जाति जनगणना की तारीखें घोषित हो गई हैं. इसकी प्रक्रिया निर्धारित हो रही है. मानसून सत्र में जरूरी बिल पारित किया जाएगा. जाति जनगणना की बारात सज गई है. अब तो घर-घर पहुंचने की देर है. इस कवायद से जातियों को कैसे और कितना लाभ होगा? उसके पहले आंकड़े आते ही विवादों की शुरुआत होगी..!!
अभी तो जाति जनगणना का क्रेडिट लेने की होड़ मची हुई है. कांग्रेस राहुल गांधी को जातिगत जनगणना का नायक साबित करने में लगी है, तो बीजेपी सरकार इस फैसले के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को श्रेय देने में जुटी हुई है.
यह बात सही है कि, जातिगत जनगणना के मुद्दे को सबसे ज्यादा राहुल गांधी ने उठाया है. चुनाव दर चुनाव कांग्रेस के घोषणा पत्र में इसे शामिल किया जाता रहा. चुनावों में जन समर्थन न मिलने के बाद भी राहुल गांधी इस मुद्दे से पीछे हटने को तैयार नहीं थे. लोकसभा चुनाव तक तो बीजेपी जातिगत जनगणना को अपने एजेंडे में नहीं मानती थी. यद्यपि पार्टी ने इसका कभी खुलकर विरोध नहीं किया. हर बार यही कहा जाता रहा कि वक्त आने पर इस पर निर्णय लिया जाएगा.
ऑपरेशन सिंदूर के साए में जातिगत जनगणना के फैसले ने देश को चौंकाया है. पीएम मोदी के फैसलों में सरप्राइज सबसे बड़ा एंगल होता है. जातिगत जनगणना के मामले में भी यही देखा गया. राहुल गांधी जाति जनगणना के फैसले पर सरकार का समर्थन कर रहें हैं. लेकिन हर स्तर पर यह साबित करने में लगे हैं कि उनके दबाव में सरकार को यह फैसला लेना पड़ा है.
कांग्रेस और बीजेपी दोनों की विरासत जातिगत जनगणना की पक्षधर नहीं रही है. आजादी के बाद पहली जनगणना में जातियों की गणना हुई थी. इसे पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा रोका गया था. जिस सरकार में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी इस फैसले से सहमती जताई थी.
इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तो यही तो कहते थे कि, न जात पर, न पात पर, मोहर लगेगी इंदिरा जी की बात पर. जातिगत जनगणना के मामले में दोनों राष्ट्रीय दलों ने अपनी सोच और रणनीति बदली है. वर्तमान राजनीति में जातियों के बढ़ते प्रभावों के कारण सियासी दलों को मजबूर होना पड़ा है.
मंडल कमीशन के बाद राजनीति में ओबीसी का तेजी से उदय हुआ. ओबीसी की राजनीति कर, बीजेपी की ओर से पूरा लाभ उठाया गया. ओबीसी से आने वाले नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया. कई राज्यों में ओबीसी मुख्यमंत्री बनाए गए. सांसद और विधायक के चुनाव में भी ओबीसी को प्राथमिकता दी गई. एससी-एसटी में कांग्रेस मजबूत मानी जाती है. बीजेपी ने अपना विस्तार सबसे पहले ओबीसी में किया, फिर धीरे-धीरे दूसरे वर्गों में अपनी पकड़ मजबूत की.
पिछले लोकसभा चुनाव में जातिगत राजनीति के कारण बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा. बीजेपी ने ऐसा महसूस किया कि, अगर राहुल गांधी और विपक्षी दलों को जातिगत राजनीति चलाते रहने का मौका दिया गया तो भविष्य में बड़ा नुकसान हो सकता है.
