डॉ. मोहन भागवत : संघ का दूरदर्शी नेतृत्व और राष्ट्र निर्माण का संकल्प


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स्टोरी हाइलाइट्स

डॉ. मोहन राव भागवत का जन्म 11 सितंबर 1950 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ। यह तिथि भी ऐतिहासिक महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन स्वामी विवेकानंद जी ने 1893 में शिकागो धर्म संसद में विश्वबंधुत्व का अमर संदेश दिया था..!!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी आज संगठन और राष्ट्र दोनों ही स्तरों पर मार्गदर्शक, प्रेरणास्त्रोत और दूरदर्शी नेतृत्व के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनका जीवन संघ के आदर्शों, सेवा-भावना और राष्ट्रनिष्ठा का सजीव उदाहरण है।

डॉ. मोहन राव भागवत का जन्म 11 सितंबर 1950 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ। यह तिथि भी ऐतिहासिक महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन स्वामी विवेकानंद जी ने 1893 में शिकागो धर्म संसद में विश्वबंधुत्व का अमर संदेश दिया था। यह एक अद्भुत संयोग है कि जिस दिन स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति की महिमा को विश्व पटल पर स्थापित किया, उसी दिन संघ के एक समर्पित परिवार में भविष्य के सरसंघचालक ने जन्म लिया। उनके पिता जी मधुकर राव भागवत विदर्भ प्रांत में संघ के प्रचारक रहे। संघ संस्कारों से ओत-प्रोत परिवार में पले-बढ़े मोहन जी बचपन से ही अनुशासित, संवेदनशील और कर्मनिष्ठ रहे।

शिक्षा और प्रचारक जीवन

मोहन जी ने नागपुर से वेटरनरी साइंस (BVSc) में स्नातक उपाधि प्राप्त की। उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने व्यावसायिक करियर का मार्ग छोड़कर संघकार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 1975 के आपातकाल (इमरजेंसी) के दौरान वे सक्रिय प्रचारक बने और कठिन परिस्थितियों में संगठन को सशक्त करने का कार्य किया। उनका कार्यक्षेत्र मुख्यतः विदर्भ और महाराष्ट्र रहा, जहाँ उन्होंने हजारों स्वयंसेवकों का निर्माण किया। संगठनात्मक कौशल, सरलता और मातृत्वपूर्ण नेतृत्व के कारण उन्होंने युवा स्वयंसेवकों की एक सशक्त पीढ़ी तैयार की।

वर्ष 2009 में उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छठा सरसंघचालक नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में संघ ने अनेक परिवर्तनशील और दूरगामी निर्णय लिए—

संघ के गणवेश में बदलाव : पारंपरिक खाकी निकर को बदलकर पैंट को अपनाया गया, जो समय की मांग थी।

शाखाओं का विस्तार : देश ही नहीं, विदेशों में भी संघ की शाखाओं और स्वयंसेवकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

समरसता का संदेश : उन्होंने जातीय विभाजन से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता और एकात्मता पर विशेष बल दिया।

सेवा और सद्भाव का विस्तार: प्राकृतिक आपदाओं, कोरोना काल जैसी परिस्थितियों में संघ के कार्यकर्ताओं ने समाज सेवा की मिसालें प्रस्तुत कीं।

राष्ट्र दृष्टि और विचारधारा

डॉ. भागवत जी का संकल्प है – “भारत माता को परम वैभव तक ले जाना।”

उनकी वाणी और विचारों में तीन प्रमुख तत्व सदैव झलकते हैं

राष्ट्र प्रथम : उनका मानना है कि व्यक्ति और संगठन से ऊपर राष्ट्र का हित सर्वोपरि है।

आत्मनिर्भर भारत : वे स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के प्रबल पक्षधर हैं।

समरस समाज : उन्होंने समाज में समता, सद्भाव और भाईचारे की भावना को बढ़ाने का सतत प्रयास किया है। उनका नेतृत्व मातृत्व से ओतप्रोत है। वे स्वयंसेवकों से केवल अनुशासन की अपेक्षा नहीं करते, बल्कि स्नेह और अपनत्व के साथ उन्हें मार्गदर्शन देते हैं।

संघ का वर्तमान स्वरूप

आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है। इसमें करोड़ों स्वयंसेवक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। संघ की शाखाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है और समाज का प्रत्येक वर्ग इससे जुड़कर राष्ट्र निर्माण की धारा में प्रवाहित हो रहा है।

डॉ. मोहन भागवत जी के नेतृत्व में संघ केवल संगठन नहीं रहा, बल्कि सेवा, समरसता और संस्कारों का राष्ट्रीय आंदोलन बन चुका है।

75वाँ जन्मोत्सव और शताब्दी वर्ष

वर्ष 2025 विशेष महत्व रखता है। जहाँ डॉ. मोहन भागवत जी अपना 75वाँ जन्मोत्सव मना रहे हैं, वहीं संघ भी विजयादशमी पर अपना 100वाँ स्थापना वर्ष (शताब्दी वर्ष) मना रहा है। यह दोहरी ऐतिहासिक घड़ी संघ परिवार के लिए गौरव और संकल्प दोनों का अवसर है।

डॉ. भागवत जी का व्यक्तित्व आज इस बात का प्रतीक है कि यदि संगठन में दृष्टि, त्याग, समर्पण और सेवा-भावना हो, तो वह राष्ट्र को नई दिशा दे सकता है।

डॉ. मोहन भागवत जी ने अपनी ओजस्वी वाणी, मातृत्वपूर्ण नेतृत्व और दूरदर्शी सोच से संघ को न केवल सशक्त बनाया, बल्कि उसे समाज और राष्ट्र निर्माण की मुख्यधारा में प्रतिष्ठित कर दिया। वे निस्संदेह एक ऐसे सरसंघचालक के रूप में याद किए जाएंगे जिन्होंने भारत को आत्मनिर्भर, सशक्त और समरस राष्ट्र बनाने के संकल्प को जीवन का ध्येय बना लिया।