भोपाल: वैसे तो वन रक्षक (बीट गार्ड) वनों की सुरक्षा के लिए तैनात होते हैं, लेकिन मप्र में बड़ी संख्या में वन कर्मी फारेस्ट अफसरों के बंगलों और विभागीय दफ्तरों में अधिकारियों की जी हुजूरी कर रहे हैं। जिससे न तो वनों की अवैध कटाई रुक पा रही है और न ही वन पर्यावरण और वन्यजीवों की सुरक्षा का काम ही इन कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा है।नर्मदा वन मंडल के इटारसी रेंज के छीपीखापा बीट में 2 करोड़ से अधिक की हुई गोल्डन टीक की कटाई इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
मप्र में तकरीबन 12 हजार 500 वन रक्षक पदस्थ हैं। जिन्हें अलग-अलग वन मंडलों में सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है। इनमें से कुछ वनरक्षक वन सीमा के नाकों पर तैनात रहते हैं तो कुछ को वनों की सुरक्षा की दृष्टि से बनाए गए दूसरे स्थलों पर पदस्थ किया जाता है। इन वन कर्मियों की जिम्मेदारी वन सुरक्षा पर पूरी तरह से फोकस रहती है। अवैध कटाई न हो, वनों का संरक्षण और वन्य जीवों की सुरक्षा हो सके, इस पर बीट गार्ड की सबसे पहले नजर रहती है। साथ ही वन रक्षक शिकारियों पर भी अंकुश रखते हैं। इसके लिए विभाग का अपना एक सैटअप रहता है, जिसके सहारे वन क्षेत्र की जमीनी जानकारी वरिष्ठतम् अधिकारियों तक पहुंचती है।
जानकारों की मानें तो मप्र में लगभग 3 हजार से ज्यादा वन रक्षक ऐसे हैं, जो या तो आईएफएस, नॉन आईएफएस, रेंजरों की बंगला ड्यूटी में तैनात हैं या फिर वन रक्षक वरिष्ठ अधिकारियों की मेहरबानी से विभागीय दफ्तरों में बतौर बाबू बनकर अहम दायित्व निभा रहे हैं। इस मामले में कई बार विभागीय पत्र भी जारी किए गए, जिसमें साफ तौर पर कहा गया कि वन रक्षकों की बंगला पर ड्यूटी खत्म कर उन्हें उनके मूल कार्य से संलग्न किया जाए, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों ने ऐसे पत्रों को महत्व नहीं दिया।
स्थिति यह है कि एक पीसीसीएफ के बंगले पर विदिशा का स्थाई कर्मी पिछले 10 सालों से पदस्थ है। दूसरों को नियम और कायदे का पाठ पढ़ाने वाले ये पीसीसीएफ इधर-उधर पदस्थ होते रहे किन्तु बंगले के तैनात स्थाई बना रहा। आईएफएस बिरादरी में डीएफओ, सीसीएफ, एपीसीसीएफ और पीसीसीएफ के बंगले पर तैनात वन कर्मचारी स्टेटस सिंबल बन गए हैं। एक-एक अधिकारी के यहां तीन से चार वन कर्मचारी बंगले पर चकरी कर रहे हैं। जबकि उनकी नियुक्ति वन सुरक्षा के नाम पर की गई है।
बीट गार्ड के बाद भी सिक्यूरिटी एजेंसी
राजधानी स्थित वन भवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी निजी सिक्यूरिटी एजेंसी को दी गई है। जिसका दायित्व वन भवन की पूरी तरह से सुरक्षा करना है। लेकिन मजे की बात यह है कि इसी वन भवन की सुरक्षा के लिए तीन से चार वीट गार्ड भी तैनात किए गए हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब बीट गार्ड सुरक्षा पर तैनात किए गए हैं, तो आखिर निजी सुरक्षा एजेंसी पर खर्चा क्यों किया जा रहा है।
आदेश जारी हुआ लेकिन पालन नहीं हो पाया
बताया गया है कि इस संबंध में अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक प्रशासन -दो की ओर से जारी पत्र में सभी सीसीएफ और वनमण्डलाधिकारियों से स्पष्ट कहा गया है कि वन रक्षकों को वन क्षेत्रों में तैनात किया जाए। उन्हें किसी भी स्थिति में न तो विभागीय कार्यालय में लगाया जाए और न ही उनके लिपिकीय कार्य लिए जाए। लेकिन इस पर न तो किसी भी डीएफओ ने कोई निर्णय लिया और न ही वरिष्ठ अधिकारियों ने उक्त निर्देश का पालन नहीं होने पर संबंधित अधिकारी से कारण ही पूछा।
दरअसल इन निर्देशों का पालन इसलिए नहीं होता क्योंकि वन मुख्यालय से लेकर डीएफओ स्तर के लगभग सभी अधिकारियों के बंगलों में वीट गार्ड तैनात हैं, जिनका काम बंगलों की सुरक्षा से लेकर दूसरे निजी काम करना है। भोपाल में तो स्थिति क्या बन गई है कि बंगलो पर कर्मचारियों की संख्या की तैनाती को लेकर अफसर आपस में भिड़ने लगे हैं। इससे वन रक्षकों को जंगल की जगह शहरी या कस्बाई क्षेत्रों में रहना पड़ता है और वो अधिकारियों के करीबी हो जाते हैं। जिससे उनकी सेवाएं अपने दायित्वों का निर्वाहन किए बिना जारी हैं। इसी तरह काफी संख्या में कार्यपालिक संवर्ग के कर्मचारी अधिकारी भी वरिष्ठ अधिकारियों की जी हुजुरी कर अरसे से बंगले में डटे हैं।
गणेश पाण्डेय