके साथ ही साथ सेव की सब्जी जिसमें दूध से तड़का लगाया जाता है।
विंध्य क्षेत्र का खानपान: 1948 में भारत की स्वतंत्रता के बाद मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में स्थित कुछ रियासतों को मिलाकर विंध्य प्रदेश की रचना की गई थी। इसमें भूतपूर्व रीवा रियासत का एक बड़ा हिस्सा बघेलखंड, बुंदेलखंड आदि थे। इसकी राजधानी रीवा थी।
इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा दतिया राज था. 1 नवम्बर 1956 को ये सब मिलाकर मध्यप्रदेश का हिस्सा बना दिए गए थे। यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है। विंध्य क्षेत्र के लोगों का खानपान सामान्य तौर पर प्रदेश के अन्य भागों की तरह है। यहां के लोगों के भोजन में गेहूं के साथ-साथ चावल भी प्रमुख होता है।
विंध्य क्षेत्र के व्यंजन:
विंध्य के व्यंजन में कढ़ी, फुलौरी, इदरहर, रसाज, दल घुसरी रीवा का कवाब, खीर, चिल्ला, उल्टा, जाउर, बरा, मुगौड़ा, बगजा सहित अन्य पकवान प्रमुख हैं। इनके साथ ही रिकमज, होरा, लाइ लुडुइया, घुघुरी गुड़, सेतुआ, पना बग्जा, टहुआ, कढ़ी फुलउरी, कोदइ के भात, मउहरी, लाटा, भुरकुंडा, चउसेला, दरभरी पूड़ी के भी स्वाद लोगों को पसंद आते हैं।