World Sleep Day 2024: कब-कितना और किस दिशा में सोना चाहिए, शास्त्रों में बताए ये नियम


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स्टोरी हाइलाइट्स

हर साल मार्च के तीसरे शुक्रवार को मनाया जाता है विश्व नींद दिवस..!! 

व्यक्ति को अपनी दिनचर्या में कई महत्वपूर्ण कार्य करने होते हैं, जिनमें सांस लेना, खाना, पानी पीना जैसी चीजें जीवन के लिए बहुत जरूरी मानी जाती हैं। इनमें से एक है 'नींद'। अन्य कार्यों की तरह नींद भी हमारे दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसलिए विज्ञान और शास्त्रों में इसका महत्व बताया गया है।

नींद के नियम जानने से पहले हम आपको बता दें कि नींद के महत्व को समझने के लिए हर साल मार्च के तीसरे शुक्रवार को विश्व नींद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व नींद दिवस 15 मार्च 2024 को है।

सोने की दिशा-

उत्तरे पश्चिमे चैव न स्वपेद्धि कदाचन..

स्वप्रादायु: क्षयं याति ब्रह्महा पुरुषो भवेत.

न कुर्वीत तत: स्वप्रं शस्तं च पूर्व दक्षिणम.. (पद्म पुराण)

अर्थ: सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। पश्चिम और उत्तर की ओर मुख करके न सोएं। उत्तर और पश्चिम की ओर सिर करके सोने से रोग बढ़ते हैं और आयु कम होती है।

स्वगेहे प्राक्छिरा: सुप्याच्छ्वशुरे दक्षिणाशिरा:.

प्रत्यक्छिरा: प्रवासे तु नोदक्सुप्यात्कदाचन.. (आचारमयूख)

अर्थ: जब आप घर में सोएं तो अपना सिर पूर्व दिशा की ओर रखें। अगर आप ससुराल में सो रहे हैं तो अपना सिर दक्षिण दिशा की ओर रखें। जब आप विदेश यात्रा कर रहे हों या सो रहे हों तो सोते समय अपना सिर पश्चिम दिशा की ओर रखें।

आपको कैसे सोना चाहिए (नींद के नियम)

विष्णु पुराण के अनुसार सोते समय बिस्तर का ध्यान रखना जरूरी है। बिस्तर टूटा हुआ, बहुत बड़ा या बहुत छोटा, बहुत ऊंचा, गंदा या जानवरों से भरा हुआ नहीं होना चाहिए। साथ ही हमेशा साफ बिस्तर पर सोना चाहिए। हिंदू शास्त्रों में दरवाजे की ओर पैर करके सोना भी वर्जित है। यह स्वास्थ्य और समृद्धि को हानि पहुँचाता है।

आचारमायूख ग्रंथ के अनुसार जो लोग उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोते हैं उन्हें स्वास्थ्य, शांति, धन और आयु में वृद्धि मिलती है।

सोने का समय- 

सूर्यास्त के बाद या शाम के समय तुरंत न सोयें। सोने का सबसे अच्छा समय रात का शुरुआती समय है। वहां उठने के लिए ब्रह्म मुहूर्त को शुभ माना जाता है। दिन के उत्तरार्ध मं  यानी सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच भी नहीं सोना चाहिए।

शयन मंत्र-

वाराणस्यां दक्षिणे तु कुक्कुटो नाम वै द्विज:।

तस्य स्मरणमात्रेण दु:स्वपन: सुखदो भवेत्।।

या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारणभेषजात्।

नश्यन्ति सकला: रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।