इसीलिए अचानक जातिगत जनगणना करने का फैसला ले लिया गया. इस फैसले के पीछे देश में पहलगाम घटना के बाद हिंदुत्व की मजबूती में आए उबाल को भी देखा जा सकता है. ऐसा महसूस किया गया कि, जातिगत जनगणना भी कम से कम हिंदुत्व की राजनीति को तो प्रभावित नहीं करेगी.
जाति जनगणना का विचार नया नहीं है. राहुल गांधी ने तो इस विचार को अपनी राजनीति के लिए आगे बढ़ाया है. इससे कांग्रेस को लाभ होगा या नुकसान? इस पर कुछ भी कहना मुश्किल है. अभी तक तो जो भी चुनाव हुए हैं, उसमें जाति जनगणना के विचार के कारण कांग्रेस का कोई लाभ नहीं हुआ.
जन्म देने वाले से पालने वाला ज्यादा महत्व रखता है. जाति जनगणना के विचार के नए जन्म के साथ राहुल गांधी भले जुड़ गए हैं लेकिन जनगणना कराने का फैसला लेकर, उसको पालने का काम मोदी सरकार ही कर रही है.
राहुल गांधी की समस्या ही यही है कि, वह अपनी खुद की और देश की जीत को हार में बदलने में माहिर हैं. दूसरी तरफ पीएम मोदी और बीजेपी है, जो किसी भी बात का क्रेडिट लेने में सबसे माहिर रहे. उनकी सरकार कोई काम करें और उसका क्रेडिट किसी दूसरे दल के नेता को मिल जाए, ऐसा आज तक तो किसी भी मामले में नहीं हुआ है. जाति जनगणना के मामले में भी ऐसा ही होने की उम्मीद है.
जब यह जनगणना पूरी हो जाएगी, तब इससे जुड़े विवादों की शुरुआत होगी. फिर क्रेडिट, डिसक्रेडिट के लिए राजनीतिक युद्ध होंगे. जातिगत जनगणना के मंथन से जरूरी नहीं है कि अम्रत ही निकले, इससे विष भी निकल सकता है. अमृत तो सब पीना चाहेंगे लेकिन जातियों के विष को कोई भी अपने गले में नहीं धारण करना चाहेगा.
अब चूँकि जातिगत जनगणना हो ही रही है तो कोशिश यही होना चाहिए कि इससे अमृत ही निकले. इस अमृत से देश में आधुनिकता के साथ विकास को गति मिले. विकसित भारत के लक्ष्य की पूर्णता में जाति का जनगणना बाधक न बने. प्रयास यही रहे कि, सभी जातियों के साथ सामजिक न्याय संभव हो सके.
सुपर पावर की ओर बढ़ता भारत कास्ट क्राइसिस का शिकार न बन जाए. इसके लिए संतुलित जातीय राजनीति जरूरी है. काम के साथ ही क्रेडिट किस्मत से भी मिलता है. किसी को बिना हाथ लगाए भी क्रेडिट मिल जाता है और कोई सब कुछ करे लेकिन उसके हाथ डिसक्रेडिट ही आता है.
कांग्रेस के पास क्रेडिट का लंबा इतिहास है. अब तो क्रेडिट की बहुत सारी मीनार टूट रही हैं. वर्तमान स्थिति में नया क्रेडिट तो कांग्रेस के खाते में जाता नहीं दिख रहा है.
जातिगत जनगणना पर क्रेडिट की होड़ में प्रक्रिया पर ही सवाल करना शुरु कर दिए गए हैं. राहुल गांधी आरोप लगा रहे हैं, कि बीजेपी असली जाति जनगणना नहीं कराएगी. तो बीजेपी कह रही है, कि तेलंगाना मॉडल से जातिगत जनगणना नहीं होगी. बीजेपी का आरोप है, कि कांग्रेस जातिगत जनगणना के बहाने बहुत सारी मुस्लिम जातियों को ओबीसी में शामिल कर वोट बैंक की राजनीति करना चाहती है. जिसे सफल नहीं होने दिया जाएगा.