भोपाल: राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण यानी सिया में पर्यावरण से जुड़े प्रकरणों में संचालक मंडल को दरकिनार कर दी गई अनुमति का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस पर बुधवार को हुए सुनवाई में कोर्ट ने नाराजगी जताई। इसके बाद देर शाम एप्को आयुक्त, महानिदेशक तथा पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.नवनीत मोहन कोठारी व एप्को की कार्यकारी संचालक उमा महेश्वरी को इन पदों से हटा दिया गया है।
आज जारी आदेश के मुताबिक, डॉ. कोठारी की पदस्थापना राजभवन में की गई है। वह राज्यपाल के प्रमुख सचिव होंगे, जबकि राज्यपाल के मौजूदा अपर मुख्य सचिव केसी गुप्ता को समान पद पर कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग में पदस्थ किया गया है। वन विभाग के अपर मुख्य सचिव एवं कृषि आयुक्त अशोक वर्णवाल को एप्को आयुक्त, महानिदेशक व अपर मुख्य सचिव पर्यावरण पद का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।
उमा की जगह दीपक आर्य को एप्को का दायित्व..
इसी तरह, एमपी आरआरडीए के सीईओ दीपक आर्य को एप्को कार्यपालन संचालक पद का अतिरिक्त दायित्व दिया गया।आर्य के कार्यभार ग्रहण करने पर आयुष आयुक्त एवं एप्को की मौजूदा कार्यपालन संचालक उमा महेश्वरी अतिरिक्त प्रभार के इस पद से मुक्त होंगी। वहीं राजभवन से हटाए गए केसी गुप्ता के कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग में कार्यभार संभालने पर वाणिज्य कर विभाग के प्रमुख सचिव अमित राठौर इस पद के अतिरिक्त दायित्व से मुक्त होंगे।
चंद्रमौली शुक्ला की सीएम सचिवालय में एंट्री..
इसी आदेश के तहत एमपी एसआईडीसी के एमडी चंद्रमौली शुक्ला को अपने मौजूदा दायित्वों के साथ मुख्यमंत्री के अपर सचिव पद का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। ज्ञात हो कि मंगलवार रात को जारी एक अन्य आदेश के तहत मुख्यमंत्री के सचिव सीबी चक्रवर्ती को सीएम सचिवालय से हटाकर मप्र भवन विकास निगम का प्रबंध संचालक बनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा सिया विवाद..
सिया में अध्यक्ष व संचालक मंडल को दरकिनार कर अधिकारिक स्तर पर बड़ी संख्या में पर्यावरणीय अनुमति दिए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कोर्ट ने इससे जुडी याचिका स्वीकार करने के साथ ही बाला—बाला अनुमति दिए जाने पर नाराजगी जताई। कोर्ट का रुख सामने आते ही राज्य सरकार ने आनन—फानन में कोठारी व उमा महेश्वरी को एप्को से हटाने का निर्णय लिया।
बता दें कि सिया के अध्यक्ष एसएनएस चौहान ने अधिकारिक स्तर पर पर्यावरणीय प्रकरणों में अनुमति दिए जाने पर आपत्ति जताई है।उन्होंने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव को भी की। शासनस्तर से तत्काल इस पर निर्णय नहीं लिए जाने के बाद दोनों पक्षों की ओर से लगातार बयानबाजी सामने आई। इससे यह विवाद और गहराया।