ज्योतिष में हरिहर ब्रह्म योग, जीवन को सत्व गुण से भर देता है ये योग


स्टोरी हाइलाइट्स

फल-हरिहर ब्रह्म योग रखने वाला व्यक्ति सांस्कृतिक, बुद्धि आचार-विचार वाला, सत्यभाषी, वेद तथा संस्कृत का पठन-पाठन करने वाला

ज्योतिष में हरिहर ब्रह्म योग ...जीवन को सत्व गुण से भर देता है ये योग (१) यदि दूसरे भाव के स्वामी से ८ वें या १२वें शुभ ग्रह हो। (२) यदि सप्तम भाव के स्वामी से चौथे, आठवें और नवें भाव में गुरु, चन्द्रमा और बुध ग्रह स्थित हों। (३) लग्नेश से चौथे, दसवें और ग्यारहवें भाव में सूर्य शुक्र और मंगल ग्रह हों। फल-हरिहर ब्रह्म योग रखने वाला व्यक्ति सांस्कृतिक, बुद्धि आचार-विचार वाला, सत्यभाषी, वेद तथा संस्कृत का पठन-पाठन करने वाला, प्रसन्नचित्त, प्रमोद-प्रमोद में रुचि रखने वाला तथा दूसरों की सहायता करने वाला होता है। टिप्पणी-उपर्युक्त योग में मुख्यतः तीन भावों को प्रधानता मिलती है। लग्न, दूसरा भाव तथा सप्तम भाव । लग्न जहाँ व्यक्ति के आत्म का सर्वाधिक प्रबल भाव है, वहां द्वितीय भाव घन का, जो कि सामाजिक जीवन के लिये परमावश्यक है, इसी प्रकार सप्तम भाव मृत्यु का प्रतिनिधित्व करता है। लग्न ब्रह्मा है, द्वितीय भाव प्रजापालक विष्णु है, तो सप्तम भाव संहारक रुद्र है, इसीलिये इस योग को हरिहर ब्रह्म योग के नाम से पुकारा जाता है।   इस सम्बन्ध में ध्यान रखने की तीन बातें निम्नलिखित हैं (१) दूसरे भाव का स्वामी कहाँ स्थित है, उससे गणना करते हुए पांचवें तथा बारहवें भाव में शुभ ग्रह-निर्माण चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र स्थित हों। (२) सप्तमेश जहाँ बैठा हो, उस भाव से गणना करने पर ४, ८ तथा ९वें भाव में गुरु, चन्द्र तथा बुध तीनों ही ग्रह हों। (३) इसी प्रकार लग्नेश जिस भाव में बैठा हो, उस भाव ४, १० तथा ११वें भाव में सूर्य, शुक्र और मंगल ग्रह स्थित हों।