चैनलिंक खरीदी पर रोक, वन विभाग में बचेंगे करोड़ों रुपए — अफसरों पर सख्त हुए वन बल प्रमुख वी.एन. अंबाड़े


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स्टोरी हाइलाइट्स

अंबाड़े ने स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि फील्ड अधिकारी अब नई चैनलिंक खरीदी नहीं करेंगे। विभाग के भीतर वर्षों से चली आ रही इस प्रक्रिया में भारी अनियमितताओं, कमीशनबाजी और दलाली की शिकायतें लगातार मिलती रही हैं..!!

भोपाल: मध्यप्रदेश के वन विभाग में लंबे समय से चल रही चैनलिंक खरीदी पर अब सख्त रोक लगा दी गई है। वन बल प्रमुख के इस नए कदम से विभाग में पारदर्शिता बढ़ेगी और करोड़ों रुपए की बचत के साथ पौधारोपण कार्यों की गुणवत्ता में भी सुधार आने की उम्मीद है।

अंबाड़े ने स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि फील्ड अधिकारी अब नई चैनलिंक खरीदी नहीं करेंगे। विभाग के भीतर वर्षों से चली आ रही इस प्रक्रिया में भारी अनियमितताओं, कमीशनबाजी और दलाली की शिकायतें लगातार मिलती रही हैं। अनुमान है कि हर वित्तीय वर्ष में 70 से 80 करोड़ रुपए की चैनलिंक खरीदी की जाती है, जिसमें लगभग 15 से 20 करोड़ रुपए कमीशन के रूप में बंटते रहे हैं। अंबाड़े के आदेश से इस अनावश्यक खर्च और भ्रष्टाचार पर अब लगाम लग सकेगी।

अनावश्यक खरीदी और कमीशनबाजी पर रोक

वन बल प्रमुख वी.एन. अंबाड़े ने कई दौर की समीक्षा बैठकों में पाया कि चैनलिंक फेंसिंग की खरीदी बड़े पैमाने पर अनावश्यक रूप से की जा रही है। उन्होंने माना कि विभाग में सप्लायर्स और कुछ अफसरों के बीच मजबूत नेक्सेस बन गया है, जो खरीदी के माध्यम से लाभ कमा रहा है। अंबाड़े ने अपने निर्देश में कहा कि चैनलिंक फेंसिंग पर खर्च की जाने वाली राशि पौधारोपण के लिए स्वीकृत फंड का लगभग 60 प्रतिशत तक ले लेती है, जबकि इस राशि का उपयोग और अधिक क्षेत्र के उपचार व पौधारोपण में किया जा सकता है।

अब चैनलिंक फेंसिंग केवल उन्हीं स्थानों पर लगाई जाएगी जो कैम्पा एरिया प्लांटेशन के अंतर्गत आते हैं, या जहां राजस्व सीमा से सटे अतिक्रमण मुक्त क्षेत्र हों। अन्य स्थानों पर इसे तभी लगाया जा सकेगा जब संबंधित मुख्य वन संरक्षक (CCF) की सहमति और उचित औचित्य दर्ज हो।

सागौन पौधे की जगह रूटशूट और स्थानीय प्रजातियां लगेंगी

वन बल प्रमुख ने पौधारोपण नीति में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। अब वनों में सागौन के पौधे लगाने पर रोक लगाई गई है। अंबाड़े ने निर्देश दिया है कि रूटशूट पद्धति से रोपण किया जाए और स्थानीय, उच्च गुणवत्ता वाली RET (Rare, Endangered and Threatened) प्रजातियों को प्राथमिकता दी जाए। साथ ही, प्रत्येक रोपण क्षेत्र में ठूंठ ड्रेसिंग और CBO (Cut Back Operation) कार्यों को रोपण से पहले अनिवार्य रूप से पूरा करने के आदेश दिए गए हैं।

सामंजस्य की कमी को बताया असफलता का कारण

अंबाड़े ने यह भी स्वीकार किया कि वृक्षारोपण के असफल होने का मुख्य कारण क्षेत्रीय वनमंडल अधिकारियों और अनुसंधान एवं विस्तार अधिकारियों के बीच सामंजस्य की कमी है। उन्होंने कहा कि सहायक वन संरक्षक और वनक्षेत्रपाल को यह जानकारी होनी चाहिए कि अच्छी गुणवत्ता का बीज कब और कहां उपलब्ध है, जबकि वनमंडलाधिकारी को यह पता होना चाहिए कि पौधे किस नर्सरी से लाए जा सकते हैं।
अंबाड़े ने निर्देश दिया कि भविष्य में सभी रोपण कार्य इको रेस्टोरेशन पद्धति से किए जाएं, ताकि जैव विविधता और प्राकृतिक पुनर्स्थापन को बढ़ावा मिले।

कैग की आपत्ति और अशोकनगर मामला

वन विभाग के कार्यों की समीक्षा में यह भी सामने आया कि अशोकनगर जिले में स्वीकृत बजट की तुलना में कम व्यय हुआ है। इस पर वन बल प्रमुख ने संबंधित मुख्य वन संरक्षक को निरीक्षण और समीक्षा के निर्देश दिए हैं। कैग (CAG) ने भी अपने ऑडिट में कैम्पा फंड के तहत पौधारोपण कार्यों में गड़बड़ी पर आपत्ति दर्ज की थी। सूत्रों के अनुसार, केवल अशोकनगर ही नहीं, बल्कि शिवपुरी, धार, और बैतूल जिलों में भी पौधारोपण कार्यों में गड़बड़ी पाई गई है।