वन विभाग को पहले कल्पतरू को देने होंगे सवा करोड़ तब खुलेंगे बालाघाट सीसीएफ-डीएफओ कार्यालय के ताले


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स्टोरी हाइलाइट्स

कलकत्ता हाई कोर्ट में 552 दिनों की देरी से वन विभाग द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका ख़ारिज..!!

भोपाल: कलकत्ता हाईकोर्ट ने वन विभाग की उस पुनरीक्षण याचिका ख़ारिज कर दिया है, जिसमें 20 जून 2025 को न्यायलय ने कल्पतरू एग्रो फॉरेस्ट प्रा.लि. कलकत्ता की फर्म को ₹1.20 करोड़ एकतरफा डिक्री आदेश दिया था। कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनिरुद्ध रॉय ने अपने आदेश में कहा है कि वन विभाग मप्र ने 552 दिनों की देरी से पुनरीक्षण याचिका दायर की है। अब वन विभाग को जल्द ही भुगतान कर आदेश का पालन करने के बाद ही तभी कार्यालय की तालाबंदी हटाई जा सकेगी। ऐसी नौबत इसलिए बनी कि तत्कालीन दक्षिण बालाघाट उत्पादन की डीएफओ रहीं नेहा श्रीवास्तव ने कलकत्ता हाईकोर्ट में विभाग का पक्ष रखने नहीं पहुंची थी।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि किसी भी अंतरिम आदेश की कोई गुंजाइश नहीं है। उच्च न्यायलय ने वन विभाग की ओर से उपस्थित अधिवक्ताओं से कहा है कि विरोध शपथपत्र 22 जनवरी 26 को या उससे पहले दाखिल किया जाना चाहिए। यदि कोई उत्तर शपथपत्र हो, तो वह 23 फरवरी, 2026 तक दाखिल किया जाना चाहिए। वन विभाग के इतिहास में पहली बार सीसीएफ बालाघाट और डीएफओ दक्षिण उत्पादन बालाघाट कार्यालय 11 जुलाई से सील है। दोनों कार्यालय रेंजर कालेज से संचालित हो रहें हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि डिक्री के विरुद्ध पुनरीक्षण याचिका दाखिल करने के लिए अनुमति देने में वन मंत्रालय और मुख्यालय में बैठे शीर्ष अधिकारियों ने देरी की। यानि उच्च पदस्थ नौकरीशाही की लापरवाही के चलते ही अनुमति मिलने में 552 दिन बीत गए और न्यायलय में वन विभाग को मुंह की खानी पड़ी। यहां यह भी उल्लेखनीय यह मामला 20 साल से चल रहा है। इस बीच जितने भी सीसीएफ और डीएफओ पदस्थ रहे, किसी ने भी मामले को गंभीरता से नहीं मिला। इसके अलावा विभाग ने पैरवी के लिए कलकत्ता के जिस भी वकील अधिकृत किया उन्होंने ने भी न्यायलय में विभाग का पक्ष रखने नहीं रखा, जिसकी वजह से जून 24 में कल्पतरू एग्रो फॉरेस्ट प्रा.लि. कलकत्ता के फेवर में एकतरफा डिक्री हो गई। 

क्या है पूरा मामला?

पश्चिम उत्पादन वनमंडल कार्यालय को वर्ष 2013 में दक्षिण उत्पादन वनमंडल में मर्ज किया गया। इस कार्यालय को मर्ज किए जाने के पहले कल्पतरू एग्रो फॉरेस्ट प्रा.लि. कलकत्ता की फर्म ने पश्चिम उत्पादन वनमंडल कार्यालय से वर्ष 1997 में 60 लॉट बांस के लिए निकाली गई निविदा में हिस्सा लिया। निविदा उसको मिली थी। गर्रा व लांजी डिपो से 43 लॉट बांस उसने उठा लिए। शेष बांस दूसरे डिपो से उठाने थे, जिसकी गुणवत्ता सही नहीं थी। उन्होंने उस समय इसकी शिकायत वन विभाग से की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। इस दौरान कल्पतरू एग्रो फारेस्ट इंटरप्राइजेस प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता नामक फर्म ने विभाग से बड़ी मात्रा में बांस की खरीदारी की थी। 

