भोपाल: पिछले दिनों मिडघाट पट ट्रैन से कट कर टाइगर की मौत और दक्षिण बालाघाट वन मंडल के कटंगी में बाघ का शव मिलने की घटना ने वन बल प्रमुख वीएन अंबाड़े को झकझोर दिया है। इन घटनाओं से अत्यंत दुखी हॉफ अंबाड़े ने लापरवाह अफसरों को कड़ा पत्र लिखा है। अपने पत्र में कहा है कि अब पत्र नहीं, कड़ी कार्रवाई करेंगे। उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को निर्देशित किया है कि समस्त प्रकरणों की विवेचना की जाये।
चौंकाने वाली बात यह है कि वन बल प्रमुख वीएन अंबाड़े ने गत तीन महीनों में दो पत्र लिखने के बाद भी मैदानी अफसरों और कर्मचारियों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। यही वजह अब वे कड़क शब्दों में कहा है कि अब वे पत्र नहीं, बल्कि लापरवाह अफसरों पर कड़ी करेंगे। बाघ संरक्षण के लिए अफसर कितने गैर-जिम्मेदार हैं, इसका खुलासा प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख के पत्र से हुआ है। उन्होंने भी माना कि रिजर्व और जंगलों में बाघों की मौतें हो रही हैं और फील्ड स्टॉफ को पता नहीं चल रहा। यह सबसे बड़ी चूक है।
अंबाड़े ने 12 दिसम्बर को अफसरों को एक और पत्र लिखा है। वन बल प्रमुख ने अपने पत्र में लिखा है कि बाघों और तेन्दुओं की मृत्यु को लेकर पूर्व में भी निर्देश जारी किये गये हैं कि वन एवं वन्यजीव संरक्षण विभाग की सर्वोच्च प्राथमिकता है। किन्तु देखने में आया है कि पिछले माह से बाघों तथा तेन्दुओं की मृत्यु की घटनाएं बढ़ी है। इन घटनाओं में कई वन्यजीवों की मौत विद्युत, सड़क दुर्घटना एवं रेल दुर्घटना तथा अन्य कारणों से हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व में निर्देश जारी करने के बावजूद भी वन्यजीव संरक्षण के प्रति लापरवाही बढ़ती जा रही है।
उन्होंने चेताया कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, ठोस कार्रवाई के दायरे में लेंगे। वन बल प्रमुख का मानना है कि अधिकारी और उनका स्टॉफ फील्ड नहीं जा रहा है। उनका अधिकांश समय व्हाट्सअप ग्रुप में बीत रहा है। हालांकि कई डीएफओ का कहना है कि मुख्यालय में बैठे कतिपय पीसीसीएफ आए दिन वीसी और विभिन्न फॉर्मैट में ऐसी-ऐसी जानकारियां मांगते है, जिन्हें जुटाने में वन मण्डलाधिकारियों का पूरा दिन ऑफिस में ही बीत जाता है। इसमें सबसे बड़े बजट वाले शाखा के पीसीसीएफ शामिल हैं।
वन्यजीव संरक्षण पहली प्राथमिकता हो
दक्षिण बालाघाट के कटंगी में संदिग्ध मौत और मेलघाट पर रातापानी टाइगर की ट्रेन से कट कर बाघ की मौत की घटना ने वन बल प्रमुख को झकझोर दिया है। यही वजह रही कि वन्यजीवों की हो रही लगातार मौत पर दूसरा पत्र लिखना पड़ा। इस पत्र में उन्होंने सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों से कहा है कि वन्यजीव संरक्षण के प्रति प्राथमिकता के आधार पर अपने स्तर से निर्देश जारी करें। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये रेल्वे एवं अन्य एजेंसियों से संपर्क स्थापित कर भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनर्रावृत्ति न हो।
प्रदेश के टाइगर रिजर्व के अंदर वन्यजीवों पुख्ता व्यवस्था होने के बावजूद भी बाघ एवं अन्य वन्यजीवों की शिकार एवं हडड़ियां आदि जप्त होना अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इस प्रकार की घटनाओं से अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही स्पष्ट परिलक्षित होती है।
8 महीने में अब तक 48 टाइगर की मौत
हाल ही के दिनों में रातापानी, सतपुड़ा, पेंच, कान्हा टाइगर रिजर्व, और उसके बाहर बालाघाट के कंटगी में बाघों की मौत के मामले प्रकाश में आए हैं। प्रदेश में इस साल महज 8 महीने में ही 48 से अधिक बाघ की मौत हो गई। मरने वाले बाघों में से 5 से 8 साल के उम्र की 9 बाघिन हैं। ये प्रदेश में बाघों कुनबा बढ़ाने में मददगार साबित होतीं। इन मौतों की बड़ी वजह सरकारी लापरवाही और निगरानी तंत्र का फेल होना है। विभाग के मुखिया ने फील्ड के शीर्ष अधिकारियों को निर्देशित किया है कि समस्त प्रकरणों की विवेचना की जाये। कर्मचारी और अधिकारी की लापरवाही के विरूद्ध कार्यवाही करते हुये मुख्यालय को प्रतिवेदन प्रेषित करें।
टाइगर की मौत के प्रमुख कारण
- मप्र में अंतरराष्ट्रीय एवं अंतरराज्यीय शिकारी सक्रिय हैं। वे कुछ स्थानीय लोगों को रुपए का लालच देकर शिकार करा रहे। विभाग के अधिकारी इस गठजोड़ को नहीं तोड़ पा रहा।
- शाकाहारी वन्यजीवों की कमी बढ़ रही है। बाघों के बीच आपसी संघर्ष जैसी स्थिति बन रही। इसे दूर करने की ठोस योजना नहीं।
- शिकार की घटनाएं होने और वन अफसरों की लापरवाही से होने वाली मौतों पर जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं हो पा रहीं।
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में बाघों की हड्डी, खाल व अन्य अवशेषों की मांग है। इस चक्कर में शिकार हो रहे हैं। अफसर इसे नियंत्रित नहीं कर पा रहे।
- जंगलों में आग, वैध-अवैध कटाई, सरकारी प्रोजेक्ट्स, अतिक्रमणों से वन क्षेत्र व हरियाली का दायरा घट रहा है।
इनका कहना
अभी सिर्फ पत्र जारी किया है। आगे यदि बाघ व शावकों की मौत प्राकृतिक कारणों के अलावा अन्य कारणों से होती है तो संबंधितों पर ठोस कार्रवाई करेंगे। रिजर्व व सामान्य वन क्षेत्रों में कोई कमी है, जो मौतों की वजह बन रही है या बन सकती है तो अफसर समय रहते उसे दूर करने के प्रयास करें।
-वीएन अंबाडे, वन बल प्रमुख, मध्य प्रदेश
गणेश पाण्डेय