जस्टिस बीआर गवई ने सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली और राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें शपथ दिलाई।
जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध सीजेआई हैं और आजादी के बाद वे देश के दलित समुदाय से CJI बनने वाले दूसरे व्यक्ति हैं। 2007 में पूर्व सी.जे.आई. के.जी. बालाकृष्णन पहले दलित CJI बने थे। वे 3 साल तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायमूर्ति बी.आर. गवई को पद की शपथ दिलाई। वे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लेंगे, जो मंगलवार को 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त हुए। राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।
न्यायमूर्ति गवई को 24 मई, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। CJI के रूप में उनका कार्यकाल छह महीने से अधिक का होगा और वे 23 नवंबर तक इस पद पर रहेंगे।
सीजेआई गवई का जन्म 24 नवंबर, 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उन्होंने 16 मार्च, 1985 को बॉम्बे हाईकोर्ट से अपनी कानूनी प्रैक्टिस शुरू की। न्यायमूर्ति गवई ने 1987 तक राजा एस भोसले (पूर्व महाधिवक्ता और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश) के साथ काम किया। इसके बाद, उन्होंने 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की। न्यायमूर्ति गवई ने 1990 के बाद मुख्य रूप से बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में प्रैक्टिस की।
वे 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बने। उन्हें 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। मुख्य न्यायाधीश गवई के पिता, आर.एस. गवई एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने तीन राज्यों के राज्यपाल और संसद के दोनों सदनों के सदस्य के रूप में कार्य किया है। आर.एस. गवई ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापना की। उन्होंने 2006 से 2011 तक बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया है।
सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में वो कई अहम और निर्णायक फैसलों में शामिल रहे। जिसमें केंद्र सरकार के 2016 के मॉनेटाइजेशन के फैसले को बरकरार रखने वाला फैसला और चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाला निर्णय शामिल है। इसके अलावा वो पांच जजों की पीठ के सदस्य रहे जिसने केंद्र के 2019 के फैसले को बरकरार रखा। केंद्र ने आर्टिकल 370 को निरस्त किया था जिसके तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।
नवंबर 2024 में जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली दो जजों की पीठ ने आरोपियों की संपत्तियों पर बुलडोजर के इस्तेमाल की आलोचना की और सख्त फैसला सुनाया। जिसके मुताबिक उचित प्रकिया का पालन किए बिना किसी की भी संपत्तियों को गिराना कानून के खिलाफ माना जाएगा। उन्होंने लगभग 300 फैसले लिखे हैं, जिनमें से कई मौलिक अधिकारों से संबंधित संविधान पीठ के फैसले हैं।