फर्म ने बकायदा भुगतान भी किया, लेकिन कार्यालय के बंद हो जाने के बाद वह बांस उठाव नहीं कर सका। समस्या तब खड़ी हुई जब फर्म द्वारा भुगतान की गई राशि विभाग ने वापस नहीं की। इस पर कल्पतरू एग्रो फार्म के संचालक ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने 20 जून 2025 को आदेश दिया कि वन विभाग फर्म को ₹1.20 करोड़ की राशि लौटाए। फिर उन्होंने इस मामले की याचिक उच्च न्यायालय कलकत्ता में लगाई।

इस पर तीन माह पूर्व न्यायालय ने फैसला दिया कि 13 लाख लाभ का और 28 लाख रुपए ब्याज सहित जबसे मामला चल रहा है तब से फैसला होने तक उपलब्ध कराया जाए। वन विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसलिए तीन माह बाद 20 जून को कार्यालय कुर्क करने के आदेश दिए गए। इसके बाद 11 जुलाई को बालाघाट पहुंची टीम ने कार्यालय में बैठे अधिकारियों और कर्मचारियों को बाहर निकालकर सील कर दिया। इसके बाद से अब तक दोनों कार्यालय सील है। सीसीएफ के पास रेंजर्स कॉलेज के प्राचार्य का प्रभार है। डीएफओ उत्पादन के पास उक्त कॉलेज के अनुदेशक का प्रभार है। ऐसे में दोनों उक्त कार्यालय में बैठ रहे हैं। यदि दोनों के पास उक्त कार्यालय का प्रभार नहीं होता तो वे कहां बैठते इसका जवाब उक्त अधिकारियों के पास भी नहीं है।

आदेश की अनदेखी और आई सीलिंग की नौबत

न्यायालय के आदेश के बावजूद जब विभाग ने कोई भुगतान नहीं किया, तो अदालत ने कड़ी कार्रवाई करते हुए कार्यालय को सील करने का आदेश दिया। इस आदेश के तहत विभागीय अधिकारियों ने दक्षिण उत्पादन एवं सीसीएफ कार्यालय पर ताले लगा दिए और नोटिस चस्पा कर दिया गया।

पुनरीक्षण याचिका दायर की पर अधिवक्ता ही नहीं पहुंचे

मध्यप्रदेश शासन ने मामले में पुनरीक्षण याचिका (रिव्यू पिटीशन) दायर की थी, लेकिन सुनवाई के समय शासन पक्ष का कोई अधिवक्ता अदालत में उपस्थित नहीं हुआ, जिसके चलते कोर्ट कोई राहत नहीं दे सका। साथ ही आदेश पर रोक की भी कोई विधिवत मांग नहीं की गई थी।

डीएफओ नेहा की लापरवाही

दक्षिण उत्पादन वनमंडल के तत्कालीन डीएफओ ने उच्च न्यायालय कलकत्ता में चल रहे मामले में लगातार तीन वर्ष तक अपना पक्ष नहीं रखा। बताया जा रहा है कि लगातार पक्ष नहीं रखे जाने से इस मामले में दूसरी पार्टी के पक्ष में न्यायालय ने फैसला दिया। इसके बाद निर्धारित राशि जमा नहीं करने पर कार्यालय सील करने का आदेश न्यायालय ने दिया। बताया जा रहा है कि करीब तीन वर्ष तक नेहा श्रीवास्तव उक्त वनमंडल की डीएफओ रही, जिनके कार्यकाल में लापरवाही हुई है। बावजूद इसके डीएफओ श्रीमती नेहा श्रीवास्तव गुप्ता पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। वर्तमान में उत्पादन दक्षिण बालाघाट डीएफओ अरिहंत कोचर है। 

विभागीय छवि पर सवाल

सीसीएफ -डीएफओ कार्यालय की सीलिंग से विभाग की छवि धूमिल हुई है। बताया जा रहा है कि इस कार्रवाई से विभाग की प्रशासनिक छवि पर सवाल खड़े हो रहे हैं और न्यायिक आदेशों की अनदेखी को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका पर भी उंगलियां उठ रही हैं।

इनका कहना

सीसीएफ -डीएफओ कार्यालय खुलवाने के लिए हाईकोर्ट कलकत्ता में याचिका ख़ारिज होने के बाद विभाग एक करोड़ 20 लाख रुपए फर्म देगा। क्या करें, यह हमारे अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा है। इसके लिए जो भी जिम्मेदार होगा, कार्यवाही करेंगे। 
वीएन अंबाड़े, वन बल प्रमुख